कौस्तुभ मणि: Difference between revisions

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Latest revision as of 10:05, 26 May 2013

कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। माना जाता है कि यह मणि देवताओं और असुरों द्वारा किये गए समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह मूल्यवान वस्तुओं में से एक थी। यह बहुत ही कांतिमान थी और जहाँ भी यह मणि होती है, वहाँ किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती।

रघुवंश में उल्लेख

महाकवि कालिदास ने 'रघुवंश'[1] में कहा है कि-

त्रातेन तार्क्ष्यात् किल कालियेन
मणिं विसृष्टं यमुनौकसा यः ।
वक्षःस्थल-व्यापिरुचं दधानः
सकौस्तुभं ह्रेपयतीव कृष्णम् ।।

उपर्युक्त श्लोक में कालिदास के समय में प्रचलित पुराकथा का निर्देश है। यहाँ ऐसा कहा गया है कि कालिय नाग को श्रीकृष्ण ने गरुड़ के त्रास से मुक्त किया था। इस समय कालिय नाग ने अपने मस्तक से उतार कर श्रीकृष्ण को कौस्तुभ मणि दिया था।

परन्तु कालिदास के समय में प्रचलित उपर्युक्त पुराकथा पुराणकार व्यास के हाथ में सर्वथा बदल दी गई। श्रीमद्भागवत में तो कहा गया है कि कौस्तुभ मणि की प्राप्ति तो समुद्र मंथन के समय हुई थी। चतुर्भुज विष्णु के वक्ष:स्थल पर कौस्तुभ मणि शोभायमान हो रहा है। पुराण काल में प्रचलित हुई ऐसी नवीन मिथक का कारण यही हो सकता है कि विष्णु के हाथ में रहा सुदर्शन चक्र जैसे 'सूर्य देवता है', इस बात का द्योतक बन जाता है, उसी तरह से यह कौस्तुभ मणि भी विष्णु के सूर्य होने का प्रतीक है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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