पाल वंश: Difference between revisions

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Revision as of 13:03, 14 September 2010

  • पाल वंश आठवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच बिहार और बंगाल (पूर्वी भारत ) का शासक वंश था।
  • इस वंश की स्थापना गोपाल ने की थी, जो एक स्थानीय प्रमुख थे। गोपाल आठवीं शताब्दी के मध्य में अराजकता के माहौल में सत्ताधारी बन बैठे।
  • उनके उत्तराधिकारी धर्मपाल ( शासनकाल, लगभग 770-810 ई.) ने अपने शासनकाल में साम्राज्य का काफ़ी विस्तार किया और कुछ समय तक कन्नौज, उत्तर प्रदेश, उत्तर भारत) पर भी उनका नियंत्रण रहा।
  • देवपाल ( शासनकाल, लगभग 810-850 ई.) के शासनकाल में भी पाल वंश एक शक्ति बना रहा, उन्होंने देश के उत्तरी और प्राय:द्वीपीय भारत, दोनों पर हमले जारी रखे। लेकिन इसके बाद से साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।
  • कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार शासक महेंद्र पाल ( नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द से आरंभिक दसवीं शताब्दी ) ने उत्तरी बंगाल तक हमले किए।
  • पाल वंश की सत्ता को एक बार फिर से महिपाल I (शासनकाल, लगभग 988-1038 ई.) ने पुनर्स्थापित किया। उनका प्रभुत्व वाराणसी (वर्तमान बनारस, उत्तर प्रदेश) तक फैल गया, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद साम्राज्य एक बार फिर से कमज़ोर हो गया।
  • पाल वंश के अंतिम महत्त्वपूर्ण शासक रामपाल (शासनकाल, लगभग 1077-1120) ने बंगाल में वंश को ताकतवर बनाने के लिये बहुत कुछ किया और अपनी सत्ता को असम तथा उड़ीसा तक फैला दिया।
  • रामपाल संध्याकर नंदी रचित ऐतिहासिक संस्कृत काव्य 'रामचरित' के नायक हैं। उनकी मृत्यु के बाद सेन वंश की बढ़ती हुई शक्ति ने पाल साम्राज्य पर वस्तुत: ग्रहण लगा दिया, हालांकि पाल राजा दक्षिण बिहार में अगले 40 वर्षों तक शासन करते रहे। ऐसा प्रतीत होता है कि पाल राजाओं की मुख्य राजधानी पूर्वी बिहार में स्थित मुदागिरि (मुंगेर) थी।
  • पाल शासकों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और उनके राज्यों के धर्म प्रचारकों ने इस धर्म को तिब्बत तक प्रसारित किया। इसी दौरान पाल शासकों के संरक्षण में नालंदा और विक्रमशिला में बौध्द मठ और अध्ययन केंद्र फले-फूले।
  • वे कला के भी संरक्षक थे और उस काल के पाषाण तथा धातुशिल्प के कुछ श्रेष्ठ नमूने अब भी मौजूद हैं।


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