कलिंग लिपि: Difference between revisions

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दीनानाथदरिद्रदुःखिविकल्लव्याकीर्णनाना-
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विधप्राणित्राणपरायणः प्रतिदिनं</poem>
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Latest revision as of 09:42, 28 December 2011

कलिंग प्रदेश में ईसा की 7वीं से 12वीं शताब्दी तक जिस लिपि का प्रयोग हुआ, उसे कलिंग लिपि का नाम दिया गया है। इस लिपि का प्रयोग अधिकतर कलिंगनगर (मुखलिंगम्, गंजाम ज़िले में पर्लाकिमेडी से 20 मील दूर) के गंगवंशी राजाओं के दानपत्रों में देखने को मिलता है। इन राजाओं ने ‘गांगेय संवत्’ का उपयोग किया है। यह संवत् ठीक किस साल से आरम्भ होता है, यह अभी तक जाना नहीं जा सका है।

अभिलेख

कलिंग लिपि में भी तीन शैलियाँ देखने को मिलती हैं। आरम्भिक लेखों में मध्यदेशीय तथा दक्षिणी प्रभाव देखने को मिलता है। अक्षरों के सिरों पर ठोस चौखटे दिखाई देते हैं। आरम्भिक अक्षर समकोणीय हैं। किन्तु बाद में कन्नड़-तेलुगु लिपि के प्रभाव के अंतर्गत अक्षर गोलाकार होते नज़र आते हैं। ग्यारहवीं शताब्दी के अभिलेख नागरी लिपि के हैं। पोड़ागढ़ (आन्ध्र प्रदेश) से नल वंश का जो अभिलेख मिला है, उसके अक्षरों के सिरे वर्गाकार हैं। नल वंश का यह एकमात्र उपलब्ध शिलालेख है।

दानपत्र

‘गंगवंशी’ राजा इन्द्रवर्मन का दानपत्र[1], इन्द्रवर्मन द्वितीय का चिरकोल-दानपत्र तथा देवेन्द्रवर्मन का दानपत्र इसी वर्गाकार सिरों वाली लिपि में हैं। यहाँ नमूने के लिए हस्तिवर्मन के नरसिंहपल्ली दानपत्र का एक अंश प्रस्तुत किया है। यह दानपत्र[2] के आस-पास का है। इसकी लिपि दक्षिणी शैली की है। इस दानपत्र के लेखक विनयचन्द्र, हस्तिवर्मन के अन्य दानपत्रों और इन्द्रवर्मन द्वितीय के दानपत्रों के भी लेखक था। इसकी भाषा संस्कृत है।

कलिंग प्रदेश में नागरी लिपि के दानपत्र 11वीं शताब्दी से मिलने लगते हैं। यहाँ हम गंगवंशी राजा वज्रहस्त के दानपत्र का एक अंश दे रहे हैं। इसमें शक संवत 991 (1068 ई.) दिया हुआ है। एक दानपत्र मद्रास संग्रहालय में रखा हुआ है और इसका सम्पादन मज़ूमदार ने किया है।[3]

लिप्यंतर

  • राजा वरगुण के पलियम दानपत्र (9वीं सदी) का एक अंशः

यस्यास्तोदयहिम्यशैलमलयाः सैन्येभदन्तावलीटड़्क
क्षुण्णतटा भवन्ति विजयस्तम्भा जगन्निर्ज्जय।।

य देवलु हे जाणति। जें
सुवर्ण्ण लिहलें तें कांठेअः समेतः।।

  • श्रवणबेलगोला के गोमटेश्वर के पुतले के पैरों के पास ख़ुदा हुआ एक लेख (1117 ई.), जिसकी भाषा मराठी हैः

श्रीगंगराजे सुत्ताले
करवियले

दशशतयत्र अष्टत्यधिकसकु 1008 प्रभवसंवत्सरे

  • देवगिरि के यादव राजा रामचन्द्र (13वीं सदी) के थाना ताम्रपत्र का एक अंशः

आस्ते पयोधिप्रतिमो यदुनां वंशः प्रतीतो भुवनत्रयेपि।

  • चोड़-नरेश राजेन्द्र का सिक्का, जिस पर नागरी में ‘श्रीराजेन्द्र’ शब्द अंकित है।
  • कोल्हापुर के शिलाहार शासक गंडरादित्य के ताम्रशासन (1126 ई.) का एक अंशः

श्रीगंडरादित्य इति प्रसिद्धः
दीनानाथदरिद्रदुःखिविकल्लव्याकीर्णनाना-
विधप्राणित्राणपरायणः प्रतिदिनं


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गंग-संवत् 87
  2. गंग-संवत् 79 (600) ई.
  3. देखिए, एपिग्राफ़िया-इंडिका, खण्ड 13

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