ख़लीफ़ा उमर: Difference between revisions
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दूसरे ख़लीफ़ा उमर बिन अल-ख़त्तब के काल में ख़लीफ़ा शब्द का इस्तेमाल मुस्लिम राज्य के नागरिक और धार्मिक प्रमुख के रूप में होने लगा। इसी अर्थ में '[[क़ुरान]]' में इस शब्द को 'आदम' और 'डेविड' के लिए भी इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 'ख़ुदा' का उप-राज्य सहायक कहा जाता था। उमर से वफ़ादारी की शपथ केवल उन्हीं साथियों ने ली, जो उस समय मदीना में थे, जिससे कुछ अन्य साथियों ने उन्हें 'ख़लीफ़ा' मानने में आनाकानी करनी शुरू कर दी। उस समय अरबों ने '[[इस्लाम]]' फैलाने के लिए [[ईरान]] पर हमला किया और इससे क्रोधित होकर कुछ ईरानियों ने ख़लीफ़ा उमर को सत्ता लेने के लगभग दस वर्षों बाद [[7 नवम्बर]], 644 ईसवी को मार डाला। | दूसरे ख़लीफ़ा उमर बिन अल-ख़त्तब के काल में ख़लीफ़ा शब्द का इस्तेमाल मुस्लिम राज्य के नागरिक और धार्मिक प्रमुख के रूप में होने लगा। इसी अर्थ में '[[क़ुरान]]' में इस शब्द को 'आदम' और 'डेविड' के लिए भी इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 'ख़ुदा' का उप-राज्य सहायक कहा जाता था। उमर से वफ़ादारी की शपथ केवल उन्हीं साथियों ने ली, जो उस समय [[मदीना]] में थे, जिससे कुछ अन्य साथियों ने उन्हें 'ख़लीफ़ा' मानने में आनाकानी करनी शुरू कर दी। उस समय अरबों ने '[[इस्लाम]]' फैलाने के लिए [[ईरान]] पर हमला किया और इससे क्रोधित होकर कुछ ईरानियों ने ख़लीफ़ा उमर को सत्ता लेने के लगभग दस वर्षों बाद [[7 नवम्बर]], 644 ईसवी को मार डाला। | ||
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अपनी मृत्यु से पूर्व ख़लीफ़ा उमर ने पहले ही छ: लोगों का एक गुट बना लिया था, जिसमें से आपसी समझौते द्वारा एक को चुनकर ख़लीफ़ा | अपनी मृत्यु से पूर्व ख़लीफ़ा उमर ने पहले ही छ: लोगों का एक गुट बना लिया था, जिसमें से आपसी समझौते द्वारा एक को चुनकर ख़लीफ़ा बनाया जाना था। इसमें 'अली' और 'उस्मान' शामिल थे। उस्मान को चुन लिया गया और वे [[11 नवम्बर]], 644 को तीसरे ख़लीफ़ा बनाये गए। | ||
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Revision as of 05:44, 18 April 2013
ख़लीफ़ा उमर मुस्लिम समुदाय के दूसरे ख़लीफ़ा थे। कुछ लोगों के अनुसार अली, जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद थे,[1] ही मुहम्मद साहब के असली वारिस थे, परन्तु प्रथम ख़लीफ़ा अबु बक़र बनाये गये थे और उनके मरने के बाद उमर को दूसरा ख़लीफ़ा बनाया गया।[2]
ख़लीफ़ा का पद
'ख़लीफ़ा' अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- 'उत्तराधिकारी'। 'ख़लीफ़ा' शब्द को मुस्लिम समुदाय के शासक के लिए भी प्रयोग किया जाता था। जब मुहम्मद साहब की मृत्यु हुई (लगभग 8 जून, 632) तो अबु बक़र ने ख़लीफ़ा 'रसूल अल्लाह' या 'पैगंबर' के उत्तराधिकारी के रूप में उनके राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों का उत्तराधिकार संभाला था। अबू बक़र का शासन 632 से 634, केवल दो वर्ष ही चल पाया था कि वे बीमार पड़ गये और मृत्यु दशा में आ पहुँचे। देहांत से पहले उन्होंने बिना विचार-विमर्श के ही उमर को दूसरा ख़लीफ़ा बना दिया था।
मृत्यु
दूसरे ख़लीफ़ा उमर बिन अल-ख़त्तब के काल में ख़लीफ़ा शब्द का इस्तेमाल मुस्लिम राज्य के नागरिक और धार्मिक प्रमुख के रूप में होने लगा। इसी अर्थ में 'क़ुरान' में इस शब्द को 'आदम' और 'डेविड' के लिए भी इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 'ख़ुदा' का उप-राज्य सहायक कहा जाता था। उमर से वफ़ादारी की शपथ केवल उन्हीं साथियों ने ली, जो उस समय मदीना में थे, जिससे कुछ अन्य साथियों ने उन्हें 'ख़लीफ़ा' मानने में आनाकानी करनी शुरू कर दी। उस समय अरबों ने 'इस्लाम' फैलाने के लिए ईरान पर हमला किया और इससे क्रोधित होकर कुछ ईरानियों ने ख़लीफ़ा उमर को सत्ता लेने के लगभग दस वर्षों बाद 7 नवम्बर, 644 ईसवी को मार डाला।
उत्तराधिकारी
अपनी मृत्यु से पूर्व ख़लीफ़ा उमर ने पहले ही छ: लोगों का एक गुट बना लिया था, जिसमें से आपसी समझौते द्वारा एक को चुनकर ख़लीफ़ा बनाया जाना था। इसमें 'अली' और 'उस्मान' शामिल थे। उस्मान को चुन लिया गया और वे 11 नवम्बर, 644 को तीसरे ख़लीफ़ा बनाये गए।
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