जयंत: Difference between revisions

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*चित्रकूट पर्वत के वनों में विचरण करते हुए [[राम]] और [[सीता]] थककर विश्राम कर रहे थे। सीता और राम दोनों ही सौ रहे थे।  
*चित्रकूट पर्वत के वनों में विचरण करते हुए [[राम]] और [[सीता]] थककर विश्राम कर रहे थे। सीता और राम दोनों ही सो रहे थे।  
*मांस-भक्षण की इच्छा से एक कौए ने जाकर सीता के स्तन पर प्रहार किया। सीता के स्तन से रक्त गिरने लगा।  
*मांस-भक्षण की इच्छा से एक कौए ने जाकर सीता के स्तन पर प्रहार किया। सीता के स्तन से रक्त गिरने लगा।  
*खून के स्पर्श से राम की नींद खुली तो उसने संपूर्ण घटना को जाना तथा क्रुद्ध होकर राम ने [[ब्रह्मास्त्र]] के मंत्र से आमंत्रित करके एक कुशा को धनुष से छोड़ा।  
*खून के स्पर्श से राम की नींद खुली तो उसने संपूर्ण घटना को जाना तथा क्रुद्ध होकर राम ने [[ब्रह्मास्त्र]] के मंत्र से आमंत्रित करके एक कुशा को धनुष से छोड़ा।  

Revision as of 04:39, 26 November 2010

  • चित्रकूट पर्वत के वनों में विचरण करते हुए राम और सीता थककर विश्राम कर रहे थे। सीता और राम दोनों ही सो रहे थे।
  • मांस-भक्षण की इच्छा से एक कौए ने जाकर सीता के स्तन पर प्रहार किया। सीता के स्तन से रक्त गिरने लगा।
  • खून के स्पर्श से राम की नींद खुली तो उसने संपूर्ण घटना को जाना तथा क्रुद्ध होकर राम ने ब्रह्मास्त्र के मंत्र से आमंत्रित करके एक कुशा को धनुष से छोड़ा।
  • वह कौए के वेश में इंद्र का पुत्र जयंत था।
  • कौआ विविध लोकों में रक्षा की कामना से गया, किंतु कुशा ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
  • अंत में वह पुन: राम की शरण में पहुँचा और राम ने उसे क्षमा कर दिया किंतु ब्रह्मास्त्र के मंत्रों से पूत कुशा व्यर्थ नहीं जा सकती थी अत: उसने कौए की दाहिनी आँख फोड़ दी किंतु उसके प्राण बच गए। [1]
  • मेघनाथ और इंद्र के युद्ध में भयंकर माया का विस्तार हुआ।
  • मेघनाथ ने सब ओर अंधकार का प्रसार कर दिया। हाथ को हाथ नहीं सूझता था। तभी शची का पिता पुलोमा जयंत को उठाकर समुद्र में ले गया।
  • राक्षस और देवसेना जयंत को न देखकर भागा हुआ या मरा हुआ मानते रहे।
  • युद्ध-समाप्ति के उपरांत ब्रह्मा ने इंद्र को बतलाया कि जयंत जीवित है और उसका नाना पुलोमा उसे लेकर 'महासमुद्र' में चला गया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 38 श्लोक 12-38, सुन्दर काण्ड, सर्ग 67, श्लोक 1-18
  2. वाल्मीकि रामायण, उत्तर काण्ड सर्ग 28, श्लोक 15-24, वाल्मीकि रामायण, उत्तरकांड, सर्ग 30, श्लोक 50-51

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