किष्किन्धा काण्ड वा. रा.

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किष्किन्धा काण्ड / Kishkindha Kand

इस काण्ड में पम्पासरोवर पर स्थित राम से हनुमानजी का मिलन, सुग्रीव से मित्रता, सुग्रीव द्वारा बालि का वृत्तान्त-कथन, सीता की खोज के लिए सुग्रीव की प्रतिज्ञा, वालि-सुग्रीव युद्ध, राम के द्वारा वालि का वध, सुग्रीव का राज्याभिषेक तथा वालिपुत्र अंगद को युवराज पद, वर्षा ॠतु वर्णन, शरद ॠतु वर्णन, सुग्रीव तथा हनुमान जी के द्वारा वानरसेना का संगठन, सीतान्वेषण हेतु चारों दिशाओं में वानरों का गमन, हनुमान का लंका-गमन, सम्पाति-वृत्तान्त, जाम्बवन्त का हनुमान को समुद्र-लंघन हेतु प्रेरित करना तथा हनुमानजी का महेन्द्र पर्वत पर आरोहण आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है। किष्किन्धाकाण्ड में 67 सर्ग तथा 2,455 श्लोक हैं। धार्मिक दृष्टि से इस काण्ड का पाठ मित्रलाभ तथा नष्टद्रव्य की खोज हेतु करना उचित है।[1]

टीका-टिप्पणी

  1. मित्रलाभे तथा नष्टद्रव्यस्य च गवेषणे।
    श्रुत्वा पठित्वा कैष्किन्ध्यं काण्डं तत्तत्फलं लभेत्॥(बृहद्धर्मपुराण-पूर्वखण्ड 36…12)

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