ख़ुत्बा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:28, 24 February 2012 by फ़िज़ा (talk | contribs) ('{{पुनरीक्षण}} '''ख़ुत्बा''' को 'ख़ुत्बः' भी लिखा जाता है, [[इ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

ख़ुत्बा को 'ख़ुत्बः' भी लिखा जाता है, इस्लाम में खासतौर पर शुक्रवार की नमाज़ के समय, इस्लाम के दो प्रमुख त्योहारों (ईद), संतों के जन्मदिवस के उत्सव (मौलिद) और अतिविशेष अवसरों पर दिया जाने वाला धर्मोपदेश होता है।

ख़ुत्बा, संभवत: इस्लाम अरब के एक प्रमुख जनजातीय प्रवक्ता 'ख़ातिब' की उद्घोषणाओं से उद्धृत है, यद्यपि इनमें कोई धार्मिक संदर्भ नहीं है। ख़ातिब सुंदर गद्य के माध्यम से अपनी जनजाति के लोगों की श्रेष्ठता व उपलब्धियों का गुणगान व क़बीले के दुश्मनों की कमज़ोरी की निन्दा करते थे। 630 में मक्का पर अधिकार करने के पश्चात मुहम्मद ने भी स्वयं को ख़ातिब के रूप में प्रस्तुत किया। प्रथम चार ख़लीफ़ा, उमय्या ख़लीफ़ा और उमय्या सूबेदार सभी अपने-अपने इलाकों में ख़ुत्बा देते थे, यद्यपि उनका मसौदा तब तक मात्र धार्मिक ही न रहकर प्रशासन के वास्तविक सवलों व राजनीतिक समस्याओं से संबंधित होते थे, कभी-कभी तो सीधे निर्देश ही होते थे। अब्बासियों के काल में, ख़लीफ़ाओं ने स्वयं उपदेश न देकर ख़ातिब का काम क़ाज़ियों (धर्मिक न्यायाधीश) के हाथों सौंप दिया। अब्बासियों के इस्लाम को उमय्याओं की धर्मनिरपेक्षता से मुक्त कराने के पुरज़ोर आग्रह ने संभवत: ख़ुत्बा के धार्मिक महत्त्व को सुदृढ़ बनाने में सहायता की।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः