अधिराजेन्द्र: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('*वीर राजेन्द्र के बाद उसका पुत्र अधिराजेन्द्र राज...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "विरूद्ध" to "विरुद्ध") |
||
(7 intermediate revisions by 5 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
*[[वीर राजेन्द्र]] के बाद | *[[वीर राजेन्द्र]] की मृत्यु के बाद '''अधिराजेन्द्र''' (1070 ई.) [[चोल राजवंश|चोल]] की गद्दी पर बैठा। | ||
* | *अधिराजेन्द्र परान्तक का वंशधर था। | ||
*उसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गए | *वह [[चोल साम्राज्य]] की शक्ति को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ रहा। | ||
*अधिराजेन्द्र [[शैव धर्म]] का अनुयायी था और प्रसिद्ध [[वैष्णव]] आचार्य [[रामानुज]] से इतना द्वेष करता था कि, रामानुज को उसके राज्य काल में श्रीरंगम छोड़कर अन्यत्र चले जाना पड़ा। | |||
*उसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गए और इन्हीं के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने राज्य के पहले साल में ही उसकी मृत्यु हो गई। | |||
*उसकी मृत्यु के साथ ही [[विजयालय]] द्वारा स्थापित [[चोल वंश]] समाप्त हो गया। | |||
*इस अशांतिमय परिस्थिति का फ़ायदा उठाकर [[कुलोत्तुंग प्रथम]] चोल राजसिंहासन पर बैठा। | |||
*इसके बाद का चोल इतिहास चोल-चालुक्य वंशीय इतिहास के नाम से जाना जाता है। | |||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक= | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{चोल राजवंश}} | {{चोल राजवंश}} | ||
{{भारत के राजवंश}} | {{भारत के राजवंश}} | ||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]] | ||
[[Category:चोल साम्राज्य]] | [[Category:चोल साम्राज्य]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 15:26, 17 October 2015
- वीर राजेन्द्र की मृत्यु के बाद अधिराजेन्द्र (1070 ई.) चोल की गद्दी पर बैठा।
- अधिराजेन्द्र परान्तक का वंशधर था।
- वह चोल साम्राज्य की शक्ति को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ रहा।
- अधिराजेन्द्र शैव धर्म का अनुयायी था और प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य रामानुज से इतना द्वेष करता था कि, रामानुज को उसके राज्य काल में श्रीरंगम छोड़कर अन्यत्र चले जाना पड़ा।
- उसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गए और इन्हीं के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने राज्य के पहले साल में ही उसकी मृत्यु हो गई।
- उसकी मृत्यु के साथ ही विजयालय द्वारा स्थापित चोल वंश समाप्त हो गया।
- इस अशांतिमय परिस्थिति का फ़ायदा उठाकर कुलोत्तुंग प्रथम चोल राजसिंहासन पर बैठा।
- इसके बाद का चोल इतिहास चोल-चालुक्य वंशीय इतिहास के नाम से जाना जाता है।
|
|
|
|
|