निर्वाक हिमालय -दिनेश सिंह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{स्वतंत्र लेख}}")
 
(2 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको यह दिखेगा कि लेख बनकर कैसा लगेगा -->===={{PAGENAME}}====
{{स्वतंत्र लेखन नोट}}
{| style="background:transparent; font-size:larger; color:#990099"
{{Poemopen}}
|
<poem>
[[चित्र:{{PAGENAME}}|thumb|{{PAGENAME}} लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें]]
खड़ा हिमालय शीश झुकाये  
{{पुनरीक्षण}}<!-- कृपया इस साँचे को हटाएँ नहीं (डिलीट न करें)। इसके नीचे से ही सम्पादन कार्य करें। -->
<poem>खड़ा हिमालय शीश झुकाये  
द्रवित हो रहा पल पल मन  
द्रवित हो रहा पल पल मन  
देख रहा निर्वाक शिखर से  
देख रहा निर्वाक शिखर से  
भव्य राष्ट का जाति विभाजन
भव्य राष्ट्र का जाति विभाजन


एक विषादित शिला बन गया  
          एक विषादित शिला बन गया  
चपल कूलों के मनुजोचित कारण  
          चपल कूलों के मनुजोचित कारण  
दुखित हुवा वच्छल मन अंतस्तल
          दुखित हुआ वच्छल मन अंतस्तल
खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ
          खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ


भूल रहा मनुजत्व कृत्य  
भूल रहा मनुजत्व कृत्य  
Line 19: Line 17:
भूल भूलकर प्रेम-युक्ति
भूल भूलकर प्रेम-युक्ति


कही जीर्ण जाति में डूब डूब
          कहीं जीर्ण जाति में डूब डूब
कही धर्म कौम में घूम घूम  
          कहीं धर्म कौम में घूम घूम  
भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव  
          भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव  
बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत</poem>
          बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत
</poem>
{{Poemclose}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}


[[Category:दिनेश सिंह]]
[[Category:दिनेश सिंह]]

Latest revision as of 13:18, 26 January 2017

चित्र:Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।

खड़ा हिमालय शीश झुकाये
द्रवित हो रहा पल पल मन
देख रहा निर्वाक शिखर से
भव्य राष्ट्र का जाति विभाजन

          एक विषादित शिला बन गया
          चपल कूलों के मनुजोचित कारण
          दुखित हुआ वच्छल मन अंतस्तल
          खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ

भूल रहा मनुजत्व कृत्य
भर भरकर मानस मन विकृति
विद्वेष, घृणा मन रक्ता रंजीत
भूल भूलकर प्रेम-युक्ति

          कहीं जीर्ण जाति में डूब डूब
          कहीं धर्म कौम में घूम घूम
          भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव
          बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष