आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अगस्त 2014: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m ("आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अगस्त 2014" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अ�)
No edit summary
 
Line 6: Line 6:
{| width=100% class="bharattable"
{| width=100% class="bharattable"
|-  
|-  
! style="width:60%;"| पोस्ट
|
! style="width:25%;"| संबंधित चित्र
; दिनांक- 24 अगस्त, 2014
! style="width:15%;"| दिनांक
[[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-41.jpg|250px|right]]
|-
|
<poem>
<poem>
कोई आएगा, ये मुझको ख़याल रहता है
कोई आएगा, ये मुझको ख़याल रहता है
Line 27: Line 25:
इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है
इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-41.jpg|250px|center]]
| 24 अगस्त, 2014
|-
|-
|   
|   
; दिनांक- 24 अगस्त, 2014
[[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-40.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
लोग बहुत 'बोलते' हैं लेकिन 'कहते' बहुत कम हैं।
लोग बहुत 'बोलते' हैं लेकिन 'कहते' बहुत कम हैं।
Line 40: Line 38:
यहाँ समझने वाली बात यह है कि मौन द्वारा जो 'कहा' जाता है उसका प्रभाव अक्सर बोलने-कहने से अधिक होता है...
यहाँ समझने वाली बात यह है कि मौन द्वारा जो 'कहा' जाता है उसका प्रभाव अक्सर बोलने-कहने से अधिक होता है...
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-40.jpg|250px|center]]
| 24 अगस्त, 2014
|-
|-
|   
|   
; दिनांक- 6 अगस्त, 2014
[[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-39.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
हमारी बुद्धि एक कंप्यूटर की तरह है और 'विवेक' इस कंप्यूटर का सबसे अच्छा ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे अंग्रेज़ी में wisdom कहते हैं।
हमारी बुद्धि एक कंप्यूटर की तरह है और 'विवेक' इस कंप्यूटर का सबसे अच्छा ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे अंग्रेज़ी में wisdom कहते हैं।
Line 49: Line 47:
यदि आपके कंप्यूटर में रॅम (प्रतिभा) कम भी है तब भी यह ऑपरेटिंग सिस्टम सही काम करता है।  
यदि आपके कंप्यूटर में रॅम (प्रतिभा) कम भी है तब भी यह ऑपरेटिंग सिस्टम सही काम करता है।  
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-39.jpg|250px|center]]
| 6 अगस्त, 2014
|-
|-
|   
|   
; दिनांक- 6 अगस्त, 2014
[[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-38.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
शोले की तरह जलना है तो पहले ख़ुद को कोयला करना  
शोले की तरह जलना है तो पहले ख़ुद को कोयला करना  
Line 69: Line 67:
हो जा आज़ाद परिंदे अब, फिर जी लेना या जा मरना
हो जा आज़ाद परिंदे अब, फिर जी लेना या जा मरना
</poem>
</poem>
|  [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-38.jpg|250px|center]]
| 6 अगस्त, 2014
|}
|}
|}
|}

Latest revision as of 13:22, 30 April 2017

आदित्य चौधरी फ़ेसबुक पोस्ट
दिनांक- 24 अगस्त, 2014

250px|right

कोई आएगा, ये मुझको ख़याल रहता है
कोई आए ही क्यों, क़ायम सवाल रहता है

किसी उदास से रस्ते से उसकी आमद को
ये मिरा दिल भी तो बैचैने हाल रहता है

नहीं कोई ज़ोर ज़माने का मेरी हस्ती पर
इसी ग़ुरूर में बंदा मिसाल रहता है

हमारे इश्क़ को हासिल है किस्मतों के करम
गली के मोड़ पर हुस्न-ए-जमाल रहता है

यूँ ही मर जाएंगे, इक दिन जो मौत आएगी
इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है

दिनांक- 24 अगस्त, 2014

250px|right

लोग बहुत 'बोलते' हैं लेकिन 'कहते' बहुत कम हैं।
बहुत सी बातें हैं जिन्हें कभी नहीं कहा जाता... लेकिन क्यों ?
# सुनने वाला इस योग्य नहीं होता
# कहने वाला अपनी बात को कहने योग्य नहीं मानता

दोनों ही स्थितियों में परिणाम 'मौन' होता है।
यहाँ समझने वाली बात यह है कि मौन द्वारा जो 'कहा' जाता है उसका प्रभाव अक्सर बोलने-कहने से अधिक होता है...

दिनांक- 6 अगस्त, 2014

250px|right

हमारी बुद्धि एक कंप्यूटर की तरह है और 'विवेक' इस कंप्यूटर का सबसे अच्छा ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे अंग्रेज़ी में wisdom कहते हैं।
विवेक एक ऐसा ओ.एस. है जिससे कंप्यूटर (बुद्धि) कभी हॅन्ग नहीं होता और वायरस (क्रोध) का ख़तरा तो बिल्कुल भी नहीं है क्यों कि इसमें बिल्टइन एन्टीवायरस (करुणा) होता है।
यदि आपके कंप्यूटर में रॅम (प्रतिभा) कम भी है तब भी यह ऑपरेटिंग सिस्टम सही काम करता है।

दिनांक- 6 अगस्त, 2014

250px|right

शोले की तरह जलना है तो पहले ख़ुद को कोयला करना
बादल की तरह उड़ना है तो पहले बन पानी का झरना

जो सबने किया वो तू कर दे, दुनिया में इसका मोल नहीं
हैं सात समंदर धरती पर, तू पार आठवां भी करना

हर चीज़ यहाँ पर बिकती है, इक प्यार का ही कोई मोल नहीं
तू छोड़ के इन बाज़ारों को, दिल का सौदा दिल से करना

सदियों से दफ़न मुर्दे हैं ये, क्या नया गीत सुन पाएँगे ?
अब खोल दे सब दरवाज़ों को और नई हवा से क्या डरना

हाथों की चंद लकीरों से, इन किस्मत की ज़जीरों से
हो जा आज़ाद परिंदे अब, फिर जी लेना या जा मरना

शब्दार्थ

संबंधित लेख