आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अक्तूबर 2013: Difference between revisions
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सशक्त के साथ आलोचना | सशक्त के साथ आलोचना | ||
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परछाँई की तरह साथ रहती है। | परछाँई की तरह साथ रहती है। | ||
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; 30 अक्तूबर, 2013 | |||
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हमारा पूरा जीवन बहुत कुछ सीखने में निकलता है… | हमारा पूरा जीवन बहुत कुछ सीखने में निकलता है… | ||
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जो व्यक्ति इस अभ्यास को अधिक से अधिक कर लेते हैं उनको ही श्रेष्ठता की श्रेणी उपलब्ध होती है। | जो व्यक्ति इस अभ्यास को अधिक से अधिक कर लेते हैं उनको ही श्रेष्ठता की श्रेणी उपलब्ध होती है। | ||
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; दिनांक- 29 अक्तूबर, 2013 | |||
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[[चित्र:Viksit-kram-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
विकसित होने के क्रम में हमने बहुत कुछ पाया पर कुछ खोया भी... | विकसित होने के क्रम में हमने बहुत कुछ पाया पर कुछ खोया भी... | ||
ज्ञानी बढ़ रहे हैं, विचारक कम हो रहे हैं | ज्ञानी बढ़ रहे हैं, विचारक कम हो रहे हैं | ||
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मनुष्य बढ़ रहे हैं, इंसान कम हो रहे हैं | मनुष्य बढ़ रहे हैं, इंसान कम हो रहे हैं | ||
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; दिनांक- 26 अक्तूबर, 2013 | |||
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महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आंइस्टाइन ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही थी- | महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आंइस्टाइन ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही थी- | ||
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बात तो बहुत सही कही उन्होंने लेकिन हुआ कुछ और ही... | बात तो बहुत सही कही उन्होंने लेकिन हुआ कुछ और ही... | ||
आज के समय में प्रत्येक विषय 'व्यापार' हो गया है | |||
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; दिनांक- 26 अक्तूबर, 2013 | |||
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[[चित्र:Aag-ka-upyog-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
आग का उपयोग सीखने के बाद मनुष्य ने, नर-नारी के बीच, कार्य की प्रकृति के अनुसार बँटवारा किया। नर ने भोजन की तलाश को चुना तो नारी ने भोजन पकाना, संग्रहीत करना और निवास को सुविधाजनक बनाना। नारी के, नौ महीने बच्चे को गर्भ में रखने के दायित्व के चलते, यह बँटवारा एक सामान्य नियम बनने लगा। | आग का उपयोग सीखने के बाद मनुष्य ने, नर-नारी के बीच, कार्य की प्रकृति के अनुसार बँटवारा किया। नर ने भोजन की तलाश को चुना तो नारी ने भोजन पकाना, संग्रहीत करना और निवास को सुविधाजनक बनाना। नारी के, नौ महीने बच्चे को गर्भ में रखने के दायित्व के चलते, यह बँटवारा एक सामान्य नियम बनने लगा। | ||
इस बँटवारे से नर-नारी में कार्य और दायित्व की आवश्यकता के अनुसार शारीरिक भेद भी विकसित होने लगे। नर, बलिष्ठ तो नारी सुन्दर और कोमल होने लगी। इससे पहले अन्य प्रजातियों की तरह ही नर-नारी भी समान रूप से सक्रिय होने के कारण शारीरिक रूप से भी लगभग समान शक्तिशाली ही थे और भोजन की तलाश में व्यस्त रहते थे। बँटवारे से दोनों के पास अतिरिक्त समय भी होने लगा। जिसका उपयोग नर-नारी ने अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार किया। | इस बँटवारे से नर-नारी में कार्य और दायित्व की आवश्यकता के अनुसार शारीरिक भेद भी विकसित होने लगे। नर, बलिष्ठ तो नारी सुन्दर और कोमल होने लगी। इससे पहले अन्य प्रजातियों की तरह ही नर-नारी भी समान रूप से सक्रिय होने के कारण शारीरिक रूप से भी लगभग समान शक्तिशाली ही थे और भोजन की तलाश में व्यस्त रहते थे। बँटवारे से दोनों के पास अतिरिक्त समय भी होने लगा। जिसका उपयोग नर-नारी ने अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार किया। | ||
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यह एक मुख्य कारण था जिसके कारण मनुष्य अन्य प्रजातियों के मुक़ाबले में बेहतर और सभ्य हो सका जबकि अन्य प्रजातियाँ आज भी नर-मादा में कार्य का बँटवारा करने में अक्षम हैं और विकास क्रम की धारा से वंचित। | यह एक मुख्य कारण था जिसके कारण मनुष्य अन्य प्रजातियों के मुक़ाबले में बेहतर और सभ्य हो सका जबकि अन्य प्रजातियाँ आज भी नर-मादा में कार्य का बँटवारा करने में अक्षम हैं और विकास क्रम की धारा से वंचित। | ||
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; दिनांक- 24 अक्तूबर, 2013 | |||
[[चित्र:Sukh-ki-talash-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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सुख की तलाश न होती तो कोई ईश्वर की तलाश भी न करता | सुख की तलाश न होती तो कोई ईश्वर की तलाश भी न करता | ||
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लगता है कि इसीलिए ईश्वर ने सबको सुखी नहीं बनाया कि कम से कम उसे याद तो करें। | लगता है कि इसीलिए ईश्वर ने सबको सुखी नहीं बनाया कि कम से कम उसे याद तो करें। | ||
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; दिनांक- 23 अक्तूबर, 2013 | |||
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[[चित्र:Karva-Chauth-5.jpg|250px|right]] | |||
समय-समय पर समाज सुधारक, विभिन्न धर्मों के कुछ ऐसे संस्कारों का विरोध करते रहे हैं, जो संस्कार, नारी और समाज के प्रति किसी भी अर्थ में उचित नहीं थे जैसे कि सती प्रथा। ये विरोध, समाज में बहुत से अच्छे परिवर्तनों का कारण भी रहे हैं। | समय-समय पर समाज सुधारक, विभिन्न धर्मों के कुछ ऐसे संस्कारों का विरोध करते रहे हैं, जो संस्कार, नारी और समाज के प्रति किसी भी अर्थ में उचित नहीं थे जैसे कि सती प्रथा। ये विरोध, समाज में बहुत से अच्छे परिवर्तनों का कारण भी रहे हैं। | ||
मैंने अक्सर यह अनुभव किया है कि आधुनिकता, नारी मुक्ति, नर-नारी समान अधिकार, मानवता वाद आदि जैसे मसलों के चलते कुछ अति उत्साही जन, विभिन्न धर्मों से संबंधित कुछ संस्कारों का विरोध करते रहते हैं जिसकी कोई आवश्यकता शायद नहीं है। ऐसा ही एक संस्कार करवा चौथ है। | मैंने अक्सर यह अनुभव किया है कि आधुनिकता, नारी मुक्ति, नर-नारी समान अधिकार, मानवता वाद आदि जैसे मसलों के चलते कुछ अति उत्साही जन, विभिन्न धर्मों से संबंधित कुछ संस्कारों का विरोध करते रहते हैं जिसकी कोई आवश्यकता शायद नहीं है। ऐसा ही एक संस्कार करवा चौथ है। | ||
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...ये बंधन तो प्यार का बंधन है... | ...ये बंधन तो प्यार का बंधन है... | ||
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; दिनांक- 20 अक्तूबर, 2013 | |||
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महान दार्शनिक श्री जे. कृष्णमूर्ति से किसी ने पूछा "मैं अपने माता पिता को अहसास दिलाना चाहता हूँ कि | महान दार्शनिक श्री जे. कृष्णमूर्ति से किसी ने पूछा "मैं अपने माता पिता को अहसास दिलाना चाहता हूँ कि | ||
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कृष्णमूर्ति ने उत्तर दिया "सिर्फ़ इतना करें कि आप अपने माता पिता का अपमान करना बंद कर दें, | कृष्णमूर्ति ने उत्तर दिया "सिर्फ़ इतना करें कि आप अपने माता पिता का अपमान करना बंद कर दें, | ||
वे हमेशा अपने आप को सम्मानित ही महसूस करेंगे।" | वे हमेशा अपने आप को सम्मानित ही महसूस करेंगे।" | ||
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; दिनांक- 19 अक्तूबर, 2013 | |||
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जब प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक, कुमार गंधर्व जी से कहा | जब प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक, कुमार गंधर्व जी से कहा | ||
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और वही मेरा सबसे पहला श्रोता भी है, मेरा ईश्वर | और वही मेरा सबसे पहला श्रोता भी है, मेरा ईश्वर | ||
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; दिनांक- 17 अक्तूबर, 2013 | |||
[[चित्र:Guru-aur-aadar-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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जिसका आदर हम दिल से करते हैं , गुरु केवल वही होता है । जिसका हम आदर नहीं करते , वह गुरु कैसे हो सकता है ? इसलिए जगह-जगह यह लिखना कि- | जिसका आदर हम दिल से करते हैं , गुरु केवल वही होता है । जिसका हम आदर नहीं करते , वह गुरु कैसे हो सकता है ? इसलिए जगह-जगह यह लिखना कि- | ||
"गुरु का आदर करना चाहिए" | "गुरु का आदर करना चाहिए" | ||
कितना अर्थहीन है ! | कितना अर्थहीन है ! | ||
ठीक इसी तरह ‘ममतामयी’ | ठीक इसी तरह ‘ममतामयी’ माँ अथवा ‘आज्ञाकारी’ पुत्र आदि विशेषण युक्त शब्दों का भी कोई अर्थ नहीं है। यदि माँ होगी तो ममतामयी तो होगी ही अन्यथा कुमाता होगी, पुत्र तो वही है जो आज्ञाकारी हो, अन्यथा तो कुपुत्र ही होगा। | ||
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; दिनांक- 6 अक्तूबर, 2013 | |||
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यदि आप ‘कुछ अंतराल’ के लिए ख़ुद को व्यस्त बताते हैं, तब तो ठीक है... | यदि आप ‘कुछ अंतराल’ के लिए ख़ुद को व्यस्त बताते हैं, तब तो ठीक है... | ||
यदि आप, अपनी अनवरत व्यस्तता के संबंध में एक व्यापक घोषणा करते रहते हैं | यदि आप, अपनी अनवरत व्यस्तता के संबंध में एक व्यापक घोषणा करते रहते हैं | ||
कि आप व्यस्त हैं तो आज के समय में आप उपहास के ही पात्र हैं क्योंकि आज के समय में तो सभी व्यस्त हैं। व्यस्तता तो अब अप्रासंगिक हो गई है। | कि आप व्यस्त हैं तो आज के समय में आप उपहास के ही पात्र हैं क्योंकि आज के समय में तो सभी व्यस्त हैं। व्यस्तता तो अब अप्रासंगिक हो गई है। | ||
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; दिनांक- 2 अक्तूबर, 2013 | |||
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कुछ दिन पहले गाँधी जी के लेख को लेकर कुछ मुद्दे उठे थे। आज प्रसंग वश मैं इस संबंध में कुछ बातें बता रहा हूँ।... | कुछ दिन पहले गाँधी जी के लेख को लेकर कुछ मुद्दे उठे थे। आज प्रसंग वश मैं इस संबंध में कुछ बातें बता रहा हूँ।... | ||
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/). आज जब हम 70-80 साल बाद, स्वतंत्रता आंदोलन को सामान्य रूप से देखते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि उस समय सभी नेता केवल देश हित में लगे थे लेकिन जब बहुत गहराई से जानने का प्रयास करते हैं तो ये जानकर बड़ा सदमा लगता है कि भारत की आज़ादी से अधिक रुचि इस बात में थी कि आज़ाद भारत के शासन में हमारा हिस्सा क्या होगा। जैसे आज़ादी न हुई कोई लूटी हुई जायदाद हो गयी। | /). आज जब हम 70-80 साल बाद, स्वतंत्रता आंदोलन को सामान्य रूप से देखते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि उस समय सभी नेता केवल देश हित में लगे थे लेकिन जब बहुत गहराई से जानने का प्रयास करते हैं तो ये जानकर बड़ा सदमा लगता है कि भारत की आज़ादी से अधिक रुचि इस बात में थी कि आज़ाद भारत के शासन में हमारा हिस्सा क्या होगा। जैसे आज़ादी न हुई कोई लूटी हुई जायदाद हो गयी। | ||
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Latest revision as of 14:06, 2 June 2017
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