आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जुलाई 2014: Difference between revisions
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; दिनांक- 30 जुलाई, 2014 | |||
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कोई आएगा ये मुझको ख़याल रहता है। | कोई आएगा ये मुझको ख़याल रहता है। | ||
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इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है | इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है | ||
- आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
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; दिनांक- 29 जुलाई, 2014 | |||
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"सर ! ये आदमी रेलवे प्लॅटफ़ार्म पर अश्लील हरकत करते हुए पकड़ा गया है।" | "सर ! ये आदमी रेलवे प्लॅटफ़ार्म पर अश्लील हरकत करते हुए पकड़ा गया है।" | ||
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यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है दोस्तो ! कि जज साहब जाट थे और आपका छोटे पहलवान तो जाट है ही... | यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है दोस्तो ! कि जज साहब जाट थे और आपका छोटे पहलवान तो जाट है ही... | ||
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; दिनांक- 29 जुलाई, 2014 | |||
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हम मुस्लिमों की तरफ़ से हमारे सभी हिन्दू बहन-भाइयों को ईद-उल-फ़ित् र की बहुत-बहुत मुबारक़बाद। | हम मुस्लिमों की तरफ़ से हमारे सभी हिन्दू बहन-भाइयों को ईद-उल-फ़ित् र की बहुत-बहुत मुबारक़बाद। | ||
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[https://www.youtube.com/watch?v=PN2aelp3TLc&feature=youtu.be DARD SE MERA DAMAN BHAR DE YA ALLAH - LATA JEE] | [https://www.youtube.com/watch?v=PN2aelp3TLc&feature=youtu.be DARD SE MERA DAMAN BHAR DE YA ALLAH - LATA JEE] | ||
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; दिनांक- 25 जुलाई, 2014 | |||
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ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते | ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते | ||
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तेरी आमद जो हो जाती तो अपना घर बना लेते | तेरी आमद जो हो जाती तो अपना घर बना लेते | ||
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; दिनांक- 24 जुलाई, 2014 | |||
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क्या यही तुम्हारा विशेष है? | क्या यही तुम्हारा विशेष है? | ||
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फ़ेक है | फ़ेक है | ||
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; दिनांक- 24 जुलाई, 2014 | |||
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मैं उन लोगों में से हूँ जो अपने बचपन में सोने से पहले बिस्तर पर लेेटे-लेटे तब तक गायत्री मंत्र का पाठ करता था कि जब तक नींद न आ जाए। इम्तिहान के दिनों में 108 मनकों की एक माला रोज़ाना सरस्वती के बीज मंत्र की करनी होती थी। अपने घर में ही, रामचरित मानस के अखंड पाठ में, मैंने उस उम्र में हिस्सा लिया था जिस उम्र में बच्चे सिर्फ़ दौड़ने और पेड़ पर चढ़ने को ही बहुत बड़ा खेल समझते हैं। हनुमान चालीसा, गणेश वन्दना और ओम जय जगदीश हरे, गीता के श्लोक, वेद और उपनिषदों के कुछ श्लोक जैसे अनेक धार्मिक पाठ... मुझे रटे हुए थे। रामचरित मानस और महाभारत का कोई प्रसंग ऐसा नहीं था जो मुझसे अछूता रहा हो। | मैं उन लोगों में से हूँ जो अपने बचपन में सोने से पहले बिस्तर पर लेेटे-लेटे तब तक गायत्री मंत्र का पाठ करता था कि जब तक नींद न आ जाए। इम्तिहान के दिनों में 108 मनकों की एक माला रोज़ाना सरस्वती के बीज मंत्र की करनी होती थी। अपने घर में ही, रामचरित मानस के अखंड पाठ में, मैंने उस उम्र में हिस्सा लिया था जिस उम्र में बच्चे सिर्फ़ दौड़ने और पेड़ पर चढ़ने को ही बहुत बड़ा खेल समझते हैं। हनुमान चालीसा, गणेश वन्दना और ओम जय जगदीश हरे, गीता के श्लोक, वेद और उपनिषदों के कुछ श्लोक जैसे अनेक धार्मिक पाठ... मुझे रटे हुए थे। रामचरित मानस और महाभारत का कोई प्रसंग ऐसा नहीं था जो मुझसे अछूता रहा हो। | ||
धार्मिक सिनेमा की तो हालत यह थी कि 'बलराम श्रीकृष्ण' फ़िल्म देखने के लिए मैं लगातार पूरे सप्ताह अपनी | धार्मिक सिनेमा की तो हालत यह थी कि 'बलराम श्रीकृष्ण' फ़िल्म देखने के लिए मैं लगातार पूरे सप्ताह अपनी माँ के साथ जाता रहा। हनुमान और बलराम मेरे हीरो उसी तरह थे जैसे आजकल स्पाइडर मॅन और बॅटमॅन बच्चों के हीरो होते हैं। कृष्ण और अर्जुन मेरी दुर्गम लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा थे, हनुमान और भीम मेरी कसरत की प्रेरणा, एकलव्य और कर्ण का जीवन मुझे भावुक बना देता था। | ||
आज भी मैं धार्मिक और देशभक्ति के धारावाहिक टी॰वी॰ पर देखकर बेहद भावुक हो जाता हूँ। अक्सर रो पड़ता हूँ। राधा की विरह, सुदामा की बेबसी, भरत मिलाप, हनुमान की राम भक्ति, भीष्म की प्रतिज्ञा, राजा नल की विपत्ति, सावित्री-सत्यवान प्रसंग, कर्ण का दान आदि ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो आज भी मुझे भावुक बना देते हैं। | आज भी मैं धार्मिक और देशभक्ति के धारावाहिक टी॰वी॰ पर देखकर बेहद भावुक हो जाता हूँ। अक्सर रो पड़ता हूँ। राधा की विरह, सुदामा की बेबसी, भरत मिलाप, हनुमान की राम भक्ति, भीष्म की प्रतिज्ञा, राजा नल की विपत्ति, सावित्री-सत्यवान प्रसंग, कर्ण का दान आदि ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो आज भी मुझे भावुक बना देते हैं। | ||
हम बचपन को छोड़ आते हैं... कमबख़्त बचपन हमें नहीं छोड़ता। | हम बचपन को छोड़ आते हैं... कमबख़्त बचपन हमें नहीं छोड़ता। | ||
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सबसे प्यारा गुलिस्तां हमारा है" | सबसे प्यारा गुलिस्तां हमारा है" | ||
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; दिनांक- 24 जुलाई, 2014 | |||
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मृत्यु जीवन की परछाईं है | मृत्यु जीवन की परछाईं है | ||
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हमारा जन्मदिन ही हमारी मृत्यु का भी जन्मदिन भी होता है और हमारा मृत्युदिन हमारी मृत्यु का मृत्युदिन भी... | हमारा जन्मदिन ही हमारी मृत्यु का भी जन्मदिन भी होता है और हमारा मृत्युदिन हमारी मृत्यु का मृत्युदिन भी... | ||
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; दिनांक- 19 जुलाई, 2014 | |||
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इस दुनिया में, वास्तविक रूप से, अपनी ग़लती मान लेने वाला व्यक्ति ही, निर्विवाद रूप से बुद्धिमान होता है। | इस दुनिया में, वास्तविक रूप से, अपनी ग़लती मान लेने वाला व्यक्ति ही, निर्विवाद रूप से बुद्धिमान होता है। | ||
इसके अलावा जितने भी बुद्धि के पैमाने हैं वे सब बहुत बाद में अपनी भूमिका रखते हैं। | इसके अलावा जितने भी बुद्धि के पैमाने हैं वे सब बहुत बाद में अपनी भूमिका रखते हैं। | ||
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; दिनांक- 19 जुलाई, 2014 | |||
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मेरे एक पुराने मित्र आए और उन्होंने जो कुछ मुझसे कहा उसे थोड़ा सभ्य भाषा में प्रस्तुत कर रहा हूँ- | मेरे एक पुराने मित्र आए और उन्होंने जो कुछ मुझसे कहा उसे थोड़ा सभ्य भाषा में प्रस्तुत कर रहा हूँ- | ||
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इस लॅक्चर के बाद मैंने उनसे कहा- | इस लॅक्चर के बाद मैंने उनसे कहा- | ||
1857 में मेरे प्रपितामह बाबा देवकरण सिंह को विद्रोह करने पर अंग्रेज़ों ने | 1857 में मेरे प्रपितामह बाबा देवकरण सिंह को विद्रोह करने पर अंग्रेज़ों ने फाँसी दी थी। उनको गिरफ़्तार करवाने वाले एक ज़मीदार को इनाम में एक और ज़मीदारी दी गई। मेरे पर दादा को क्या मिला ? पूछा मैंने। भरी जवानी में मेरे पिता को अंग्रेज़ो ने जेल में डाल दिया, उन्हें क्या मिला। ये भी पूछा मैंने। | ||
और मैं ! मैं तो उनका बस एक नालायक़ सा वंशज हूँ। मेरी औक़ात ही क्या है ! जो कुछ कर रहा हूँ वो बहुत-बहुत कम है... | और मैं ! मैं तो उनका बस एक नालायक़ सा वंशज हूँ। मेरी औक़ात ही क्या है ! जो कुछ कर रहा हूँ वो बहुत-बहुत कम है... | ||
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मेरे दोस्तो ! मैं पागल था, पागल हूँ और पागल ही रहूँगा। इसलिए परेशान होने के ज़रूरत नहीं है। हो सके तो भारतकोश की कुछ आर्थिक मदद करो... या...। | मेरे दोस्तो ! मैं पागल था, पागल हूँ और पागल ही रहूँगा। इसलिए परेशान होने के ज़रूरत नहीं है। हो सके तो भारतकोश की कुछ आर्थिक मदद करो... या...। | ||
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; दिनांक- 19 जुलाई, 2014 | |||
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जब कोई मरता है तो कहते हैं- "वे भगवान को प्यारे हो गए" | जब कोई मरता है तो कहते हैं- "वे भगवान को प्यारे हो गए" | ||
जीते जी भगवान के प्यारे होने का कोई तरीक़ा नहीं है क्या ? | जीते जी भगवान के प्यारे होने का कोई तरीक़ा नहीं है क्या ? | ||
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; दिनांक- 14 जुलाई, 2014 | |||
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जावेद अख़्तर की बेमिसाल रचना है। जब भी सुनता हूँ, रो पड़ता हूँ। भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में असमी और बंगाली रंग है। इसलिए किसी-किसी को ये आवाज़ पसंद नहीं आती... मगर इतना तो यक़ीं है कि ये ग़ज़ब है... अगर पूरा सुन लें तो... | जावेद अख़्तर की बेमिसाल रचना है। जब भी सुनता हूँ, रो पड़ता हूँ। भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में असमी और बंगाली रंग है। इसलिए किसी-किसी को ये आवाज़ पसंद नहीं आती... मगर इतना तो यक़ीं है कि ये ग़ज़ब है... अगर पूरा सुन लें तो... | ||
[https://www.youtube.com/watch?v=L7moo13O_P8&feature=youtu.be Duniya Parayee Log Yahan Begane] | [https://www.youtube.com/watch?v=L7moo13O_P8&feature=youtu.be Duniya Parayee Log Yahan Begane] | ||
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; दिनांक- 13 जुलाई, 2014 | |||
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हे ईश्वर ! तूने एक करोड़ से ज़्यादा भारत वासियों पर ज़रा भी रहम नहीं किया। मुढ़िया पूनो पर इस आग बरसाती गर्मी में वे श्रद्धालु मथुरा में, गिरिराज महाराज की परिक्रमा लगाते रहे। उनके पैर जलते रहे, दण्डौती देने में जिस्म झुलसते रहे। अब कम से कम रोज़ा रखने वालों पर तो नज़र-ओ-करम रख कि पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर वो तुझे याद करते हैं। अब तो बरस... वरना कौन तुझ पर भरोसा करेगा। | हे ईश्वर ! तूने एक करोड़ से ज़्यादा भारत वासियों पर ज़रा भी रहम नहीं किया। मुढ़िया पूनो पर इस आग बरसाती गर्मी में वे श्रद्धालु मथुरा में, गिरिराज महाराज की परिक्रमा लगाते रहे। उनके पैर जलते रहे, दण्डौती देने में जिस्म झुलसते रहे। अब कम से कम रोज़ा रखने वालों पर तो नज़र-ओ-करम रख कि पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर वो तुझे याद करते हैं। अब तो बरस... वरना कौन तुझ पर भरोसा करेगा। | ||
लगता है तुझे अहसास नहीं है गर्मी का... | लगता है तुझे अहसास नहीं है गर्मी का... | ||
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; दिनांक- 10 जुलाई, 2014 | |||
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अभी-अभी दु:ख भरा समाचार मिला कि | अभी-अभी दु:ख भरा समाचार मिला कि महान् शख़्सियत श्रीमती ज़ोहरा सहगल नहीं रहीं। मुझे जिनसे प्रेरणा मिलती थी उनमें ज़ोहरा जी का नाम बहुत-बहुत ऊँचा था। ऐसे लोग बार-बार नहीं जन्मा करते। उन्होंने जो जगह ख़ाली की उसे भरना असंभव है। मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, जब कि वे हमारी दूर की रिश्तेदार भी थीं। | ||
ज़िन्दा दिल लोग सिर्फ़ जीते हैं मरते नहीं | ज़िन्दा दिल लोग सिर्फ़ जीते हैं मरते नहीं | ||
Line 252: | Line 232: | ||
विनम्र श्रद्धाञ्जलि | विनम्र श्रद्धाञ्जलि | ||
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; दिनांक- 4 जुलाई, 2014 | |||
<poem> | <poem> | ||
"रात निर्मला दिन परछांई | "रात निर्मला दिन परछांई | ||
Line 261: | Line 240: | ||
परसों अम्माजी ने यह सुनाया जिसका अर्थ है कि यदि रात में बादल नहीं हैं और सिर्फ़ दिन में ही होते हैं तो वर्षा की संभावना नहीं होती। | परसों अम्माजी ने यह सुनाया जिसका अर्थ है कि यदि रात में बादल नहीं हैं और सिर्फ़ दिन में ही होते हैं तो वर्षा की संभावना नहीं होती। | ||
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; दिनांक- 4 जुलाई, 2014 | |||
<poem> | <poem> | ||
चीन की सेना ने छ: महीने की कठोर अभ्यास का पाठ्यक्रम शुरू किया है। यह विशेष रूप से उन किशोर/किशोरियों के लिए है जो इंटरनेट पर अपना समय बिताते हैं। इनकी हालत दीवानों जैसी है और इंटरनेट की दुनिया ही इनकी वास्तविक दुनिया बनती जा रही है। इससे इन छात्रों के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। दिमाग़, हाथ-पैर, पाचन-तंत्र आदि सब बेकार होते जा रहे हैं। चीन में ऐसे छात्रों को तलाश कर सूची बद्ध किया जा रहा है। | चीन की सेना ने छ: महीने की कठोर अभ्यास का पाठ्यक्रम शुरू किया है। यह विशेष रूप से उन किशोर/किशोरियों के लिए है जो इंटरनेट पर अपना समय बिताते हैं। इनकी हालत दीवानों जैसी है और इंटरनेट की दुनिया ही इनकी वास्तविक दुनिया बनती जा रही है। इससे इन छात्रों के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। दिमाग़, हाथ-पैर, पाचन-तंत्र आदि सब बेकार होते जा रहे हैं। चीन में ऐसे छात्रों को तलाश कर सूची बद्ध किया जा रहा है। | ||
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ज़रा सोचिए कि चीन की आबादी भारत से ज़्यादा है... | ज़रा सोचिए कि चीन की आबादी भारत से ज़्यादा है... | ||
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; दिनांक- 4 जुलाई, 2014 | |||
[[चित्र:Sun-le.jpg|right|250px]] | |||
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मैं जहाँ से दिल की कह दूँ | |||
तू वहाँ से इसको सुन ले | |||
मैं वहाँ से दिल की कह दूँ | |||
तू यहाँ से इसको सुन ले | |||
मैं कहाँ से दिल की कह दूँ | |||
तू जहाँ से इसको सुन ले | |||
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Latest revision as of 10:41, 2 January 2018
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