आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जुलाई 2014: Difference between revisions
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मैं उन लोगों में से हूँ जो अपने बचपन में सोने से पहले बिस्तर पर लेेटे-लेटे तब तक गायत्री मंत्र का पाठ करता था कि जब तक नींद न आ जाए। इम्तिहान के दिनों में 108 मनकों की एक माला रोज़ाना सरस्वती के बीज मंत्र की करनी होती थी। अपने घर में ही, रामचरित मानस के अखंड पाठ में, मैंने उस उम्र में हिस्सा लिया था जिस उम्र में बच्चे सिर्फ़ दौड़ने और पेड़ पर चढ़ने को ही बहुत बड़ा खेल समझते हैं। हनुमान चालीसा, गणेश वन्दना और ओम जय जगदीश हरे, गीता के श्लोक, वेद और उपनिषदों के कुछ श्लोक जैसे अनेक धार्मिक पाठ... मुझे रटे हुए थे। रामचरित मानस और महाभारत का कोई प्रसंग ऐसा नहीं था जो मुझसे अछूता रहा हो। | मैं उन लोगों में से हूँ जो अपने बचपन में सोने से पहले बिस्तर पर लेेटे-लेटे तब तक गायत्री मंत्र का पाठ करता था कि जब तक नींद न आ जाए। इम्तिहान के दिनों में 108 मनकों की एक माला रोज़ाना सरस्वती के बीज मंत्र की करनी होती थी। अपने घर में ही, रामचरित मानस के अखंड पाठ में, मैंने उस उम्र में हिस्सा लिया था जिस उम्र में बच्चे सिर्फ़ दौड़ने और पेड़ पर चढ़ने को ही बहुत बड़ा खेल समझते हैं। हनुमान चालीसा, गणेश वन्दना और ओम जय जगदीश हरे, गीता के श्लोक, वेद और उपनिषदों के कुछ श्लोक जैसे अनेक धार्मिक पाठ... मुझे रटे हुए थे। रामचरित मानस और महाभारत का कोई प्रसंग ऐसा नहीं था जो मुझसे अछूता रहा हो। | ||
धार्मिक सिनेमा की तो हालत यह थी कि 'बलराम श्रीकृष्ण' फ़िल्म देखने के लिए मैं लगातार पूरे सप्ताह अपनी | धार्मिक सिनेमा की तो हालत यह थी कि 'बलराम श्रीकृष्ण' फ़िल्म देखने के लिए मैं लगातार पूरे सप्ताह अपनी माँ के साथ जाता रहा। हनुमान और बलराम मेरे हीरो उसी तरह थे जैसे आजकल स्पाइडर मॅन और बॅटमॅन बच्चों के हीरो होते हैं। कृष्ण और अर्जुन मेरी दुर्गम लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा थे, हनुमान और भीम मेरी कसरत की प्रेरणा, एकलव्य और कर्ण का जीवन मुझे भावुक बना देता था। | ||
आज भी मैं धार्मिक और देशभक्ति के धारावाहिक टी॰वी॰ पर देखकर बेहद भावुक हो जाता हूँ। अक्सर रो पड़ता हूँ। राधा की विरह, सुदामा की बेबसी, भरत मिलाप, हनुमान की राम भक्ति, भीष्म की प्रतिज्ञा, राजा नल की विपत्ति, सावित्री-सत्यवान प्रसंग, कर्ण का दान आदि ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो आज भी मुझे भावुक बना देते हैं। | आज भी मैं धार्मिक और देशभक्ति के धारावाहिक टी॰वी॰ पर देखकर बेहद भावुक हो जाता हूँ। अक्सर रो पड़ता हूँ। राधा की विरह, सुदामा की बेबसी, भरत मिलाप, हनुमान की राम भक्ति, भीष्म की प्रतिज्ञा, राजा नल की विपत्ति, सावित्री-सत्यवान प्रसंग, कर्ण का दान आदि ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो आज भी मुझे भावुक बना देते हैं। | ||
हम बचपन को छोड़ आते हैं... कमबख़्त बचपन हमें नहीं छोड़ता। | हम बचपन को छोड़ आते हैं... कमबख़्त बचपन हमें नहीं छोड़ता। | ||
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समाजवादी दक्षिणपंथी हूँ | समाजवादी दक्षिणपंथी हूँ | ||
भावुक यथार्थवादी हूँ | भावुक यथार्थवादी हूँ | ||
संन्यासी गृहस्थ हूँ" | |||
अलबत्ता एक बात तो पक्की है कि | अलबत्ता एक बात तो पक्की है कि | ||
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इस लॅक्चर के बाद मैंने उनसे कहा- | इस लॅक्चर के बाद मैंने उनसे कहा- | ||
1857 में मेरे प्रपितामह बाबा देवकरण सिंह को विद्रोह करने पर अंग्रेज़ों ने | 1857 में मेरे प्रपितामह बाबा देवकरण सिंह को विद्रोह करने पर अंग्रेज़ों ने फाँसी दी थी। उनको गिरफ़्तार करवाने वाले एक ज़मीदार को इनाम में एक और ज़मीदारी दी गई। मेरे पर दादा को क्या मिला ? पूछा मैंने। भरी जवानी में मेरे पिता को अंग्रेज़ो ने जेल में डाल दिया, उन्हें क्या मिला। ये भी पूछा मैंने। | ||
और मैं ! मैं तो उनका बस एक नालायक़ सा वंशज हूँ। मेरी औक़ात ही क्या है ! जो कुछ कर रहा हूँ वो बहुत-बहुत कम है... | और मैं ! मैं तो उनका बस एक नालायक़ सा वंशज हूँ। मेरी औक़ात ही क्या है ! जो कुछ कर रहा हूँ वो बहुत-बहुत कम है... | ||
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अभी-अभी दु:ख भरा समाचार मिला कि | अभी-अभी दु:ख भरा समाचार मिला कि महान् शख़्सियत श्रीमती ज़ोहरा सहगल नहीं रहीं। मुझे जिनसे प्रेरणा मिलती थी उनमें ज़ोहरा जी का नाम बहुत-बहुत ऊँचा था। ऐसे लोग बार-बार नहीं जन्मा करते। उन्होंने जो जगह ख़ाली की उसे भरना असंभव है। मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, जब कि वे हमारी दूर की रिश्तेदार भी थीं। | ||
ज़िन्दा दिल लोग सिर्फ़ जीते हैं मरते नहीं | ज़िन्दा दिल लोग सिर्फ़ जीते हैं मरते नहीं |
Latest revision as of 10:41, 2 January 2018
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