अशोकवनिका: Difference between revisions

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'''अशोकवनिका''' को [[अशोकवाटिका]] भी कहा जाता है।  
'''अशोकवनिका''' को [[अशोकवाटिका]] भी कहा जाता है। [[रामायण|वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार [[लंका]] में स्थित एक सुंदर उद्यान था जिसमें [[रावण]] ने [[सीता]] को बंदी बनाकर रखा था-
<poem>'अशोकवनिकामध्ये मैथिलीं नीयतामिति,
तत्रेयं रक्ष्यतां गूढं युष्माभि: परिवारिता।'<ref>[[अरण्य काण्ड वा. रा.]] 56, 30</ref></poem>
[[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]]<ref>अरण्य काण्ड वा. रा. 55</ref> से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राज प्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था। किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कारभाव देखकर उसे धीरे-धीरे मना लेने के लिए प्रासाद से कुछ दूर अशोकवाटिका में कैद कर दिया था। सुंदर कांड<ref>सुंदर कांड 18</ref> में अशोकवाटिका का सुंदर वर्णन है-
<poem>'तां नगैर्विविधैर्जुष्टां सर्वपुष्पफलोपगै:,
वृतां पुष्करिणीभिश्च नानापुष्पोपशोभिताम्।
सदा मत्तैश्च विहगैर्विचित्रां परमाद्भुतै: ईहामृगैश्च विविधैर्वृता दृष्टिमनोहरै:।
वीथी: संप्रेक्षमाणश्च मणिकांचनातोरणाम् नानामृगगणाकीर्णां फलै: प्रपतितैर्वृताम्,
अशोकवनिकामेव प्राविवशत्संततद्रुमाम्।'<ref>सुंदर कांड 18, 6-9</ref></poem>
[[अध्यात्म रामायण]] में भी [[सीता]] का अशोकवनिका या अशोकविपिन में रखे जाने का उल्लेख है-
<poem>'स्वान्त:पुरे रहस्ये तामशोकविपिने क्षिपत्, 
राक्षसीभि: परिवृतां मातृबुद्धयान्वपालयत्।'<ref>[[अरण्य काण्ड वा. रा.]] 7, 65</ref></poem>
[[वाल्मीकि]] ने सुंदर कांड<ref>सुंदर कांड 3,71</ref> में [[हनुमान]] द्वारा अशोकवाटिका के उजाड़े जाने का वर्णन है-
<poem>'इतिनिश्चित्य मनसा वृक्षखंडान्महाबल:,
उत्पाट्याशोकवनिकां निवृक्षामकरोत् क्षणात्।'<ref>सुंदर कांड 3, 71</ref></poem>
अशोकवाटिका में [[हनुमान]] ने [[साल वृक्ष|साल]], [[अशोक वृक्ष|अशोक]], चंपक, उद्दालक, नांग, आम्र तथा कपिमुख नामक [[वृक्ष|वृक्षों]] को देखा था। उन्होंने एक [[शीशम]] के वृक्ष पर चढ़ कर प्रथम बार सीता को देखा था-
<poem>'सुपुष्पिताग्रानरुचिरांस्तरुणांकुरपल्लवान्,
तामारुह्य महावेग: शिंशपापर्णसंवृताम्।<ref>सुंदर कांड 14, 14</ref></poem>
इसी वृक्ष के नीचे उन्होंने सीता से भेंट की थी।<ref>देखें अध्यात्म रामायण सुंदर कांड 3, 14- 'शनैरशोक वनिकां विचिन्वञ् शिंशपातरुम्, अद्राक्षं जानकीमत्र शोचयन्तीं दु:खसंप्लुताम्' </ref><ref>पुस्तक- ऐतिहासिक स्थानावली | लेखक- विजयेन्द्र कुमार माथुर | पृष्ठ संख्या- 49 </ref>


{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अशोकवाटिका]]
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अशोकवाटिका]]


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Latest revision as of 10:44, 4 May 2018

अशोकवनिका को अशोकवाटिका भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका में स्थित एक सुंदर उद्यान था जिसमें रावण ने सीता को बंदी बनाकर रखा था-

'अशोकवनिकामध्ये मैथिलीं नीयतामिति,
तत्रेयं रक्ष्यतां गूढं युष्माभि: परिवारिता।'[1]

अरण्य काण्ड[2] से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राज प्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था। किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कारभाव देखकर उसे धीरे-धीरे मना लेने के लिए प्रासाद से कुछ दूर अशोकवाटिका में कैद कर दिया था। सुंदर कांड[3] में अशोकवाटिका का सुंदर वर्णन है-

'तां नगैर्विविधैर्जुष्टां सर्वपुष्पफलोपगै:,
वृतां पुष्करिणीभिश्च नानापुष्पोपशोभिताम्।
सदा मत्तैश्च विहगैर्विचित्रां परमाद्भुतै: ईहामृगैश्च विविधैर्वृता दृष्टिमनोहरै:।
वीथी: संप्रेक्षमाणश्च मणिकांचनातोरणाम् नानामृगगणाकीर्णां फलै: प्रपतितैर्वृताम्,
अशोकवनिकामेव प्राविवशत्संततद्रुमाम्।'[4]

अध्यात्म रामायण में भी सीता का अशोकवनिका या अशोकविपिन में रखे जाने का उल्लेख है-

'स्वान्त:पुरे रहस्ये तामशोकविपिने क्षिपत्,
राक्षसीभि: परिवृतां मातृबुद्धयान्वपालयत्।'[5]

वाल्मीकि ने सुंदर कांड[6] में हनुमान द्वारा अशोकवाटिका के उजाड़े जाने का वर्णन है-

'इतिनिश्चित्य मनसा वृक्षखंडान्महाबल:,
उत्पाट्याशोकवनिकां निवृक्षामकरोत् क्षणात्।'[7]

अशोकवाटिका में हनुमान ने साल, अशोक, चंपक, उद्दालक, नांग, आम्र तथा कपिमुख नामक वृक्षों को देखा था। उन्होंने एक शीशम के वृक्ष पर चढ़ कर प्रथम बार सीता को देखा था-

'सुपुष्पिताग्रानरुचिरांस्तरुणांकुरपल्लवान्,
तामारुह्य महावेग: शिंशपापर्णसंवृताम्।[8]

इसी वृक्ष के नीचे उन्होंने सीता से भेंट की थी।[9][10]

{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- अशोकवाटिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अरण्य काण्ड वा. रा. 56, 30
  2. अरण्य काण्ड वा. रा. 55
  3. सुंदर कांड 18
  4. सुंदर कांड 18, 6-9
  5. अरण्य काण्ड वा. रा. 7, 65
  6. सुंदर कांड 3,71
  7. सुंदर कांड 3, 71
  8. सुंदर कांड 14, 14
  9. देखें अध्यात्म रामायण सुंदर कांड 3, 14- 'शनैरशोक वनिकां विचिन्वञ् शिंशपातरुम्, अद्राक्षं जानकीमत्र शोचयन्तीं दु:खसंप्लुताम्'
  10. पुस्तक- ऐतिहासिक स्थानावली | लेखक- विजयेन्द्र कुमार माथुर | पृष्ठ संख्या- 49

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख