सुषेण वैद्य: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:पौराणिक चरित्र (Redirect Category:पौराणिक चरित्र resolved) (को हटा दिया गया हैं।))
m (Text replacement - "विलंब" to "विलम्ब")
 
(6 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
*[[रामायण]] में सुषेण एक वैद्य था। उसने [[मेघनाद]] वध के संदर्भ में घायल [[लक्ष्मण]] की चिकित्सा की थी।<ref>बाल्मीकि रामायण, युद्धकांड, 92।15-26</ref>
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=सुषेण|लेख का नाम=सुषेण (बहुविकल्पी)}}


'''सुषेण वैद्य''' का उल्लेख [[रामायण]] में हुआ है। रामायणानुसार सुषेण [[लंका]] के राजा राक्षसराज [[रावण]] का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र [[मेघनाद]] के साथ हुए भीषण युद्ध में [[लक्ष्मण]] घायल होकर मूर्छित हो गये, तब सुषेण ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी।<ref>बाल्मीकि रामायण, युद्धकांड, 92।15-26</ref> उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाये जा सकते हैं, [[राम]] भक्त [[हनुमान]] ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राण बचाये जा सके।
==अपहरण==
जब रावण के पुत्र मेघनाद के [[बाण अस्त्र|बाण]] से लक्ष्मण मूर्छित हो गए तो भगवान राम ने [[विभीषण]] से सलाह ली कि वैद्य कहाँ मिल सकता है। विभीषण ने कहा- "लंका में एक वैद्य है, जिसका नाम सुषेण है, लेकिन वे लक्ष्मण के उपचार के लिए आएंगे कि नहीं, यह कहना मुश्किल है। यह बात हनुमान ने सुन ली। उन्होंने कहा कि मैं सुषेण को उठा लाता हूँ। हनुमान लंका गए और उस भवन को ही उठा लाए, जिसमें सुषेण वैद्य सोए हुए थे। उन्हें जगाया गया। सुषेण समझदार थे। समझ गए कि उन्हें किसी अत्यंत बलशाली व्यक्ति ने बुलाया है। वरना भवन के एक हिस्से को उठाने की ताकत तो किसी में नहीं है। [[श्रीराम]] ने सुषेण के समक्ष समस्या बताई और लक्ष्मण के उपचार के लिए कहा। सुषेण ने कहा कि- "मंदार पर्वत पर संजीवनी बूटी है। यदि संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्मण जी तुरंत होश में आ जाएंगे और उनमें पहले से भी अधिक शक्ति आ जाएगी।" [[हनुमान]] इस कार्य के लिए तत्पर थे। सुषेण ने उन्हें बूटी का [[रंग]]-रूप और पहचान आदि बतला दी और तुरंत ही लाने को कहा।
==हनुमान द्वारा संजीवनी लाना==
[[चित्र:Hanuman.jpg|thumb|200px|संजीवनी ले जाते हनुमान]]
हनुमान जी तुरंत उड़ कर मंदार पर्वत गए, लेकिन वहाँ एक ही तरह की लाखों जड़ी-बूटियाँ देख कर उन्हें समझ में नहीं आया कि कौन-सी बूटी ले जानी है। इसलिए वे समूचा पर्वत ही उखाड़ कर ले उड़े। रास्ते में [[अयोध्या]] नगरी पड़ती थी। [[हनुमान]] की विराट छाया जब पृथ्वी पर पड़ी तो उस समय राम के प्रतिनिधी के रूप में राज्य कर रहे उनके भाई [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] ने आसमान की तरफ़ देखा और पाया कि कोई विशाल जीव उड़ा जा रहा है। उन्होंने तत्काल ही हनुमान पर तीर चलाया, जिससे हनुमान बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। इस समय हनुमार श्रीराम को याद कर रहे थे, उनके मुख से राम-राम का स्वर निकल रहा था। राम-राम का स्वर सुनकर भरत चौंक उठे। उन्होंने शीघ्र ही हनुमान का सिर अपनी गोद में रखा और उन्हें होश में लाकर उनका परिचय और पहाड़ ले जाने का कारण पूछा।


{{प्रचार}}
[[हनुमान]] ने बताया कि युद्ध में [[लक्ष्मण]] बेहोश हैं और उनके प्राण मेघनाद की शक्ति से संकट में है। इसीलिए ये बूटी में उन्हीं के उपचार के लिए ले जा रहा हूँ। तब भरत जी बेहद दुखी हुए। उन्होंने खुद को कोसा कि वे किस प्रकार अनजाने में ही भाई की चिकित्सा में विलम्ब कर रहे हैं। उन्होंने हनुमान का सत्कार किया और एक [[बाण अस्त्र|बाण]] इस प्रकार छोड़ा, जो हनुमान जी को लेकर सीधे [[राम]] और [[लक्ष्मण]] के पास चला गया। सुषेण वैध हनुमान के पराक्रम को समझ चुके थे। इसलिए तुरंत उन्होंने उपलब्ध जड़ी-बूटी से लक्ष्मण को ठीक कर दिया।
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}


{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://vinaybiharisingh.blogspot.in/2010/01/blog-post_04.html समूचा पहाड़ ही उठा लाये पवनसुत]
*[http://darpan1.blogspot.in/2008/08/blog-post_24.html संजीवनी बूटी वाला पहाड़]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{रामायण}}
{{रामायण}}
[[Category:रामायण]]
[[Category:रामायण]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 09:06, 10 February 2021

चित्र:Disamb2.jpg सुषेण एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुषेण (बहुविकल्पी)

सुषेण वैद्य का उल्लेख रामायण में हुआ है। रामायणानुसार सुषेण लंका के राजा राक्षसराज रावण का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र मेघनाद के साथ हुए भीषण युद्ध में लक्ष्मण घायल होकर मूर्छित हो गये, तब सुषेण ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी।[1] उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाये जा सकते हैं, राम भक्त हनुमान ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राण बचाये जा सके।

अपहरण

जब रावण के पुत्र मेघनाद के बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए तो भगवान राम ने विभीषण से सलाह ली कि वैद्य कहाँ मिल सकता है। विभीषण ने कहा- "लंका में एक वैद्य है, जिसका नाम सुषेण है, लेकिन वे लक्ष्मण के उपचार के लिए आएंगे कि नहीं, यह कहना मुश्किल है। यह बात हनुमान ने सुन ली। उन्होंने कहा कि मैं सुषेण को उठा लाता हूँ। हनुमान लंका गए और उस भवन को ही उठा लाए, जिसमें सुषेण वैद्य सोए हुए थे। उन्हें जगाया गया। सुषेण समझदार थे। समझ गए कि उन्हें किसी अत्यंत बलशाली व्यक्ति ने बुलाया है। वरना भवन के एक हिस्से को उठाने की ताकत तो किसी में नहीं है। श्रीराम ने सुषेण के समक्ष समस्या बताई और लक्ष्मण के उपचार के लिए कहा। सुषेण ने कहा कि- "मंदार पर्वत पर संजीवनी बूटी है। यदि संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्मण जी तुरंत होश में आ जाएंगे और उनमें पहले से भी अधिक शक्ति आ जाएगी।" हनुमान इस कार्य के लिए तत्पर थे। सुषेण ने उन्हें बूटी का रंग-रूप और पहचान आदि बतला दी और तुरंत ही लाने को कहा।

हनुमान द्वारा संजीवनी लाना

thumb|200px|संजीवनी ले जाते हनुमान हनुमान जी तुरंत उड़ कर मंदार पर्वत गए, लेकिन वहाँ एक ही तरह की लाखों जड़ी-बूटियाँ देख कर उन्हें समझ में नहीं आया कि कौन-सी बूटी ले जानी है। इसलिए वे समूचा पर्वत ही उखाड़ कर ले उड़े। रास्ते में अयोध्या नगरी पड़ती थी। हनुमान की विराट छाया जब पृथ्वी पर पड़ी तो उस समय राम के प्रतिनिधी के रूप में राज्य कर रहे उनके भाई भरत ने आसमान की तरफ़ देखा और पाया कि कोई विशाल जीव उड़ा जा रहा है। उन्होंने तत्काल ही हनुमान पर तीर चलाया, जिससे हनुमान बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। इस समय हनुमार श्रीराम को याद कर रहे थे, उनके मुख से राम-राम का स्वर निकल रहा था। राम-राम का स्वर सुनकर भरत चौंक उठे। उन्होंने शीघ्र ही हनुमान का सिर अपनी गोद में रखा और उन्हें होश में लाकर उनका परिचय और पहाड़ ले जाने का कारण पूछा।

हनुमान ने बताया कि युद्ध में लक्ष्मण बेहोश हैं और उनके प्राण मेघनाद की शक्ति से संकट में है। इसीलिए ये बूटी में उन्हीं के उपचार के लिए ले जा रहा हूँ। तब भरत जी बेहद दुखी हुए। उन्होंने खुद को कोसा कि वे किस प्रकार अनजाने में ही भाई की चिकित्सा में विलम्ब कर रहे हैं। उन्होंने हनुमान का सत्कार किया और एक बाण इस प्रकार छोड़ा, जो हनुमान जी को लेकर सीधे राम और लक्ष्मण के पास चला गया। सुषेण वैध हनुमान के पराक्रम को समझ चुके थे। इसलिए तुरंत उन्होंने उपलब्ध जड़ी-बूटी से लक्ष्मण को ठीक कर दिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बाल्मीकि रामायण, युद्धकांड, 92।15-26

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख