आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जनवरी 2014: Difference between revisions
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; दिनांक- 30 जनवरी, 2014 | |||
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पिकासो की मशहूर पेंटिंग 'ग्वेर्निका', फ़्रॅन्ज़ काफ़्का की कहानी 'मॅटा मॉर्फ़ोसिस', मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में', वॅन गॉफ़ के सॅल्फ़ पोट्रेट और 'सनफ़्लावर', ऑल्वेयर कामू का उपन्यास 'ला पेस्त', हेमिंग्वे का उपन्यास 'द ओल्ड मैन एंड द सी', अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म 'राशोमन' आदि कला के चरम को छूने के बाद की प्रयोगात्मक अद्भुत कृतियाँ हैं। | पिकासो की मशहूर पेंटिंग 'ग्वेर्निका', फ़्रॅन्ज़ काफ़्का की कहानी 'मॅटा मॉर्फ़ोसिस', मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में', वॅन गॉफ़ के सॅल्फ़ पोट्रेट और 'सनफ़्लावर', ऑल्वेयर कामू का उपन्यास 'ला पेस्त', हेमिंग्वे का उपन्यास 'द ओल्ड मैन एंड द सी', अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म 'राशोमन' आदि कला के चरम को छूने के बाद की प्रयोगात्मक अद्भुत कृतियाँ हैं। | ||
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मनोरंजन तो कला की श्रेणियों के अथाह समंदर की एक चुलबुली सी श्रेणी मात्र है। | मनोरंजन तो कला की श्रेणियों के अथाह समंदर की एक चुलबुली सी श्रेणी मात्र है। | ||
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; दिनांक- 17 जनवरी, 2014 | |||
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मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं- | मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं- | ||
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मैं सोचा करता था कि जिस ठंड में चिल्लाने लगें तो वही 'चिल्ला जाड़ा!' लेकिन मन में ये बात तो रहती थी कि शायद मैं ग़लत हूँ। बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी, तब मैंने सोचा कि शायद कमान के चिल्ले की वजह से चिल्ला जाड़े कहते हैं लेकिन बाद में मेरे इस हास्यास्पद शोध को तब बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 'चिल्ला' शब्द फ़ारसी भाषा में चालीस दिन के अंतराल के लिए कहा जाता है, फिर ध्यान आया कि अरे हाँ... कहा भी तो 'चालीस दिन का चिल्ला' ही जाता है। | मैं सोचा करता था कि जिस ठंड में चिल्लाने लगें तो वही 'चिल्ला जाड़ा!' लेकिन मन में ये बात तो रहती थी कि शायद मैं ग़लत हूँ। बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी, तब मैंने सोचा कि शायद कमान के चिल्ले की वजह से चिल्ला जाड़े कहते हैं लेकिन बाद में मेरे इस हास्यास्पद शोध को तब बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 'चिल्ला' शब्द फ़ारसी भाषा में चालीस दिन के अंतराल के लिए कहा जाता है, फिर ध्यान आया कि अरे हाँ... कहा भी तो 'चालीस दिन का चिल्ला' ही जाता है। | ||
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; दिनांक- 16 जनवरी, 2014 | |||
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निर्भय दामिनी को एक वर्ष होने पर... | निर्भय दामिनी को एक वर्ष होने पर... | ||
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कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ | कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ | ||
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; दिनांक- 16 जनवरी, 2014 | |||
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उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | ||
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क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो | क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो | ||
उन्हीं का ज़िक्र हो जब मेरा जनाज़ा जाय | |||
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | ||
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | ||
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; दिनांक- 15 जनवरी, 2014 | |||
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हे कृष्ण ! | हे कृष्ण ! | ||
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हे बुद्ध ! | हे बुद्ध ! | ||
छोड़ा यशोधरा-राहुल को | छोड़ा यशोधरा-राहुल को | ||
सन्न्यास लिया | |||
नया पाठ सिखलाया दुनिया को | नया पाठ सिखलाया दुनिया को | ||
क्योंकि वो 'धर्म' है | क्योंकि वो 'धर्म' है | ||
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पहले गृहस्थ को निभाते | पहले गृहस्थ को निभाते | ||
तो तुम्हारी प्रवज्या को | तो तुम्हारी प्रवज्या को | ||
राहुल और उसकी | राहुल और उसकी माँ भी समझ पाते | ||
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; दिनांक- 15 जनवरी, 2014 | |||
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वो 'सुबह' जो कभी आनी थी | वो 'सुबह' जो कभी आनी थी | ||
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ऐसी सुबह तेरे गाँव में कब आएगी ? | ऐसी सुबह तेरे गाँव में कब आएगी ? | ||
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; दिनांक- 15 जनवरी, 2014 | |||
[[चित्र:Chhoot-bhage-raste-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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मंज़िलों की क़ैद से अब छूट भागे रास्ते | मंज़िलों की क़ैद से अब छूट भागे रास्ते | ||
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मौत के आने से पहले एक लम्हा जी लिया | मौत के आने से पहले एक लम्हा जी लिया | ||
कौन रगड़े एड़ियाँ अब ज़िन्दगी के वास्ते | कौन रगड़े एड़ियाँ अब ज़िन्दगी के वास्ते | ||
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; दिनांक- 15 जनवरी, 2014 | |||
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हमको मालूम है इन सब की हक़ीक़त लेकिन | हमको मालूम है इन सब की हक़ीक़त लेकिन | ||
दिल-ए-ख़ुशफ़हमी को कुछ दिन ये 'आप' अच्छा है | दिल-ए-ख़ुशफ़हमी को कुछ दिन ये 'आप' अच्छा है | ||
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-जनाब असद उल्ला ख़ां ग़ालिब की याद में | -जनाब असद उल्ला ख़ां ग़ालिब की याद में | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी, 2014 | |||
[[चित्र:Hitchcock.jpg|250px|right]] | |||
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विश्व के महानतम निर्देशकों में अल्फ़्रेड हिचकॉक का नाम आता है। वे मेरे बेहद पसंदीदा सिनेमा निर्देशकों में से एक रहे हैं। पिछले वर्ष उनके जीवन पर बनी फ़िल्म 'Hichcock' देखी। इसमें ऍन्थनी हॉपकिन (Anthony Hopkins) ने हिचकॉक की भूमिका की है। वे भी | विश्व के महानतम निर्देशकों में अल्फ़्रेड हिचकॉक का नाम आता है। वे मेरे बेहद पसंदीदा सिनेमा निर्देशकों में से एक रहे हैं। पिछले वर्ष उनके जीवन पर बनी फ़िल्म 'Hichcock' देखी। इसमें ऍन्थनी हॉपकिन (Anthony Hopkins) ने हिचकॉक की भूमिका की है। वे भी महान् कलाकार हैं और मेरे पसंदीदा ऍक्टर हैं। यह फ़िल्म मेरी पसंदीदा और हिचकॉक की मशहूर फ़िल्म साइको (Psycho) के निर्माण पर आधारित है। हमेशा की तरह इस फ़िल्म में भी ऍन्थनी हॉपकिन का अभिनय देखने लायक़ है। | ||
हिचकॉक की फ़िल्मों की नक़लें सारी दुनिया में होती रही है। उनकी फ़िल्म वर्टीगो (Vertigo) मुझे बहुत पसंद है। ये एक ज़बर्दस्त थ्रिलर है। इसमें हीरो ऍक्रोफ़ोबिया (Acrophobia) का मरीज़ होता है। ऍक्रोफ़ोबिया एक ऐसी फ़ोबिया है जिसमें बहुत ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर आते हैं। राज़ की बात ये है कि मैं मुझे भी ऍक्रोफ़ोबिया है। हा हा हा | हिचकॉक की फ़िल्मों की नक़लें सारी दुनिया में होती रही है। उनकी फ़िल्म वर्टीगो (Vertigo) मुझे बहुत पसंद है। ये एक ज़बर्दस्त थ्रिलर है। इसमें हीरो ऍक्रोफ़ोबिया (Acrophobia) का मरीज़ होता है। ऍक्रोफ़ोबिया एक ऐसी फ़ोबिया है जिसमें बहुत ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर आते हैं। राज़ की बात ये है कि मैं मुझे भी ऍक्रोफ़ोबिया है। हा हा हा | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी, 2014 | |||
[[चित्र:Seemao se bandhkar.jpg|250px|right]] | |||
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जो सीमाओं में बंधकर जीते हैं | जो सीमाओं में बंधकर जीते हैं | ||
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अनन्त काल तक चलता है। | अनन्त काल तक चलता है। | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी, 2014 | |||
[[चित्र:Bharat-jaise-vishal.jpg|250px|right]] | |||
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भारत जैसे विशाल गणतंत्र के समग्र विकास के लिए | भारत जैसे विशाल गणतंत्र के समग्र विकास के लिए | ||
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फिर भी यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस शताब्दी में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा। | फिर भी यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस शताब्दी में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा। | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी, 2014 | |||
[[चित्र:Aapsi-rishto-me.jpg|250px|right]] | |||
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आपसी रिश्तों में या समाज में | आपसी रिश्तों में या समाज में | ||
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एक सकारात्मक व्यक्ति के रूप में | एक सकारात्मक व्यक्ति के रूप में | ||
देख सकते हैं | देख सकते हैं | ||
यह | यह महान् व्यक्तियों का एक ऐसा गुण भी जो उनको महान् बनाता है | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी, 2014 | |||
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कभी-कभी ऐसा लगता है कि विश्वास वह भ्रम है जो अब तक टूटा नहीं... | कभी-कभी ऐसा लगता है कि विश्वास वह भ्रम है जो अब तक टूटा नहीं... | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी, 2014 | |||
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उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार रोज़ | उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार रोज़ | ||
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(आज 'ज़फ़र' होते शायद तो यही लिखते) | (आज 'ज़फ़र' होते शायद तो यही लिखते) | ||
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; दिनांक- 7 जनवरी, 2014 | |||
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प्राचीन काल के दक्षिण भारत में ग्राम प्रशासन, पंचायत और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बेहतरीन नमूने हैं। | प्राचीन काल के दक्षिण भारत में ग्राम प्रशासन, पंचायत और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बेहतरीन नमूने हैं। | ||
उत्तिरमेरूर की राजनैतिक व्यवस्थाएं चोंकाने वाली | उत्तिरमेरूर की राजनैतिक व्यवस्थाएं चोंकाने वाली हैं । यह दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले का एक पंचायती ग्राम है। चोल राज्य के अंतर्गत ब्राह्मणों (अग्रहार) के एक बड़े ग्राम में दसवीं शताब्दी के पश्चात् अनेक शिलालेख स्थानीय राजनीति पर प्रकाश पर प्रकाश डालते हैं। | ||
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; दिनांक- 7 जनवरी, 2014 | |||
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आम आदमी को परिभाषित करने और आम आदमी की समस्याओं को प्रस्तुत करने के काम जितने बढ़िया तरह से | आम आदमी को परिभाषित करने और आम आदमी की समस्याओं को प्रस्तुत करने के काम जितने बढ़िया तरह से महान् कार्टूनिस्ट आर॰ के॰ लक्ष्मण ने किया है उतना किसी ने नहीं। | ||
इसके बदले में उनको लगभग हरेक सरकार द्वारा ऐसा न करने की चेतावनी दी गई और मुक़दमे चले। | इसके बदले में उनको लगभग हरेक सरकार द्वारा ऐसा न करने की चेतावनी दी गई और मुक़दमे चले। | ||
अब दिल्ली सदन में आम आदमी की एक नई परिभाषा की गई है जो मेरी समझ के परे है। कहा गया है कि 'वह हरेक आदमी, आम आदमी है जो कि ईमानदार सरकार चाहता है चाहे वह ग्रेटरकैलाश और डिफ़ेन्स कॉलोनी का ही रहने वाला क्यों न हो।' | अब दिल्ली सदन में आम आदमी की एक नई परिभाषा की गई है जो मेरी समझ के परे है। कहा गया है कि 'वह हरेक आदमी, आम आदमी है जो कि ईमानदार सरकार चाहता है चाहे वह ग्रेटरकैलाश और डिफ़ेन्स कॉलोनी का ही रहने वाला क्यों न हो।' | ||
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[[सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी|-और ज़्यादा विस्तार से पढ़ना चाहें तो भारतकोश पर मेरा एक लेख पढ़ें-]] | [[सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी|-और ज़्यादा विस्तार से पढ़ना चाहें तो भारतकोश पर मेरा एक लेख पढ़ें-]] | ||
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; दिनांक- 6 जनवरी, 2014 | |||
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ईमानदारी और सादगी की सार्थकता | ईमानदारी और सादगी की सार्थकता | ||
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के अलावा और कुछ नहीं है। | के अलावा और कुछ नहीं है। | ||
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; दिनांक- 6 जनवरी, 2014 | |||
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हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि उसे कहते हैं जो कि अपने धर्म के धार्मिक और आध्यात्मिक रूप-स्वरूप में आस्था रखता है। | हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि उसे कहते हैं जो कि अपने धर्म के धार्मिक और आध्यात्मिक रूप-स्वरूप में आस्था रखता है। | ||
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यदि ईमानदारी और गंभीरता से विचार करेंगे तो यह समझ में आ जाएगा कि धार्मिक या साम्प्रदायिक कट्टरता हमें अध्यात्म और धर्म दूर ले जाती है। | यदि ईमानदारी और गंभीरता से विचार करेंगे तो यह समझ में आ जाएगा कि धार्मिक या साम्प्रदायिक कट्टरता हमें अध्यात्म और धर्म दूर ले जाती है। | ||
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; दिनांक- 6 जनवरी, 2014 | |||
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शेक्सपीयर तो अपने मशहूर नाटक हॅमलेट में "Frailty, thy name is woman." लिख कर जन्नत नशीं हो गए। मेरी तो हमेशा की तरह शामत आई हुई है, कि व्याख्या करो इसकी। सवाल इस वाक्य का अर्थ करने का नहीं है बल्कि पूछा गया है कि क्या यह सही है? | शेक्सपीयर तो अपने मशहूर नाटक हॅमलेट में "Frailty, thy name is woman." लिख कर जन्नत नशीं हो गए। मेरी तो हमेशा की तरह शामत आई हुई है, कि व्याख्या करो इसकी। सवाल इस वाक्य का अर्थ करने का नहीं है बल्कि पूछा गया है कि क्या यह सही है? | ||
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जब हम अपने आप को आदमी या औरत पहले समझते हैं और इंसान बाद में, तो हम इंसानियत के नियमों से दूर हट जाते हैं। जब हम इंसानियत से ही दूर हट गए तो फिर वफ़ा का क्या काम? इसी तरह किसी आदमी या औरत के कमज़ोर होने अनेक संभावनाएँ हो सकती है लेकिन इंसान कभी कमज़ोर नहीं होता। ऐसा लगता है कि स्त्री-पुरुष के बीच सच्ची वफ़ादारी की वजह केवल इंसानियत ही होती है। बाक़ी और वजहें तो समाज का डर या किसी स्वार्थ आदि से प्रभावित होने की संभावना रखती हैं। | जब हम अपने आप को आदमी या औरत पहले समझते हैं और इंसान बाद में, तो हम इंसानियत के नियमों से दूर हट जाते हैं। जब हम इंसानियत से ही दूर हट गए तो फिर वफ़ा का क्या काम? इसी तरह किसी आदमी या औरत के कमज़ोर होने अनेक संभावनाएँ हो सकती है लेकिन इंसान कभी कमज़ोर नहीं होता। ऐसा लगता है कि स्त्री-पुरुष के बीच सच्ची वफ़ादारी की वजह केवल इंसानियत ही होती है। बाक़ी और वजहें तो समाज का डर या किसी स्वार्थ आदि से प्रभावित होने की संभावना रखती हैं। | ||
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Latest revision as of 12:05, 27 April 2018
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