आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट नवम्बर 2014: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "कॅरियर" to "कैरियर") |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
(3 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 5: | Line 5: | ||
| | | | ||
{| width=100% class="bharattable" | {| width=100% class="bharattable" | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
; दिनांक- 23 नवम्बर, 2014 | |||
[[चित्र:Aditya-Chaudhary-FB-Updates-Nov-14.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | |||
किसी से दूर हो जाना आसान है या किसी के पास रहना ? हमें दूर होने पर पास आना अच्छा लगता है और पास आने पर दूर होना। | |||
ऐसा क्यों है ? असल में मामला कुछ और ही है। | |||
ब्रह्माण्ड में दो क्रियाएं हैं जो निरंतर घट हो रही हैं- मिलना और बिछड़ना। वह चाहे कुछ भी हो कोई मनुष्य, जानवर, वनस्पति, अणु, परमाणु, आकाशीय पिण्ड, कुछ भी… कुछ भी। | |||
यह परम क्रिया है बाक़ी सब इसके ही परिणाम है। | |||
हर जगह हर समय यही क्रिया शाश्वत रूप से अवनरत-अहर्निश चल रही है। | |||
मिलना और बिछड़ना। | |||
जो साथ हैं वे दूर जाने को तत्पर हैं। जो दूर हैं वे पास आने को। यह क्रम अनंत ब्रह्माण्डों के भी परे सभी स्थानों पर प्रभावी है। यहाँ तक कि उस पर भी जो कि स्थान की परिभाषा से परे है। | |||
चाहे बिग बैंग हो या ब्लॅक होल सभी स्थिति इसी से हैं। हब्बल से देखे गए या न देखे गए ब्रह्माण्ड के सभी उपद्रवों और सृजनों तक यही क्रिया चल रही है। | |||
प्रश्न यह है कि इस घटना का कारण क्या है ? यह अभी तक अनुत्तरित है। आप सोचिए… | |||
</poem> | |||
|- | |||
| | |||
; दिनांक- 20 नवम्बर, 2014 | |||
[[चित्र:Dilon-ke-toot-jane-ki-aditya-chaudhary.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की | नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की | ||
Line 27: | Line 41: | ||
तुम्हें बेचौनियां रहती हैं अब सारे ज़माने की | तुम्हें बेचौनियां रहती हैं अब सारे ज़माने की | ||
</poem> | </poem> | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
; दिनांक- 17 नवम्बर, 2014 | |||
[[चित्र:Aditya-Chaudhary-facebook-post-55.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
पिछले दिनों, फ़ेसबुक चर्चा में एक ‘चर्च’ था (वाह ! ये तो नया शब्द ईजाद हो गया ‘चर्च’, इसका मतलब समझा जाय कि ‘Thread’ याने कोई Comment, हा हा हा)… तो ये चर्च ग्रामीण जीवन से जुड़ी बातों और शब्दों से संबंधित था। इन शब्दों की व्याख्या कर रहा हूँ... | पिछले दिनों, फ़ेसबुक चर्चा में एक ‘चर्च’ था (वाह ! ये तो नया शब्द ईजाद हो गया ‘चर्च’, इसका मतलब समझा जाय कि ‘Thread’ याने कोई Comment, हा हा हा)… तो ये चर्च ग्रामीण जीवन से जुड़ी बातों और शब्दों से संबंधित था। इन शब्दों की व्याख्या कर रहा हूँ... | ||
Line 57: | Line 71: | ||
कटी फ़सल के ढेर को ही लांक कहते हैं। | कटी फ़सल के ढेर को ही लांक कहते हैं। | ||
</poem> | </poem> | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
; दिनांक- 17 नवम्बर, 2014 | |||
<poem> | <poem> | ||
हर आन कस की दारद हुश व राइव दीन। | हर आन कस की दारद हुश व राइव दीन। | ||
Line 68: | Line 81: | ||
ईरान के मशहूर कवि फ़िरदौसी ने दसवीं शताब्दी में 60 हज़ार शेरों का महाकाव्य ‘शाहनामा’ की रचना की। शाहनामा की तुलना महाभारत और इलियड से की जाती है। | ईरान के मशहूर कवि फ़िरदौसी ने दसवीं शताब्दी में 60 हज़ार शेरों का महाकाव्य ‘शाहनामा’ की रचना की। शाहनामा की तुलना महाभारत और इलियड से की जाती है। | ||
</poem> | </poem> | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
; दिनांक- 6 नवम्बर, 2014 | |||
[[चित्र:Aditya-Chaudhary-facebook-post-52.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
घर में मेरा बचपन था और एक पॅट्रोमॅक्स भी था। जिसे सही तरह से जलाना मैंने सीख लिया था। हर बार जल्दी से जल्दी सही तरह से पॅट्रोमॅक्स जलाने की ज़िम्मेदारी मेरी हुआ करती थी। फंणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पंचलाइट के गोधन का सा हाल समझिए कुछ-कुछ... | घर में मेरा बचपन था और एक पॅट्रोमॅक्स भी था। जिसे सही तरह से जलाना मैंने सीख लिया था। हर बार जल्दी से जल्दी सही तरह से पॅट्रोमॅक्स जलाने की ज़िम्मेदारी मेरी हुआ करती थी। फंणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पंचलाइट के गोधन का सा हाल समझिए कुछ-कुछ... | ||
Line 86: | Line 99: | ||
- बाक़ी फिर कभी... | - बाक़ी फिर कभी... | ||
</poem> | </poem> | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
; दिनांक- 2 नवम्बर, 2014 | |||
[[चित्र:Yahan-bekar-me-aditya-chaudhary.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
कल उसे मुर्ग़ा बनाया था, भरे दरबार में | कल उसे मुर्ग़ा बनाया था, भरे दरबार में | ||
Line 112: | Line 125: | ||
इस तरह की बात मत करना यहाँ बेकार में | इस तरह की बात मत करना यहाँ बेकार में | ||
</poem> | </poem> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
Latest revision as of 13:08, 30 April 2017
|