आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जून 2015: Difference between revisions
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; दिनांक- 28 जून, 2015 | |||
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ऋग्वेद में कहा है: | ऋग्वेद में कहा है: | ||
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देवता उसी के सखा बनते हैं जो परिश्रम करता है | देवता उसी के सखा बनते हैं जो परिश्रम करता है | ||
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; दिनांक- 27 जून, 2015 | |||
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अभी-अभी यूँही दिमाग़ में कोंधा.. | अभी-अभी यूँही दिमाग़ में कोंधा.. | ||
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आज ख़्वाइश है उनसे हाथ, दो-दो आज़माने की | आज ख़्वाइश है उनसे हाथ, दो-दो आज़माने की | ||
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; दिनांक- 16 जून, 2015 | |||
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बहुत दिनों की पीड़ा थी आज मुखर... | बहुत दिनों की पीड़ा थी आज मुखर... | ||
एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम | एक गुमनाम किसान गजेन्द्र द्वारा, सरेआम फाँसी लगा लेने पर... | ||
हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया | हर शख़्स मुझे बिन सुने आगे जो बढ़ गया | ||
तो दर्द दिखाने को मैं | तो दर्द दिखाने को मैं फाँसी पे चढ़ गया | ||
महलों के राज़ खोल दूँ शायद में इस तर्हा | महलों के राज़ खोल दूँ शायद में इस तर्हा | ||
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जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | जब बिक रहा हो झूठ हर इक दर पे सुब्ह शाम | ||
'आदित्य' ये बुख़ार कैसा तुझपे चढ़ गया | |||
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; दिनांक- 15 जून, 2015 | |||
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मेरे ही एक लेख से... | मेरे ही एक लेख से... | ||
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दो हज़ार पाँच सौ साल पहले प्लॅटो ने एथेंस की अव्यवस्था और प्रजातंत्र पर कटाक्ष किया है- "सभी ओर प्रजातंत्र का ज़ोर है, बेटा पिता का कहना नहीं मानता; पत्नी पति का कहना नहीं मानती सड़कों पर गधों के झुंड घूमते रहते हैं जैसे कि ऊपर ही चढ़े चले आयेंगे। ज़माना कितना ख़राब आ गया है।" कमाल है ढाई हज़ार साल पहले भी यही समस्या ? | दो हज़ार पाँच सौ साल पहले प्लॅटो ने एथेंस की अव्यवस्था और प्रजातंत्र पर कटाक्ष किया है- "सभी ओर प्रजातंत्र का ज़ोर है, बेटा पिता का कहना नहीं मानता; पत्नी पति का कहना नहीं मानती सड़कों पर गधों के झुंड घूमते रहते हैं जैसे कि ऊपर ही चढ़े चले आयेंगे। ज़माना कितना ख़राब आ गया है।" कमाल है ढाई हज़ार साल पहले भी यही समस्या ? | ||
'देविकारानी' भारतीय हिन्दी सिनेमा में अपने ज़माने की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री ही नहीं थी बल्कि बेहद प्रभावशाली भी थीं। अनेक बड़े बड़े अभिनेताओं को हिंदी सिनेमा में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है जिनमें से एक नाम हमारे दादा मुनि यानि अशोक कुमार भी हैं। 'अछूत कन्या' हिंदी सिनेमा की शरूआती फ़िल्मों में एक उत्कृष्ट कृति मानी गयी है। इस फ़िल्म में अशोक कुमार और देविका रानी नायक नायिका थे। देविका रानी ने 1933 में बनी फ़िल्म 'कर्म' में पूरे 4 मिनट लम्बा चुंबन दृश्य दिया। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि दृश्य में उनके साथ उनके पति हिमांशु राय थे। इसकी आलोचना होना स्वाभाविक ही था, किंतु भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान, पद्मश्री और सिने | 'देविकारानी' भारतीय हिन्दी सिनेमा में अपने ज़माने की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री ही नहीं थी बल्कि बेहद प्रभावशाली भी थीं। अनेक बड़े बड़े अभिनेताओं को हिंदी सिनेमा में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है जिनमें से एक नाम हमारे दादा मुनि यानि अशोक कुमार भी हैं। 'अछूत कन्या' हिंदी सिनेमा की शरूआती फ़िल्मों में एक उत्कृष्ट कृति मानी गयी है। इस फ़िल्म में अशोक कुमार और देविका रानी नायक नायिका थे। देविका रानी ने 1933 में बनी फ़िल्म 'कर्म' में पूरे 4 मिनट लम्बा चुंबन दृश्य दिया। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि दृश्य में उनके साथ उनके पति हिमांशु राय थे। इसकी आलोचना होना स्वाभाविक ही था, किंतु भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान, पद्मश्री और सिने जगत् के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहेब फाल्के सम्मान' से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। | ||
1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में मंच पर जूते फेंके गये जिसमें फ़िरोज़शाह मेहता और सुरेंद्रनाथ बैनर्जी जैसे वरिष्ठ नेता घायल हुए और यह घटना बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक, मोतीलाल नेहरू और सम्भवत: लाला लाजपत राय की उपस्थिति में हुई। | 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में मंच पर जूते फेंके गये जिसमें फ़िरोज़शाह मेहता और सुरेंद्रनाथ बैनर्जी जैसे वरिष्ठ नेता घायल हुए और यह घटना बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक, मोतीलाल नेहरू और सम्भवत: लाला लाजपत राय की उपस्थिति में हुई। | ||
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ये तीन हानिकारक वाक्य- "महंगाई बहुत बढ़ गई है", "ज़माना बहुत ख़राब आ गया है", "आजकल के लड़के-लड़कियों में शर्म-लिहाज़ नहीं है" असल में पूरी तरह से नकारात्मक दृष्टिकोण वाले हैं और 'विकासवादी' सोच के विपरीत हैं। मैंने 'प्रगतिवादी' के स्थान पर 'विकासवादी' शब्द का प्रयोग किया है, जिसका कारण मेरा 'प्रगति' की अपेक्षा 'विकास' में अधिक विश्वास करना है। 'प्रगति' किसी भी दिशा में हो सकती है लेकिन क्रमिक-विकास सामाजिक-व्यवस्था के सुव्यवस्थित सम्पोषण के लिए ही होता है। प्रगति एक इकाई है तो विकास एक संस्था और वैसे भी विकास, प्रगति की तरह अचानक नहीं होता और क्रमिक-विकास निश्चित रूप से 'प्रगति' से अधिक प्रभावकारी और सुव्यवस्थित प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे सहज अंग है। | ये तीन हानिकारक वाक्य- "महंगाई बहुत बढ़ गई है", "ज़माना बहुत ख़राब आ गया है", "आजकल के लड़के-लड़कियों में शर्म-लिहाज़ नहीं है" असल में पूरी तरह से नकारात्मक दृष्टिकोण वाले हैं और 'विकासवादी' सोच के विपरीत हैं। मैंने 'प्रगतिवादी' के स्थान पर 'विकासवादी' शब्द का प्रयोग किया है, जिसका कारण मेरा 'प्रगति' की अपेक्षा 'विकास' में अधिक विश्वास करना है। 'प्रगति' किसी भी दिशा में हो सकती है लेकिन क्रमिक-विकास सामाजिक-व्यवस्था के सुव्यवस्थित सम्पोषण के लिए ही होता है। प्रगति एक इकाई है तो विकास एक संस्था और वैसे भी विकास, प्रगति की तरह अचानक नहीं होता और क्रमिक-विकास निश्चित रूप से 'प्रगति' से अधिक प्रभावकारी और सुव्यवस्थित प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे सहज अंग है। | ||
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; दिनांक- 15 जून, 2015 | |||
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मेरे एक लेख का अंश- | मेरे एक लेख का अंश- | ||
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दहेज़ की कुप्रथा ख़त्म नहीं हुई तो यही हाल होना है दूल्हे राजाओं का... ख़ैर ये 'मॅम' तो बजट आने से पहले ही अपना 'डीलक्स पति' ले कर चली गईं। | दहेज़ की कुप्रथा ख़त्म नहीं हुई तो यही हाल होना है दूल्हे राजाओं का... ख़ैर ये 'मॅम' तो बजट आने से पहले ही अपना 'डीलक्स पति' ले कर चली गईं। | ||
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; दिनांक- 8 जून, 2015 | |||
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यदि आप… | यदि आप… | ||
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ईश्वर के साथ भी मामला कुछ ऐसा ही है। | ईश्वर के साथ भी मामला कुछ ऐसा ही है। | ||
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; दिनांक- 7 जून, 2015 | |||
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बनावटी जीवन जीते-जीते, यही बनावट ही वास्तविकता लगने लगती है। इससे उबरना बहुत मुश्किल होता है। | बनावटी जीवन जीते-जीते, यही बनावट ही वास्तविकता लगने लगती है। इससे उबरना बहुत मुश्किल होता है। | ||
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; दिनांक- 7 जून, 2015 | |||
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ज़िन्दगी और मौत को समझने के प्रयास में लगे रहने का मतलब है कि आप इसके लिए बहुत अधिक गंभीर हैं। इस गंभीरता में समय बहुत बर्बाद होता है और हासिल कुछ नहीं होता। यदि इस गंभीरता को अपने कार्यों (कर्म) की ओर मोड़ दिया जाय तो ज़िन्दगी के मायने समझ में आने लगते हैं। | ज़िन्दगी और मौत को समझने के प्रयास में लगे रहने का मतलब है कि आप इसके लिए बहुत अधिक गंभीर हैं। इस गंभीरता में समय बहुत बर्बाद होता है और हासिल कुछ नहीं होता। यदि इस गंभीरता को अपने कार्यों (कर्म) की ओर मोड़ दिया जाय तो ज़िन्दगी के मायने समझ में आने लगते हैं। | ||
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; दिनांक- 7 जून, 2015 | |||
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इम्तिहान देना, फ़ेल होने की पहली शर्त है। | इम्तिहान देना, फ़ेल होने की पहली शर्त है। | ||
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इस अनुभव से लाभ उठा लेना ही सफलता का रहस्य है। | इस अनुभव से लाभ उठा लेना ही सफलता का रहस्य है। | ||
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; दिनांक- 6 जून, 2015 | |||
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ईश्वर की पसंद का बनें या समाज की पसंद का ? यह प्रश्न जीवन भर आपको असमंजस में डाले रखता है। समाज की पसंद का बनने की प्रक्रिया में आप ईश्वर की पसंद को अनदेखा कर देते हैं। | ईश्वर की पसंद का बनें या समाज की पसंद का ? यह प्रश्न जीवन भर आपको असमंजस में डाले रखता है। समाज की पसंद का बनने की प्रक्रिया में आप ईश्वर की पसंद को अनदेखा कर देते हैं। | ||
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सच्चा धार्मिक वह है जो न्याय का पक्ष लेता है, समानता के लिए प्रयासरत रहता है, इंसानियत का पक्षधर है और परम सत्यपथ गामी है। | सच्चा धार्मिक वह है जो न्याय का पक्ष लेता है, समानता के लिए प्रयासरत रहता है, इंसानियत का पक्षधर है और परम सत्यपथ गामी है। | ||
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Latest revision as of 10:42, 2 January 2018
ऋग्वेद में कहा है:
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