ब्रह्माण्ड घाट महावन: Difference between revisions

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कन्हैया ने मुख खोल कर कहा- "देख ले मैया।"
कन्हैया ने मुख खोल कर कहा- "देख ले मैया।"


जब मैया यशोदा ने बालकृष्ण के मुख में देखा तो स्तब्ध रह गईं। अगणित ब्रह्माण्ड, अगणित ब्रह्मा, [[विष्णु]], महेश तथा चराचर जगत सब कुछ कन्हैया के मुख में दिखाई पड़ा। भयभीत होकर उन्होंने आँखें बन्द कर लीं तथा सोचने लगीं- "मैं यह क्या देख रही हूँ? क्या यह मेरा भ्रम है या किसी की माया है?" आँखें खोलने पर देखा कन्हैया उनकी गोद में बैठा हुआ है। यशोदा जी ने घर लौटकर [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को बुलाया। इस दैवी प्रकोप की शान्ति के लिए स्वस्ति वाचन कराया और ब्राह्मणों को गोदान तथा दक्षिणा दी। श्रीकृष्ण के मुख में भगवत्ता के लक्षण स्वरूप अखिल सचराचर विश्व ब्रह्माण्ड को देखकर भी यशोदा मैया ने कृष्ण को स्वयं भगवान के रूप में ग्रहण नहीं किया। उनका वात्सल्य प्रेम शिथिल नहीं हुआ, बल्कि और भी समृद्ध हो गया।
जब मैया यशोदा ने बालकृष्ण के मुख में देखा तो स्तब्ध रह गईं। अगणित ब्रह्माण्ड, अगणित ब्रह्मा, [[विष्णु]], महेश तथा चराचर जगत् सब कुछ कन्हैया के मुख में दिखाई पड़ा। भयभीत होकर उन्होंने आँखें बन्द कर लीं तथा सोचने लगीं- "मैं यह क्या देख रही हूँ? क्या यह मेरा भ्रम है या किसी की माया है?" आँखें खोलने पर देखा कन्हैया उनकी गोद में बैठा हुआ है। यशोदा जी ने घर लौटकर [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को बुलाया। इस दैवी प्रकोप की शान्ति के लिए स्वस्ति वाचन कराया और ब्राह्मणों को गोदान तथा दक्षिणा दी। श्रीकृष्ण के मुख में भगवत्ता के लक्षण स्वरूप अखिल सचराचर विश्व ब्रह्माण्ड को देखकर भी यशोदा मैया ने कृष्ण को स्वयं भगवान के रूप में ग्रहण नहीं किया। उनका वात्सल्य प्रेम शिथिल नहीं हुआ, बल्कि और भी समृद्ध हो गया।
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दूसरी ओर [[कृष्ण]] का चतुर्भुज रूप दर्शन कर [[देवकी]] और [[वसुदेव]] का वात्सल्य प्रेम और विश्वरूप दर्शन कर [[अर्जुन]] का सख्य-भाव शिथिल हो गया। ये लोग हाथ जोड़कर कृष्ण की स्तुति करने लगे। इस प्रकार [[ब्रज]] में कभी-कभी कृष्ण की भगवत्तारूप ऐश्वर्य का प्रकाश होने पर भी ब्रजवासियों का प्रेम शिथिल नहीं होता। वे कभी भी श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में ग्रहण नहीं करते। उनका कृष्ण के प्रति मधुर भाव कभी शिथिल नहीं होता।
दूसरी ओर [[कृष्ण]] का चतुर्भुज रूप दर्शन कर [[देवकी]] और [[वसुदेव]] का वात्सल्य प्रेम और विश्वरूप दर्शन कर [[अर्जुन]] का सख्य-भाव शिथिल हो गया। ये लोग हाथ जोड़कर कृष्ण की स्तुति करने लगे। इस प्रकार [[ब्रज]] में कभी-कभी कृष्ण की भगवत्तारूप ऐश्वर्य का प्रकाश होने पर भी ब्रजवासियों का प्रेम शिथिल नहीं होता। वे कभी भी श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में ग्रहण नहीं करते। उनका कृष्ण के प्रति मधुर भाव कभी शिथिल नहीं होता।
====चिन्ताहरणघाट====
====चिन्ताहरणघाट====
ब्रह्माण्ड घाट से सटे हुए पूर्व की ओर [[यमुना|यमुना जी]] का चिन्ताहरण घाट है। यहाँ चिन्ताहरण महादेव का दर्शन है। ब्रजवासी इनका पूजन करते हैं, कन्हैया के मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन के पश्चात माँ यशोदा ने अत्यन्त चिन्तित होकर चिन्ताहरण महादेव से [[कृष्ण]] के कल्याण की [[प्रार्थना]] की थी।
ब्रह्माण्ड घाट से सटे हुए पूर्व की ओर [[यमुना|यमुना जी]] का चिन्ताहरण घाट है। यहाँ चिन्ताहरण महादेव का दर्शन है। ब्रजवासी इनका पूजन करते हैं, कन्हैया के मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन के पश्चात् माँ यशोदा ने अत्यन्त चिन्तित होकर चिन्ताहरण महादेव से [[कृष्ण]] के कल्याण की [[प्रार्थना]] की थी।





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ब्रह्माण्ड घाट महावन
विवरण ब्रह्माण्ड घाट ब्रज के प्रमुख घाटों में से एक है। यह वही स्थान है, जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने माता यशोदा को अगणित ब्रह्माण्ड, अगणित ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा चराचर जगत् सब कुछ मुख में दिखाया था।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल
कब जाएँ कभी भी
यातायात बस, ऑटो, कार आदि
संबंधित लेख विश्राम घाट मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, महावन, नन्दगाँव, बरसाना, गोवर्धन, काम्यवन


अन्य जानकारी ब्रह्माण्ड घाट से सटे हुए पूर्व की ओर यमुना जी का चिन्ताहरण घाट है। यहाँ चिन्ताहरण महादेव का दर्शन है। ब्रजवासी इनका पूजन करते हैं।
अद्यतन‎

ब्रह्माण्ड घाट जन्मस्थली नन्दभवन से प्राय: एक मील पूर्व में विराजमान है। यहाँ पर बालकृष्ण ने गोप-बालकों के साथ खेलते समय 'मृतिका भक्षण लीला' की थी। यशोदा मैया ने जब बलराम से इस विषय में पूछा तो बलराम ने भी कन्हैया के मिट्टी खाने की बात का समर्थन किया।

बालकृष्ण द्वारा ब्रह्माण्ड दर्शन

मैया ने घटनास्थल पर पहुँच कर कृष्ण से पूछा- "क्या तुमने मिट्टी खाई?"

कन्हैया ने उत्तर दिया- "नहीं मैया! मैंने मिट्टी नहीं खाईं।"

यशोदा मैया ने कहा-"कन्हैया! अच्छा तू मुख खोलकर दिखा।"

कन्हैया ने मुख खोल कर कहा- "देख ले मैया।"

जब मैया यशोदा ने बालकृष्ण के मुख में देखा तो स्तब्ध रह गईं। अगणित ब्रह्माण्ड, अगणित ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा चराचर जगत् सब कुछ कन्हैया के मुख में दिखाई पड़ा। भयभीत होकर उन्होंने आँखें बन्द कर लीं तथा सोचने लगीं- "मैं यह क्या देख रही हूँ? क्या यह मेरा भ्रम है या किसी की माया है?" आँखें खोलने पर देखा कन्हैया उनकी गोद में बैठा हुआ है। यशोदा जी ने घर लौटकर ब्राह्मणों को बुलाया। इस दैवी प्रकोप की शान्ति के लिए स्वस्ति वाचन कराया और ब्राह्मणों को गोदान तथा दक्षिणा दी। श्रीकृष्ण के मुख में भगवत्ता के लक्षण स्वरूप अखिल सचराचर विश्व ब्रह्माण्ड को देखकर भी यशोदा मैया ने कृष्ण को स्वयं भगवान के रूप में ग्रहण नहीं किया। उनका वात्सल्य प्रेम शिथिल नहीं हुआ, बल्कि और भी समृद्ध हो गया। [[चित्र:Brhamand-Ghat-2.jpg|ब्रह्माण्ड घाट, महावन|thumb|left]] दूसरी ओर कृष्ण का चतुर्भुज रूप दर्शन कर देवकी और वसुदेव का वात्सल्य प्रेम और विश्वरूप दर्शन कर अर्जुन का सख्य-भाव शिथिल हो गया। ये लोग हाथ जोड़कर कृष्ण की स्तुति करने लगे। इस प्रकार ब्रज में कभी-कभी कृष्ण की भगवत्तारूप ऐश्वर्य का प्रकाश होने पर भी ब्रजवासियों का प्रेम शिथिल नहीं होता। वे कभी भी श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में ग्रहण नहीं करते। उनका कृष्ण के प्रति मधुर भाव कभी शिथिल नहीं होता।

चिन्ताहरणघाट

ब्रह्माण्ड घाट से सटे हुए पूर्व की ओर यमुना जी का चिन्ताहरण घाट है। यहाँ चिन्ताहरण महादेव का दर्शन है। ब्रजवासी इनका पूजन करते हैं, कन्हैया के मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन के पश्चात् माँ यशोदा ने अत्यन्त चिन्तित होकर चिन्ताहरण महादेव से कृष्ण के कल्याण की प्रार्थना की थी।


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ब्रह्माण्ड घाट वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख