गहड़वाल वंश: Difference between revisions

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गुर्जर-प्रतिहारों के बाद चन्द्रदेव ने [[कन्नौज]] में गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेव ने महाराजाधिराज की उपाधि भी धारण की। गहड़वाल शासकों को 'काशी नरेश' के रूप में भी जाना जाता था, क्योंकि [[बनारस]] इनके राज्य की पूर्वी सीमा के नज़दीक था।  
गहड़वाल वंश की स्थापना गुर्जर-प्रतिहारों के बाद चन्द्रदेव ने [[कन्नौज]] में की थी। उसने 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेव ने महाराजाधिराज की उपाधि भी धारण की। गहड़वाल शासकों को 'काशी नरेश' के रूप में भी जाना जाता था, क्योंकि [[बनारस]] इनके राज्य की पूर्वी सीमा के नज़दीक था।  
==शासन==
==शासन==
चन्द्रदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी मदन चन्द्र के विषय में विस्तृत जानकारी का अभाव है। उसके पौत्र [[गोविन्द चन्द्र]] ने युवराज के रूप में 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया, जिसमें आधुनिक [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] का अधिकांश भाग शामिल था। उसने [[मुसलमान|मुस्लिम]] तुर्कों के आक्रमण से [[वाराणसी]] और जेतवन जैसे पवित्र धार्मिक स्थानों की रक्षा की। उसने अपनी राजधानी [[कन्नौज]] का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा [[जयचन्द्र]] (जो जयचन्द के नाम से विख्यात है) था, जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को [[अजमेर]] का चौहान राजा [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में [[तराइन का युद्ध|तराइन]] (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन् 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता [[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-125</ref>
चन्द्रदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी मदन चन्द्र के विषय में विस्तृत जानकारी का अभाव है। उसके पौत्र [[गोविन्द चन्द्र]] ने युवराज के रूप में 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया, जिसमें आधुनिक [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] का अधिकांश भाग शामिल था। उसने [[मुसलमान|मुस्लिम]] तुर्कों के आक्रमण से [[वाराणसी]] और जेतवन जैसे पवित्र धार्मिक स्थानों की रक्षा की। उसने अपनी राजधानी [[कन्नौज]] का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा [[जयचन्द्र]] (जो जयचन्द के नाम से विख्यात है) था, जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को [[अजमेर]] का [[चौहान वंश|चौहान]] राजा [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में [[तराइन का युद्ध|तराइन]] (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता [[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-125</ref>
====<u>शासक</u>====
====<u>शासक</u>====
जिन शासकों ने शासन किया उनके नाम इस प्रकार है:-
जिन शासकों ने शासन किया उनके नाम इस प्रकार है:-

Revision as of 05:03, 10 April 2011

गहड़वाल वंश की स्थापना गुर्जर-प्रतिहारों के बाद चन्द्रदेव ने कन्नौज में की थी। उसने 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेव ने महाराजाधिराज की उपाधि भी धारण की। गहड़वाल शासकों को 'काशी नरेश' के रूप में भी जाना जाता था, क्योंकि बनारस इनके राज्य की पूर्वी सीमा के नज़दीक था।

शासन

चन्द्रदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी मदन चन्द्र के विषय में विस्तृत जानकारी का अभाव है। उसके पौत्र गोविन्द चन्द्र ने युवराज के रूप में 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया, जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था। उसने मुस्लिम तुर्कों के आक्रमण से वाराणसी और जेतवन जैसे पवित्र धार्मिक स्थानों की रक्षा की। उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र (जो जयचन्द के नाम से विख्यात है) था, जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।[1]

शासक

जिन शासकों ने शासन किया उनके नाम इस प्रकार है:-


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-125

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