अरण्य काण्ड वा. रा.: Difference between revisions

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'''अरण्य काण्ड / Aranay Kand'''<br />


अरण्यकाण्ड में [[राम]], [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] दण्डकारण्य में प्रवेश करते हैं। जंगल में तपस्वी जनों, मुनियों तथा ॠषियों के आश्रम में विचरण करते हुए राम उनकी करुण-गाथा सुनते हैं। मुनियों आदि को राक्षसों का भी भीषण भय रहता है। इसके पश्चात राम पञ्चवटी में आकर आश्रम में रहते हैं, वहीं शूर्पणखा से मिलन होता है। शूर्पणखा के प्रसंग में उसका नाक-कान विहीन करना तथा उसके भाई [[खर दूषण]] तथा त्रिशिरा से युद्ध और उनका संहार वर्णित है। इसके बाद [[शूर्पणखा]] [[लंका]] जाकर [[रावण]] से अपना वृतान्त कहती है और अप्रतिम सुन्दरी सीता के सौन्दर्य का वर्णन करके उन्हें अपहरण करने की प्रेरणा देती है। रावण-[[मारीच]] संवाद, मारीच का स्वर्णमय, कपटमृग बनना, मारीच वध, सीता का रावण द्वारा अपहरण, सीता कि छुड़ाने के लिए जटायु का युद्ध, गृध्रराज [[जटायु]] का रावण के द्वारा घायल किया जाना, अशोकवाटिका में सीता को रखना, श्रीराम का विलाप, सीता का अन्वेषण, राम-जटायु-संवाद तथा जटायु को मोक्ष प्राप्ति, कबन्ध की आत्मकथा, उसका वध तथा दिव्यरूप प्राप्ति, शबरी के आश्रम में राम का गमन, ॠष्यमूक पर्वत तथा पम्पा सरोवर के तट पर राम का गमन आदि प्रसंग अरण्यकाण्ड में उल्लिखित हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ उसे करना चाहिए जो वन, राजकुल, [[अग्निदेव|अग्नि]] तथा जलपीड़ा से युक्त हो। इसके पाठ से अवश्य मंगल प्राप्ति होती है।<ref>वने राजकुले वह्निजलपीडायुतो नर:।<br />
अरण्यकाण्ड में [[राम]], [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] दण्डकारण्य में प्रवेश करते हैं। जंगल में तपस्वी जनों, मुनियों तथा ॠषियों के आश्रम में विचरण करते हुए राम उनकी करुण-गाथा सुनते हैं। मुनियों आदि को राक्षसों का भी भीषण भय रहता है। इसके पश्चात राम पञ्चवटी में आकर आश्रम में रहते हैं, वहीं शूर्पणखा से मिलन होता है। शूर्पणखा के प्रसंग में उसका नाक-कान विहीन करना तथा उसके भाई [[खर दूषण]] तथा त्रिशिरा से युद्ध और उनका संहार वर्णित है। इसके बाद [[शूर्पणखा]] [[लंका]] जाकर [[रावण]] से अपना वृतान्त कहती है और अप्रतिम सुन्दरी सीता के सौन्दर्य का वर्णन करके उन्हें अपहरण करने की प्रेरणा देती है। रावण-[[मारीच]] संवाद, मारीच का स्वर्णमय, कपटमृग बनना, मारीच वध, सीता का रावण द्वारा अपहरण, सीता कि छुड़ाने के लिए जटायु का युद्ध, गृध्रराज [[जटायु]] का रावण के द्वारा घायल किया जाना, अशोकवाटिका में सीता को रखना, श्रीराम का विलाप, सीता का अन्वेषण, राम-जटायु-संवाद तथा जटायु को मोक्ष प्राप्ति, कबन्ध की आत्मकथा, उसका वध तथा दिव्यरूप प्राप्ति, शबरी के आश्रम में राम का गमन, ॠष्यमूक पर्वत तथा पम्पा सरोवर के तट पर राम का गमन आदि प्रसंग अरण्यकाण्ड में उल्लिखित हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ उसे करना चाहिए जो वन, राजकुल, [[अग्निदेव|अग्नि]] तथा जलपीड़ा से युक्त हो। इसके पाठ से अवश्य मंगल प्राप्ति होती है।<ref>वने राजकुले वह्निजलपीडायुतो नर:।<br />

Revision as of 07:12, 18 May 2010

अरण्यकाण्ड में राम, सीता तथा लक्ष्मण दण्डकारण्य में प्रवेश करते हैं। जंगल में तपस्वी जनों, मुनियों तथा ॠषियों के आश्रम में विचरण करते हुए राम उनकी करुण-गाथा सुनते हैं। मुनियों आदि को राक्षसों का भी भीषण भय रहता है। इसके पश्चात राम पञ्चवटी में आकर आश्रम में रहते हैं, वहीं शूर्पणखा से मिलन होता है। शूर्पणखा के प्रसंग में उसका नाक-कान विहीन करना तथा उसके भाई खर दूषण तथा त्रिशिरा से युद्ध और उनका संहार वर्णित है। इसके बाद शूर्पणखा लंका जाकर रावण से अपना वृतान्त कहती है और अप्रतिम सुन्दरी सीता के सौन्दर्य का वर्णन करके उन्हें अपहरण करने की प्रेरणा देती है। रावण-मारीच संवाद, मारीच का स्वर्णमय, कपटमृग बनना, मारीच वध, सीता का रावण द्वारा अपहरण, सीता कि छुड़ाने के लिए जटायु का युद्ध, गृध्रराज जटायु का रावण के द्वारा घायल किया जाना, अशोकवाटिका में सीता को रखना, श्रीराम का विलाप, सीता का अन्वेषण, राम-जटायु-संवाद तथा जटायु को मोक्ष प्राप्ति, कबन्ध की आत्मकथा, उसका वध तथा दिव्यरूप प्राप्ति, शबरी के आश्रम में राम का गमन, ॠष्यमूक पर्वत तथा पम्पा सरोवर के तट पर राम का गमन आदि प्रसंग अरण्यकाण्ड में उल्लिखित हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ उसे करना चाहिए जो वन, राजकुल, अग्नि तथा जलपीड़ा से युक्त हो। इसके पाठ से अवश्य मंगल प्राप्ति होती है।[1] अरण्यकाण्ड में 75 सर्ग हैं जिनमें 2,440 श्लोक गणना से प्राप्त होते हैं।

टीका-टिप्पणी

  1. वने राजकुले वह्निजलपीडायुतो नर:।
    पठेदारण्यकं काण्डं श्रृणुयाद् वा स मंगली॥(बृहद्धर्मपुराण, पूर्वखण्ड 26.11