फ़रिश्ता: Difference between revisions

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ऊपर के वाक्यों में फ़रिश्तों का वर्णन आया है। भगवान ने आदम (मनुष्य के आदि पिता) को बनाकर उन्हें आदम को दण्डवत करने को कहा। सबने वैसा किया, किन्तु इब्लीस ने न किया। यह इब्लीस उस समय फ़रिश्तों में सबसे ऊपर (देवेन्द्र) था। तृतीय वाक्य में जो उसे ‘जिन्न’ कहा गया है, उससे ज्ञात होता है कि फ़रिश्ते और जिन्न एक ही हैं या जिन्न फ़रिश्तों के अंतर्गत ही कोई जाति है। इब्लीस ने यह कह कर आदम को दण्डवत करने से इन्कार किया कि वह मिट्टी से बना है। अतः मालूम पड़ता है कि उत्पत्ति किसी और अच्छे पदार्थ से हुई है। अन्यत्र इब्लीस के वाक्य ही से मालूम हो जाता है कि उनकी उत्पत्ति [[अग्नि]] से हुई है। अपने भक्तों की रक्षा के लिए ईश्वर इन फ़रिश्तों को भेजते हैं।
ऊपर के वाक्यों में फ़रिश्तों का वर्णन आया है। भगवान ने आदम (मनुष्य के आदि पिता) को बनाकर उन्हें आदम को दण्डवत करने को कहा। सबने वैसा किया, किन्तु इब्लीस ने न किया। यह इब्लीस उस समय फ़रिश्तों में सबसे ऊपर (देवेन्द्र) था। तृतीय वाक्य में जो उसे ‘जिन्न’ कहा गया है, उससे ज्ञात होता है कि फ़रिश्ते और जिन्न एक ही हैं या जिन्न फ़रिश्तों के अंतर्गत ही कोई जाति है। इब्लीस ने यह कह कर आदम को दण्डवत करने से इन्कार किया कि वह मिट्टी से बना है। अतः मालूम पड़ता है कि उत्पत्ति किसी और अच्छे पदार्थ से हुई है। अन्यत्र इब्लीस के वाक्य ही से मालूम हो जाता है कि उनकी उत्पत्ति [[अग्नि]] से हुई है। अपने भक्तों की रक्षा के लिए ईश्वर इन फ़रिश्तों को भेजते हैं।
==फ़रिश्तों से सहायता==
==फ़रिश्तों से सहायता==
‘हे ईमानवालों! अपने ऊपर ईश्वर की कृपा को स्मरण करो जब तुम्हारे ऊपर (शत्रुओं की) फौज आयी, तो हमने इन (शत्रुओं की फौज) पर आँधी भेजी तथा एक (फ़रिश्तों की) फौज भेजी जिसे तुमने नहीं देखा।<ref>32:2:1</ref>
‘हे ईमानवालों! अपने ऊपर ईश्वर की कृपा को स्मरण करो जब तुम्हारे ऊपर (शत्रुओं की) फ़ौज आयी, तो हमने इन (शत्रुओं की फ़ौज) पर आँधी भेजी तथा एक (फ़रिश्तों की) फ़ौज भेजी जिसे तुमने नहीं देखा।<ref>32:2:1</ref>
यह एक युद्ध के सम्बन्ध में वर्णन है, जब कि शत्रुओं की संख्या [[मुसलमान|मुसलमानों]] से कई गुना थी। उस वक़्त ईश्वर का कोप आँधी के रूप से उनके ऊपर पड़ा और ईश्वर ने मुसलमानों की सहायता के लिए फ़रिश्तों की फौज भेजी।
यह एक युद्ध के सम्बन्ध में वर्णन है, जब कि शत्रुओं की संख्या [[मुसलमान|मुसलमानों]] से कई गुना थी। उस वक़्त ईश्वर का कोप आँधी के रूप से उनके ऊपर पड़ा और ईश्वर ने मुसलमानों की सहायता के लिए फ़रिश्तों की फ़ौज भेजी।
*यह फ़रिश्ते आस्तिकों के पास आते हैं—
*यह फ़रिश्ते आस्तिकों के पास आते हैं—
“जो कहते हैं कि हमारा मालिक परमेश्वर है और (इस पर) दृढ़ हैं, उनके ऊपर फ़रिश्ते उतरते हैं और कहते हैं—डरो नहीं, अफ़सोस न करो, और स्वर्ग का शुभ सन्देश सुनो, जिसके मिलने के लिए तुम्हें वचन दिया गया है।“<ref>41:4:5</ref>
“जो कहते हैं कि हमारा मालिक परमेश्वर है और (इस पर) दृढ़ हैं, उनके ऊपर फ़रिश्ते उतरते हैं और कहते हैं—डरो नहीं, अफ़सोस न करो, और स्वर्ग का शुभ सन्देश सुनो, जिसके मिलने के लिए तुम्हें वचन दिया गया है।“<ref>41:4:5</ref>

Revision as of 13:06, 9 April 2012

जिस प्रकार पुराणों में परमेश्वर के बाद अनेक देवता भिन्न–भिन्न काम करने वाले माने जाते हैं, यमराज मृत्यु के अध्यक्ष, इन्द्र वृष्टि के अध्यक्ष इत्यादि, इसी प्रकार ‘इस्लाम’ ने फ़रिश्तों’ को माना है। पहले फ़रिश्तों के सम्बन्ध में क़ुरान में आए कुछ वाक्य देने पर इस पर विचार करना अच्छा होगा, इसलिए यहाँ वे वाक्य उदधृत किए जाते हैं- “जब हमें (परमेश्वर) ने फ़रिश्तों को (आदम के लिए) दण्डवत करने को कहा, तो सबने दण्डवत की, किन्तु इब्लीस ने इन्कार कर दिया, घमण्ड किया और (वह) नास्तिकों में से था।“[1] “जब हमने फ़रिश्तों को दण्डवत करने को कहा, तो इब्लीस के अतिरिक्त सभी ने किया। (इब्लीस) बोला - क्या मैं उसे दण्डवत करूँ जो मिट्टी से बना है।“[2] “जब हमने फ़रिश्तों को कहा - आदम को दण्डवत करो तो (उन्होंने) दण्डवत की, किन्तु इब्लीस, जो कि जिन्नों में से था - ने न किया।“[3]

ऊपर के वाक्यों में फ़रिश्तों का वर्णन आया है। भगवान ने आदम (मनुष्य के आदि पिता) को बनाकर उन्हें आदम को दण्डवत करने को कहा। सबने वैसा किया, किन्तु इब्लीस ने न किया। यह इब्लीस उस समय फ़रिश्तों में सबसे ऊपर (देवेन्द्र) था। तृतीय वाक्य में जो उसे ‘जिन्न’ कहा गया है, उससे ज्ञात होता है कि फ़रिश्ते और जिन्न एक ही हैं या जिन्न फ़रिश्तों के अंतर्गत ही कोई जाति है। इब्लीस ने यह कह कर आदम को दण्डवत करने से इन्कार किया कि वह मिट्टी से बना है। अतः मालूम पड़ता है कि उत्पत्ति किसी और अच्छे पदार्थ से हुई है। अन्यत्र इब्लीस के वाक्य ही से मालूम हो जाता है कि उनकी उत्पत्ति अग्नि से हुई है। अपने भक्तों की रक्षा के लिए ईश्वर इन फ़रिश्तों को भेजते हैं।

फ़रिश्तों से सहायता

‘हे ईमानवालों! अपने ऊपर ईश्वर की कृपा को स्मरण करो जब तुम्हारे ऊपर (शत्रुओं की) फ़ौज आयी, तो हमने इन (शत्रुओं की फ़ौज) पर आँधी भेजी तथा एक (फ़रिश्तों की) फ़ौज भेजी जिसे तुमने नहीं देखा।[4] यह एक युद्ध के सम्बन्ध में वर्णन है, जब कि शत्रुओं की संख्या मुसलमानों से कई गुना थी। उस वक़्त ईश्वर का कोप आँधी के रूप से उनके ऊपर पड़ा और ईश्वर ने मुसलमानों की सहायता के लिए फ़रिश्तों की फ़ौज भेजी।

  • यह फ़रिश्ते आस्तिकों के पास आते हैं—

“जो कहते हैं कि हमारा मालिक परमेश्वर है और (इस पर) दृढ़ हैं, उनके ऊपर फ़रिश्ते उतरते हैं और कहते हैं—डरो नहीं, अफ़सोस न करो, और स्वर्ग का शुभ सन्देश सुनो, जिसके मिलने के लिए तुम्हें वचन दिया गया है।“[5]

  • प्रत्येक मनुष्य के शुभाशुभ कर्मों के लेखक तथा रक्षक फ़रिश्ते हैं, जिनके विषय में कहा है—

“निस्सन्देह तुम्हारे ऊपर रखवाले हैं, किरामन कातिबीन। जो कुछ तुम करते हो, उसे (वह) जानते हैं।“[6] ‘हदास’ और ‘भाष्य’ (तफ़सीर) ग्रन्थों में आता है कि प्रत्येक मनुष्य के दोनों कन्धों पर ‘किरामन’ और ‘कातिबीन’ यह दो फ़रिश्ते बैठे रहते हैं, जिसमें से एक उसके सारे सुकर्मों को और दूसरा उसके सारे दुष्कर्मों को लिखता रहता है।

फ़रिश्तों के पंख

  • इन फ़रिश्तों के पर भी होते हैं—

“प्रशंसा परमेश्वर के लिए है, जो दो, तीन, चार पंख वाले फ़रिश्तों को दूत बनाता है।“[7]

  • कुछ फ़रिश्तों का नाम इस वाक्य में दिया गया है—

“कह (हे मुहम्मद!) निस्सन्देह जिसने ईश्वर की आज्ञा से तुझ पर इस (क़ुरान) को उतारा....उस ‘जिब्रील’ का जो शत्रु है, जो ईश्वर उसके रसूलों (दूतों, ऋषियों) का, फ़रिश्तों का, जिब्रील का, मीकाल का शत्रु है, निस्सन्देह भगवान (ऐसे) काफ़िरों (नास्तिकों) का शत्रु है।“[8] ऊपर आए दोनों फ़रिश्तों में ‘जिब्रील (जिब्राइल) सब फ़रिश्तों का सरदार है, ‘मीकाइल’ मृत्यु का फ़रिश्ता अर्थात् यमराज है। जिसका काम आयु पूरी होने पर सबको मारना है। ऐसे ही ‘हदीसों’ में और भी अनेक फ़रिश्तों के नाम और काम बतलाए गए हैं। ‘इस्राफील’ अपना नरसिंहा जब बजायेंगे, तब महाप्रलय होगी।



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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. REDIRECT साँचा:टिप्पणीसूची
  1. क़ुरान 2:4:5) (क़ुरान 20:7:1
  2. क़ुरान 17:7:1
  3. क़ुरान 20:116
  4. 32:2:1
  5. 41:4:5
  6. 82:1:10-12
  7. 35:1:1
  8. 2:12:1,2

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