उदायिन: Difference between revisions

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'''उदायिन''' (461 ई.पू. से 445 ई.पू.) [[हर्यक वंश|हर्यक वंशी]] [[अजातशत्रु]] का पुत्र था। उसने अपने [[पिता]] अजातशत्रु की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था।
'''उदायिन''' (461 ई.पू. से 445 ई.पू.) [[हर्यक वंश|हर्यक वंशी]] [[अजातशत्रु]] का पुत्र था। उसने अपने [[पिता]] अजातशत्रु की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था। कथाकोश में उसे [[अजातशत्रु|कुणिक]] (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। परिशिष्टपर्वन और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित जैसे कुछ अन्य जैन ग्रंथों में यह कहा गया है कि अपने पिता के समय में उदायिभद्र [[चंपा]] का [[राज्यपाल]] (गवर्नर) रह चुका था और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था। तदुपरांत सामंतों और मंत्रियों ने उससे मगध की राजगद्दी पर बैठने का आग्रह किया और उसे स्वीकार कर वह चंपा छोड़कर मगध की राजधानी गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=97 |url=}}</ref>
 
*'परिशिष्टपर्वन', 'गार्गी संहिता' तथा '[[वायुपुराण]]' के अनुसार उदायिन ने [[गंगा]] एवं [[सोन नदी]] के [[संगम]] पर [[पाटलिपुत्र]] नाम की राजधानी स्थापित की थी।
*'परिशिष्टपर्वन', 'गार्गी संहिता' तथा '[[वायुपुराण]]' के अनुसार उदायिन ने [[गंगा]] एवं [[सोन नदी]] के [[संगम]] पर [[पाटलिपुत्र]] नाम की राजधानी स्थापित की थी।
*उदायिन ने [[सोन नदी]] के तट पर स्थित [[पाटलिपुत्र]] से कुछ मील दूर [[गंगा]] के किनारे '[[कुसुमपुर]]' नामक नगर की स्थापना की थी। बाद में कुसुमपुर बृहत्तर [[पाटलिपुत्र]] का भाग बन गया।
*उदायिन ने [[सोन नदी]] के तट पर स्थित [[पाटलिपुत्र]] से कुछ मील दूर [[गंगा]] के किनारे '[[कुसुमपुर]]' नामक नगर की स्थापना की थी। बाद में कुसुमपुर बृहत्तर [[पाटलिपुत्र]] का भाग बन गया।
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Revision as of 07:48, 5 July 2018

उदायिन (461 ई.पू. से 445 ई.पू.) हर्यक वंशी अजातशत्रु का पुत्र था। उसने अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था। कथाकोश में उसे कुणिक (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। परिशिष्टपर्वन और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित जैसे कुछ अन्य जैन ग्रंथों में यह कहा गया है कि अपने पिता के समय में उदायिभद्र चंपा का राज्यपाल (गवर्नर) रह चुका था और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था। तदुपरांत सामंतों और मंत्रियों ने उससे मगध की राजगद्दी पर बैठने का आग्रह किया और उसे स्वीकार कर वह चंपा छोड़कर मगध की राजधानी गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 97 |

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