केवट: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
प्रभा तिवारी (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
||
Line 2: | Line 2: | ||
'''केवट''' रामायण का एक पात्र है जिसने [[श्रीराम|प्रभु श्रीराम]] को वनवास के दौरान माता [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] के साथ अपने नाव में बिठा कर [[गंगा]] पार करवाया था। इस कथा का वर्णन [[रामायण]] के [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्याकाण्ड]] में किया गया है। | '''केवट''' रामायण का एक पात्र है जिसने [[श्रीराम|प्रभु श्रीराम]] को वनवास के दौरान माता [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] के साथ अपने नाव में बिठा कर [[गंगा]] पार करवाया था। इस कथा का वर्णन [[रामायण]] के [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्याकाण्ड]] में किया गया है। | ||
*राम [[त्रेता युग]] की संपूर्ण समाज व्यवस्था के केंद्र में हैं, इसे सिद्ध करने की | *राम [[त्रेता युग]] की संपूर्ण समाज व्यवस्था के केंद्र में हैं, इसे सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है। केवट राम राज्य का प्रथम नागरिक बन जाता है। | ||
*केवट भोईवंश का था तथा मल्लाह का काम करता था। | *केवट भोईवंश का था तथा मल्लाह का काम करता था। | ||
*केवट प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त था। | *केवट प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त था। |
Latest revision as of 10:50, 2 January 2018
thumb|200px|केवट केवट रामायण का एक पात्र है जिसने प्रभु श्रीराम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने नाव में बिठा कर गंगा पार करवाया था। इस कथा का वर्णन रामायण के अयोध्याकाण्ड में किया गया है।
- राम त्रेता युग की संपूर्ण समाज व्यवस्था के केंद्र में हैं, इसे सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है। केवट राम राज्य का प्रथम नागरिक बन जाता है।
- केवट भोईवंश का था तथा मल्लाह का काम करता था।
- केवट प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त था।
चौपाई
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥1॥
भावार्थ:-श्री राम ने केवट से नाव माँगी, पर वह लाता नहीं। वह कहने लगा- मैंने तुम्हारा मर्म (भेद) जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है,॥1॥
छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई॥
तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई॥2॥
भावार्थ:-जिसके छूते ही पत्थर की शिला सुंदरी स्त्री हो गई (मेरी नाव तो काठ की है)। काठ पत्थर से कठोर तो होता नहीं। मेरी नाव भी मुनि की स्त्री हो जाएगी और इस प्रकार मेरी नाव उड़ जाएगी, मैं लुट जाऊँगा (अथवा रास्ता रुक जाएगा, जिससे आप पार न हो सकेंगे और मेरी रोजी मारी जाएगी) (मेरी कमाने-खाने की राह ही मारी जाएगी)॥2॥
एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥
जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥3॥
भावार्थ:-मैं तो इसी नाव से सारे परिवार का पालन-पोषण करता हूँ। दूसरा कोई धंधा नहीं जानता। हे प्रभु! यदि तुम अवश्य ही पार जाना चाहते हो तो मुझे पहले अपने चरणकमल पखारने (धो लेने) के लिए कह दो॥3॥[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ केवट का प्रेम और गंगा पार जाना (हिंदी) Hindu Travels। अभिगमन तिथि: 13-मई, 2016।