बकासुर का वध: Difference between revisions
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*इस घटना में [[कंस]] के एक दैत्य ने श्री[[कृष्ण]] को मारने के लिए एक बगुले का रूप धारण किया था। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे बकासुर कहा जाता है। दोपहर के पश्चात का समय था। श्रीकृष्ण दोपहर का भोजन करने के पश्चात एक वृक्ष की छाया में आराम कर रहे थे। सामने गाएं चर रही थीं। कुछ ग्वाल-बाल [[यमुना नदी|यमुना]] में पानी पीने गए। ग्वाल-बाल जब पानी पीने बैठे तो एक भयानक जंतु को देखकर चीत्कार कर उठे। वह जंतु था तो बगुले के आकार का, किंतु उसका मुख और चोंच बहुत बड़ी थी। ग्वाल-बालों ने ऐसा बगुला कभी नहीं देखा था। ग्वाल-बालों की चीत्कार सुनकर बाल कृष्ण उठ पड़े और उसी ओर दौड़ पड़े जिस ओर से चीत्कार आ रही थी। बाल कृष्ण ने यमुना के किनारे पहुंचकर उस भयानक जंतु को देखा। वह अपनी लंबी चोंच और विकराल आंखों को लिए गुड़मुड़ाकर पानी में बैठा था। बाल कृष्ण उस भयानक जंतु को देखते ही पहचान गए कि यह बक नहीं, कोई दैत्य है। उनकी रगों में विद्धुत का प्रवाह संचरित हो उठा। वे झपटकर बगुले के पास जा पहुंचे और उसकी गरदन पकड़ ली। उन्होंने उसकी गरदन इतनी जोर से मरोड़ी कि उसकी आंखें निकल आई। वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा और बेदम हो गया। | *इस घटना में [[कंस]] के एक दैत्य ने श्री[[कृष्ण]] को मारने के लिए एक बगुले का रूप धारण किया था। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे बकासुर कहा जाता है। दोपहर के पश्चात का समय था। श्रीकृष्ण दोपहर का भोजन करने के पश्चात एक वृक्ष की छाया में आराम कर रहे थे। सामने गाएं चर रही थीं। कुछ ग्वाल-बाल [[यमुना नदी|यमुना]] में पानी पीने गए। ग्वाल-बाल जब पानी पीने बैठे तो एक भयानक जंतु को देखकर चीत्कार कर उठे। वह जंतु था तो बगुले के आकार का, किंतु उसका मुख और चोंच बहुत बड़ी थी। ग्वाल-बालों ने ऐसा बगुला कभी नहीं देखा था। ग्वाल-बालों की चीत्कार सुनकर बाल कृष्ण उठ पड़े और उसी ओर दौड़ पड़े जिस ओर से चीत्कार आ रही थी। बाल कृष्ण ने यमुना के किनारे पहुंचकर उस भयानक जंतु को देखा। वह अपनी लंबी चोंच और विकराल आंखों को लिए गुड़मुड़ाकर पानी में बैठा था। बाल कृष्ण उस भयानक जंतु को देखते ही पहचान गए कि यह बक नहीं, कोई दैत्य है। उनकी रगों में विद्धुत का प्रवाह संचरित हो उठा। वे झपटकर बगुले के पास जा पहुंचे और उसकी गरदन पकड़ ली। उन्होंने उसकी गरदन इतनी जोर से मरोड़ी कि उसकी आंखें निकल आई। वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा और बेदम हो गया। | ||
*बगुले के रूप में भयानक राक्षस को देखकर ग्वाल-बालों को बड़ा आश्चर्य हुआ। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर हुआ हुआ कि उनके साथी कन्हैया ने उसे किस तरह मार डाला। वे अपने कन्हैया को [[देवता]] समझने लगे, परमात्मा समझने लगे। उन्होंने सन्ध्या समय बस्ती में जाकर कन्हैया की प्रशंसा करते हुए लोगों को बताया कि किस प्रकार कन्हैया ने एक भयानक दैत्य को, जो बगुले का रूप धारण किए हुए था, मार डाला। [[वत्सासुर का वध]] और बकासुर की मृत्यु की ख़बर सुनकर कंस चिंतित हो उठा। उसे समझने में देर नहीं लगी के अवश्य [[नंद]]राय का पुत्र ही [[देवकी]] के गर्भ का आठवां बालक है। अतः कंस कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए अपने दैत्यों को [[वृन्दावन]] भेजने लगा। | *बगुले के रूप में भयानक राक्षस को देखकर ग्वाल-बालों को बड़ा आश्चर्य हुआ। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर हुआ हुआ कि उनके साथी कन्हैया ने उसे किस तरह मार डाला। वे अपने कन्हैया को [[देवता]] समझने लगे, परमात्मा समझने लगे। उन्होंने सन्ध्या समय बस्ती में जाकर कन्हैया की प्रशंसा करते हुए लोगों को बताया कि किस प्रकार कन्हैया ने एक भयानक दैत्य को, जो बगुले का रूप धारण किए हुए था, मार डाला। [[वत्सासुर का वध]] और बकासुर की मृत्यु की ख़बर सुनकर कंस चिंतित हो उठा। उसे समझने में देर नहीं लगी के अवश्य [[नंद]]राय का पुत्र ही [[देवकी]] के गर्भ का आठवां बालक है। अतः कंस कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए अपने दैत्यों को [[वृन्दावन]] भेजने लगा। | ||
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Revision as of 06:16, 14 November 2010
- इस घटना में कंस के एक दैत्य ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक बगुले का रूप धारण किया था। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे बकासुर कहा जाता है। दोपहर के पश्चात का समय था। श्रीकृष्ण दोपहर का भोजन करने के पश्चात एक वृक्ष की छाया में आराम कर रहे थे। सामने गाएं चर रही थीं। कुछ ग्वाल-बाल यमुना में पानी पीने गए। ग्वाल-बाल जब पानी पीने बैठे तो एक भयानक जंतु को देखकर चीत्कार कर उठे। वह जंतु था तो बगुले के आकार का, किंतु उसका मुख और चोंच बहुत बड़ी थी। ग्वाल-बालों ने ऐसा बगुला कभी नहीं देखा था। ग्वाल-बालों की चीत्कार सुनकर बाल कृष्ण उठ पड़े और उसी ओर दौड़ पड़े जिस ओर से चीत्कार आ रही थी। बाल कृष्ण ने यमुना के किनारे पहुंचकर उस भयानक जंतु को देखा। वह अपनी लंबी चोंच और विकराल आंखों को लिए गुड़मुड़ाकर पानी में बैठा था। बाल कृष्ण उस भयानक जंतु को देखते ही पहचान गए कि यह बक नहीं, कोई दैत्य है। उनकी रगों में विद्धुत का प्रवाह संचरित हो उठा। वे झपटकर बगुले के पास जा पहुंचे और उसकी गरदन पकड़ ली। उन्होंने उसकी गरदन इतनी जोर से मरोड़ी कि उसकी आंखें निकल आई। वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा और बेदम हो गया।
- बगुले के रूप में भयानक राक्षस को देखकर ग्वाल-बालों को बड़ा आश्चर्य हुआ। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर हुआ हुआ कि उनके साथी कन्हैया ने उसे किस तरह मार डाला। वे अपने कन्हैया को देवता समझने लगे, परमात्मा समझने लगे। उन्होंने सन्ध्या समय बस्ती में जाकर कन्हैया की प्रशंसा करते हुए लोगों को बताया कि किस प्रकार कन्हैया ने एक भयानक दैत्य को, जो बगुले का रूप धारण किए हुए था, मार डाला। वत्सासुर का वध और बकासुर की मृत्यु की ख़बर सुनकर कंस चिंतित हो उठा। उसे समझने में देर नहीं लगी के अवश्य नंदराय का पुत्र ही देवकी के गर्भ का आठवां बालक है। अतः कंस कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए अपने दैत्यों को वृन्दावन भेजने लगा।
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