महेन्द्र वर्मन प्रथम: Difference between revisions
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- छठी सदी से पल्लवों का इतिहास अधिक स्पष्ट हो जाता है।
- इस सदी के अन्तिम भाग में सिंहविष्णु नाम के राजा ने दूर-दूर तक विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, और दक्षिण दिशा में आक्रमण कर उसने चोल और पांड्य राज्यों को जीत लिया।
- प्रसिद्ध चालुक्य सम्राट पुलकेशी द्वितीय के समय में पल्लव वंश का राजा महेन्द्रवर्मा प्रथम था, जो सातवीं सदी के शुरू में हुआ था।
- पुलकेशी द्वितीय महान विजेता था, और उसने नर्मदा नदी के दक्षिण में अपने विशाल साम्राज्य का विस्तार किया था।
- पल्लवराज महेन्द्रवर्मा के साथ उसके अनेक युद्ध हुए, जिनमें पुलकेशी द्वितीय विजयी हुआ।
- कसक्कुडी ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है, कि किसी युद्ध में महेन्द्रवर्मा ने भी पुलकेशी को परास्त किया था।
- पर इसमें सन्देह नहीं कि चालुक्य सम्राट पल्लवों के अनेक प्रदेशों को स्थायी रूप से अपनी अधीनता ले लाने में समर्थ हुआ था।
- वेंगि को पल्लवों से जीतकर पुलकेशी द्वितीय ने अपने छोटे भाई कुब्ज विष्णुवर्धन को वहाँ का शासक नियुक्त किया था, और इस प्रदेश के चालुक्य शासक ही आगे चलकर 'वेंगि के पूर्वी चालुक्य' नाम से विख्यात हुए।
- पुलकेशी द्वितीय से परास्त हो जाने पर भी महेन्द्रवर्मा काञ्जी में अपनी स्वतंत्र सत्ता क़ायम रखने में सफल रहा।
- पल्लव वंश के इतिहास में इस राजा का बहुत अधिक महत्व है। उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बहुत से मन्दिर अपने राज्य में बनवाये, और 'चैत्यकारी' का विरुद धारण किया।
- यह कविता और साहित्य का प्रेमी था।
- 'मत्तविलासप्रहसन' नामक उसकी रचना उसकी काव्यप्रियता की परिचायक है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ