सुन्दर काण्ड वा. रा.: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "ते है।" to "ते हैं।")
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 7: Line 7:
सुन्दरे सुन्दरीं सीतामक्षतां मारुतेर्मुखात्।<br />
सुन्दरे सुन्दरीं सीतामक्षतां मारुतेर्मुखात्।<br />
श्रुत्वा ह्रष्टस्तथैवाऽस्तु स राम: सततं ह्रदि॥<ref>रामायण-सुन्दरकाण्ड-तिलक टीका, पृ. 712</ref><br /> इस प्रकार सुन्दरकाण्ड रामायण का प्राण है। अत: इसकी महत्ता स्वयं ख्यापित है।
श्रुत्वा ह्रष्टस्तथैवाऽस्तु स राम: सततं ह्रदि॥<ref>रामायण-सुन्दरकाण्ड-तिलक टीका, पृ. 712</ref><br /> इस प्रकार सुन्दरकाण्ड रामायण का प्राण है। अत: इसकी महत्ता स्वयं ख्यापित है।
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 10:57, 21 March 2011

सुन्दरकाण्ड में हनुमानजी द्वारा समुद्रलंघन करके लंका पहुँचना, सुरसा-वृत्तान्त, लंकापुरी वर्णन, रावण के अन्त:पुर में प्रवेश तथा वहाँ का सरस वर्णन, अशोकवाटिका में प्रवेश तथा हनुमान के द्वारा सीता का दर्शन, सीता-रावण-संवाद, सीता को राक्षसियों के तर्जन की प्राप्ति, सीता-त्रिजटा-संवाद, स्वप्न-कथन, शिंशपा वृक्ष में अवलीन हनुमान का नीचे उतरना तथा सीता से अपने को राम का दूत बताना, राम की अंगूठी सीता को दिखाना, “मैं केवल एक मास तक जीवित रहूँगी उसके पश्चात नहीं” ऐसा सन्देश सीता के द्वारा हनुमान को देना, लंका के चैत्य-प्रासादों को उखाड़ना तथा राक्षसों को मारना आदि हनुमान जी कृत्य वर्णित हैं।


इस काण्ड में अक्षकुमार का वध, हनुमान का मेघनाद के साथ युद्ध, मेघनाद के द्वारा ब्रह्मास्त्र से हनुमान का बन्धनपूर्वक रावण के दरबार में प्रवेश, रावण-हनुमान-संवाद, विभीषण के द्वारा दूतवध न करने का परामर्श, हनुमान की पूँछ जलाने की आज्ञा, लंका-दहन, हनुमानजी का सीता-दर्शन के पश्चात प्रत्यावर्तन, समाचार-कथन, दधिमुख-वृत्तान्त, हनुमान के द्वारा सीता से ली गई काञ्चनमणि राम को समर्पित करना, तथा सीता की दशा आदि का वर्णन किया गया है। इस काण्ड में 68 सर्ग हैं। इनमें 2,855 श्लोक दृष्टिगत होते हैं। धार्मिक दृष्टि से काण्ड का पारायण समाज में बहुधा प्रचलित है। बृहद्धर्मपुराण में श्राद्ध तथा देवकार्य में इसके पाठ का विधान है।[1] सुन्दरकाण्ड में हनुमच्चरित का प्रतिपादन होने से हनुमान जी के भक्त इस काण्ड का श्रद्धापूर्वक पाठ करते हैं। वास्तव में सुन्दरकाण्ड में सब कुछ रमणीय प्रतीत होता है-
सुन्दरे सुन्दरी सीता सुन्दरे सुन्दर: कपि:।
सुन्दरे सुन्दरो राम: सुन्दरे किन्न सुन्दरम्॥
कदाचित विरहप्रपीडित राम को सीता का शुभ सन्देश तथा सीता को राम का सन्देश मिलने के कारण राम तथा सीता दोनों मनोरम हो गये। इसी प्रकार हनुमान जी भी राम का कार्य करने के कारण अत्यन्त प्रफुल्लित हुए। अतएव इस काण्ड का नाम वाल्मीकि ने सुन्दर रखा होगा। रामायण की तिलक टीका के अन्त में प्रकारान्तर से यही भाव स्पष्ट किया गया है-
सुन्दरे सुन्दरीं सीतामक्षतां मारुतेर्मुखात्।
श्रुत्वा ह्रष्टस्तथैवाऽस्तु स राम: सततं ह्रदि॥[2]
इस प्रकार सुन्दरकाण्ड रामायण का प्राण है। अत: इसकी महत्ता स्वयं ख्यापित है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्राद्धेषु देवकार्येषु पठेत् सुन्दरकाण्डम्॥(बृहद्धर्मपुराण-पूर्वखण्ड 26.12)
  2. रामायण-सुन्दरकाण्ड-तिलक टीका, पृ. 712

संबंधित लेख