अयोध्या काण्ड वा. रा.: Difference between revisions
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अयोध्याकाण्ड में राजा [[दशरथ]] द्वारा [[राम]] को युवराज बनाने का विचार, राम के राज्यभिषेक की तैयारियाँ, राम को राजनीति का उपदेश, श्रीराम का [[अभिषेक]] सुनकर [[मन्थरा]] का [[कैकेयी]] को उकसाना, कैकेयी का कोपभवन में प्रवेश, राजा से कैकेयी का वरदान माँगना, राजा की चिन्ता, [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को राज्यभिषेक तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास, श्रीराम का [[कौशल्या]], दशरथ तथा माताओं से अनुज्ञा लेकर [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]] के साथ वनगमन, कौसल्या तथा [[सुमित्रा]] के निकट विलाप करते हुए दशरथ का प्राणत्याग, भरत का आगमन, तथा राम को लेने [[चित्रकूट]] गमन, राम-भरत-संवाद, जाबालि-राम-संवाद, राम-[[वसिष्ठ]]-संवाद, भरत का लौटना, राम का अत्रि के आश्रम गमन, तथा [[अनुसूया]] का सीता को पातिव्रत धर्म का उपदेश आदि कथानक वर्णित है। अयोध्याकाण्ड में 119 सर्ग हैं तथा इन सर्गों में सम्मिलित रूपेण श्लोकों की संख्या 4,286 है। इस काण्ड का पाठ पुत्रजन्म, विवाह तथा गुरुदर्शन हेतु किया जाना चाहिए।<ref>पुत्रजन्म विवाहादौ गुरुदर्शन एव च।<br /> | अयोध्याकाण्ड में राजा [[दशरथ]] द्वारा [[राम]] को युवराज बनाने का विचार, राम के राज्यभिषेक की तैयारियाँ, राम को राजनीति का उपदेश, श्रीराम का [[अभिषेक]] सुनकर [[मन्थरा]] का [[कैकेयी]] को उकसाना, कैकेयी का कोपभवन में प्रवेश, राजा से कैकेयी का वरदान माँगना, राजा की चिन्ता, [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को राज्यभिषेक तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास, श्रीराम का [[कौशल्या]], दशरथ तथा माताओं से अनुज्ञा लेकर [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]] के साथ वनगमन, कौसल्या तथा [[सुमित्रा]] के निकट विलाप करते हुए दशरथ का प्राणत्याग, भरत का आगमन, तथा राम को लेने [[चित्रकूट]] गमन, राम-भरत-संवाद, जाबालि-राम-संवाद, राम-[[वसिष्ठ]]-संवाद, भरत का लौटना, राम का अत्रि के आश्रम गमन, तथा [[अनुसूया]] का सीता को पातिव्रत धर्म का उपदेश आदि कथानक वर्णित है। अयोध्याकाण्ड में 119 सर्ग हैं तथा इन सर्गों में सम्मिलित रूपेण श्लोकों की संख्या 4,286 है। इस काण्ड का पाठ पुत्रजन्म, विवाह तथा गुरुदर्शन हेतु किया जाना चाहिए।<ref>पुत्रजन्म विवाहादौ गुरुदर्शन एव च।<br /> | ||
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Revision as of 12:38, 27 July 2011
अयोध्याकाण्ड में राजा दशरथ द्वारा राम को युवराज बनाने का विचार, राम के राज्यभिषेक की तैयारियाँ, राम को राजनीति का उपदेश, श्रीराम का अभिषेक सुनकर मन्थरा का कैकेयी को उकसाना, कैकेयी का कोपभवन में प्रवेश, राजा से कैकेयी का वरदान माँगना, राजा की चिन्ता, भरत को राज्यभिषेक तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास, श्रीराम का कौशल्या, दशरथ तथा माताओं से अनुज्ञा लेकर लक्ष्मण तथा सीता के साथ वनगमन, कौसल्या तथा सुमित्रा के निकट विलाप करते हुए दशरथ का प्राणत्याग, भरत का आगमन, तथा राम को लेने चित्रकूट गमन, राम-भरत-संवाद, जाबालि-राम-संवाद, राम-वसिष्ठ-संवाद, भरत का लौटना, राम का अत्रि के आश्रम गमन, तथा अनुसूया का सीता को पातिव्रत धर्म का उपदेश आदि कथानक वर्णित है। अयोध्याकाण्ड में 119 सर्ग हैं तथा इन सर्गों में सम्मिलित रूपेण श्लोकों की संख्या 4,286 है। इस काण्ड का पाठ पुत्रजन्म, विवाह तथा गुरुदर्शन हेतु किया जाना चाहिए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुत्रजन्म विवाहादौ गुरुदर्शन एव च।
पठेच्च श्रृणुयाच्चेव द्वितीयं काण्डमुत्तमम्॥(बृहद्धर्मपुराण-पूर्वखण्ड 26.10
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