तलत महमूद: Difference between revisions

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==जन्म तथा शिक्षा==
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तलत महमूद गायक और अभिनेता बनने की चाहत लिए [[1944]] में [[कोलकाता]] चले गए। उन्होंने शुरुआत में तपन कुमार के नाम से गाने गाए, जिनमें कई बंगाली गाने भी थे। वास्तव में कैमरे के सामने आते ही तलत महमूद तनाव में आ जाते थे, जबकि गायन में सहज महसूस करते थे। कोलकाता में बनी फ़िल्म 'स्वयंसिद्धा' ([[1945]]) में पहली बार उन्होंने पार्श्वगायन किया। अपनी सफलता से प्रेरित होकर बाद में तलत [[मुंबई]] आ गए और संगीतकार अनिल विश्वास से मिले।
==प्रसिद्धि==
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शुरुआत में तो उन्हें मुंबई में कोई ख़ास सफलती नहीं मिली, लेकिन बाद में मुंबई में प्रदर्शित फ़िल्म 'राखी' ([[1949]]), 'अनमोल रतन' ([[1950]]) और 'आरजू' (1950) से उनके करियर को विशेष चमक मिली। फ़िल्म 'आरजू' की गजल "ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो..." ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से तलत और [[दिलीप कुमार]] का अनूठा संयोग बना, जो कई फ़िल्मों में दोहराया गया। तलत महमूद ने हिन्दी की तैरह फ़िल्मों और तीन बांग्ला फ़िल्मों में अभिनय भी किया। उन्होंने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाये।
शुरुआत में तो उन्हें मुंबई में कोई ख़ास सफलती नहीं मिली, लेकिन बाद में मुंबई में प्रदर्शित फ़िल्म 'राखी' ([[1949]]), 'अनमोल रतन' ([[1950]]) और 'आरजू' (1950) से उनके करियर को विशेष चमक मिली। फ़िल्म 'आरजू' की गजल "ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो..." ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से तलत और [[दिलीप कुमार]] का अनूठा संयोग बना, जो कई फ़िल्मों में दोहराया गया। तलत महमूद ने हिन्दी की तैरह फ़िल्मों और तीन बांग्ला फ़िल्मों में अभिनय भी किया। उन्होंने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाये। मशहूर संगीतकार [[नौशाद]] ने भी तलत को फ़िल्म 'बाबुल' के लिए गाने का मौका दिया। अभिनेता दिलीप कुमार पर फ़िल्माया गया उनका गाना "मिलते ही आंखे दिल हुआ दीवाना किसी का..." बहुत सराहा गया। इसके बाद तो तलत ने लगातार कई फ़िल्मों में लगातार हिट गने दिए और खूब नाम कमाया। साठ का दशक आते-आते तलत की आवाज़ की मांग घटने लगी। उसी समय फ़िल्म 'सुजाता' के लिए उनका गाना "जलते हैं जिसके लिए..." कूब चला और पसंद किया गया। तलत महमूद ने [[हिन्दी]] फ़िल्मों में आखिरी बार 'जहाँआरा' के लिए गाया। इस फ़िल्म का संगीत [[मदन मोहन]] ने दिया था।
 
मशहूर संगीतकार [[नौशाद]] ने भी तलत को फ़िल्म 'बाबुल' के लिए गाने का मौका दिया। अभिनेता दिलीप कुमार पर फ़िल्माया गया उनका गाना "मिलते ही आंखे दिल हुआ दीवाना किसी का..." बहुत सराहा गया। इसके बाद तो तलत ने लगातार कई फ़िल्मों में लगातार हिट गने दिए और खूब नाम कमाया। साठ का दशक आते-आते तलत की आवाज़ की मांग घटने लगी। उसी समय फ़िल्म 'सुजाता' के लिए उनका गाना "जलते हैं जिसके लिए..." कूब चला और पसंद किया गया। तलत महमूद ने [[हिन्दी]] फ़िल्मों में आखिरी बार 'जहाँआरा' के लिए गाया। इस फ़िल्म का संगीत [[मदन मोहन]] ने दिया था।
==योगदान==
==योगदान==
'गजल' गायकी को तलत महमूद ने सम्माननीय ऊँचाईयाँ प्रदान कीं। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार और संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं। गजल के आधुनिक स्वरूप से वे काफ़ी निराश थे। विशेषकर बीच में सुनाए जाने वाले चुटकुलों पर उन्हें सख्त एतराज था। बतौर तलत महमूद के कथनानुसार- "गजल प्रेम का गीत होती है, हम उसे बाजारू क्यों बना रहे हैं। इसकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।" मदन मोहन, अनिल विश्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी ख़ासियत थी।
'गजल' गायकी को तलत महमूद ने सम्माननीय ऊँचाईयाँ प्रदान कीं। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार और संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं। गजल के आधुनिक स्वरूप से वे काफ़ी निराश थे। विशेषकर बीच में सुनाए जाने वाले चुटकुलों पर उन्हें सख्त एतराज था। बतौर तलत महमूद के कथनानुसार- "गजल प्रेम का गीत होती है, हम उसे बाजारू क्यों बना रहे हैं। इसकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।" मदन मोहन, अनिल विश्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी ख़ासियत थी।
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मखमली आवाज़ के जरिए लोगों को अर्से तक अपना दीवाना बनाने वाले इस कलाकार ने [[9 मई]], [[1998]] को दुनिया से विदा ली।
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://www.talatmahmood.net/ आधिकारिक वेबसाइट]
*[http://cineplot.com/music/legends-talat-mahmood/ Legends – Talat Mahmood]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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Revision as of 11:38, 5 May 2013

तलत महमूद
पूरा नाम तलत महमूद
अन्य नाम तपन कुमार
जन्म 24 फरवरी, 1924
जन्म भूमि लखनऊ
मृत्यु मृत्यु-9 मई, 1998
मृत्यु स्थान मुंबई
संतान ख़ालिद महमूद
कर्म भूमि मुंबई, कोलकाता
कर्म-क्षेत्र गायक तथा अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'मालिक', 'सोने की चिड़िया', 'एक गाँव की कहानी', 'दीवाली की रात', 'रफ़्तार', 'डाक बाबू', 'वारिस', 'दिल-ए-नादान', 'तुम और मैं', 'राजलक्ष्मी'
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मभूषण' (1992)
प्रसिद्धि गजल गायक
विशेष योगदान 'गजल' गायकी को श्रेष्ठता व सम्मान दिलाने में आपका ख़ास योगदान था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी तलत जी ने हिन्दी फ़िल्मों में आखिरी बार 'जहाँआरा' के लिए गाया। इस फ़िल्म का संगीत मदन मोहन ने दिया था।
बाहरी कड़ियाँ *आधिकारिक वेबसाइट

तलत महमूद (अंग्रेज़ी:Talat Mahmood; जन्म- 24 फरवरी, 1924, लखनऊ; मृत्यु- 9 मई, 1998, मुंबई) भारत के प्रसिद्ध पार्श्वगायक और फ़िल्म अभिनेता थे। इन्होंने गजल गायक के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त की थी। शुरुआत में उन्होंने 'तपन कुमार' के नाम से गाने गाये थे। बेहद सौम्य और विनम्र स्वभाव के तलत महमूद के लिए संगीत एक जुनून था, जबकि उनकी अदाकारी ने उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार के रूप में पहचान दिलाई। मात्र सोलह वर्ष की उम्र में ही गजल गायक के तौर पर अपने सफर की शुरुआत करने वाले तलत महमूद ने उस जमाने की जानी-मानी अभिनेत्रियों- सुरैया, नूतन और माला सिन्हा के साथ भी हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय किया था। उनके योगदान के लिए सन 1992 में उन्हें 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किया गया।

जन्म तथा शिक्षा

तलत महमूद का जन्म लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के एक खानदानी मुस्लिम परिवार में 24 फ़रवरी, 1924 को हुआ था। उनके पिता का नाम मंजूर महमूद था। तीन बहन और दो भाइयों के बाद तलत महमूद छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश इन्हें मिला। इनकी बुआ को तलत की आवाज़ की 'लरजिश'[1] पसंद थी। भतीजे तलत महमूद बुआ से प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते 'मोरिस संगीत विद्यालय', वर्तमान में 'भातखंडे संगीत विद्यालय', में उन्होंने दाखिला लिया।

प्रथम गायकी

शुरुआत में तलत महमूद ने लखनऊ आकाशवाणी से गाना शुरू किया। उन्होंने सोलह साल की उम्र में ही पहली बार आकाशवाणी के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड करवाया था। इस गाने को लखनऊ शहर में काफ़ी प्रसिद्धि मिली। इसके बाद प्रसिद्ध संगीत कम्पनी एचएमवी की एक टीम लखनऊ आई और इस गाने के साथ-साथ तीन और गाने तलत से गवाए गए। इस सफलता से तलत की किस्मत चमक गई। यह वह दौर था, जब सुरीले गायन और आकर्षक व्यक्तित्व वाले युवा हीरो बनने के ख्वाब सँजोया करते थे।

मुंबई आगमन

तलत महमूद गायक और अभिनेता बनने की चाहत लिए 1944 में कोलकाता चले गए। उन्होंने शुरुआत में तपन कुमार के नाम से गाने गाए, जिनमें कई बंगाली गाने भी थे। वास्तव में कैमरे के सामने आते ही तलत महमूद तनाव में आ जाते थे, जबकि गायन में सहज महसूस करते थे। कोलकाता में बनी फ़िल्म 'स्वयंसिद्धा' (1945) में पहली बार उन्होंने पार्श्वगायन किया। अपनी सफलता से प्रेरित होकर बाद में तलत मुंबई आ गए और संगीतकार अनिल विश्वास से मिले।

प्रसिद्धि

शुरुआत में तो उन्हें मुंबई में कोई ख़ास सफलती नहीं मिली, लेकिन बाद में मुंबई में प्रदर्शित फ़िल्म 'राखी' (1949), 'अनमोल रतन' (1950) और 'आरजू' (1950) से उनके करियर को विशेष चमक मिली। फ़िल्म 'आरजू' की गजल "ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो..." ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से तलत और दिलीप कुमार का अनूठा संयोग बना, जो कई फ़िल्मों में दोहराया गया। तलत महमूद ने हिन्दी की तैरह फ़िल्मों और तीन बांग्ला फ़िल्मों में अभिनय भी किया। उन्होंने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाये। मशहूर संगीतकार नौशाद ने भी तलत को फ़िल्म 'बाबुल' के लिए गाने का मौका दिया। अभिनेता दिलीप कुमार पर फ़िल्माया गया उनका गाना "मिलते ही आंखे दिल हुआ दीवाना किसी का..." बहुत सराहा गया। इसके बाद तो तलत ने लगातार कई फ़िल्मों में लगातार हिट गने दिए और खूब नाम कमाया। साठ का दशक आते-आते तलत की आवाज़ की मांग घटने लगी। उसी समय फ़िल्म 'सुजाता' के लिए उनका गाना "जलते हैं जिसके लिए..." कूब चला और पसंद किया गया। तलत महमूद ने हिन्दी फ़िल्मों में आखिरी बार 'जहाँआरा' के लिए गाया। इस फ़िल्म का संगीत मदन मोहन ने दिया था।

योगदान

'गजल' गायकी को तलत महमूद ने सम्माननीय ऊँचाईयाँ प्रदान कीं। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार और संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं। गजल के आधुनिक स्वरूप से वे काफ़ी निराश थे। विशेषकर बीच में सुनाए जाने वाले चुटकुलों पर उन्हें सख्त एतराज था। बतौर तलत महमूद के कथनानुसार- "गजल प्रेम का गीत होती है, हम उसे बाजारू क्यों बना रहे हैं। इसकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।" मदन मोहन, अनिल विश्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी ख़ासियत थी।

विदेश में गायन

तलत महमूद पहले भारतीय गायक थे, जिन्होंने 1956 में विदेश में (पूर्वी अफ्रीका में) कार्यक्रम दिया था। इसके अलावा उन्होंने लंदन के 'रॉयल अल्बर्ट हॉल', अमेरिका के 'मेडिसन स्क्वेयर गार्डन' और वेस्टइंडीज के 'जीन पियरे काम्प्लेक्स' में भी कार्यक्रम दिए।

नौशाद का कथन

1986 में तलत महमूद ने आखिरी रिकार्डिंग गजल एल्बम 'आखिरी साज उठाओ' के लिए की थी। संगीत निदेशक नौशाद ने एक बार कहा था कि "तलत महमूद के बारे में मेरी राय बहुत ऊँची है। उनकी गायिकी का अंदाज अलग है। जब वह अपनी मखमली आवाज़ से अनोखे अंदाज में गजल गाते हैं, तो गजल की असली मिठास का अहसास होता है। उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है और उन्हें पता है कि किस शब्द पर ज़ोर देना है। तलत के होंठो से निकले किसी शब्द को समझने में कठिनाई नहीं होती।" निर्देशक और निर्माता महबूब ख़ान जब कभी उनसे मिलते तो तलत के गले पर उंगली रखते और उनसे कहते ख़ुदा का नूर तुम्हारे गले में है।

प्रसिद्ध नगमें

  1. जाएँ तो जाएँ कहाँ - (टैक्सी ड्राइवर)
  2. सब कुछ लुटा के होश - (एक साल)
  3. फिर वही शाम, वही गम - (जहाँआरा)
  4. मेरा करार ले जा - (आशियाना)
  5. शाम-ए-ग़म की कसम - (फुटपाथ)
  6. हमसे आया न गया - (देख कबीरा रोया)
  7. प्यार पर बस तो नहीं - (सोने की चिड़िया)
  8. जिंदगी देने वाले सुन - (दिल-ए-नादान)
  9. अंधे जहान के अंधे रास्ते - (पतिता)
  10. इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा - (छाया)
  11. आहा रिमझिम के ये - (उसने कहा था)
  12. दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है - (मिर्ज़ा ग़ालिब)

फ़िल्मी सफर

  1. मालिक - 1958
  2. सोने की चिड़िया - 1958
  3. एक गाँव की कहानी - 1957
  4. दीवाली की रात - 1956
  5. रफ़्तार - 1955
  6. डाक बाबू - 1954
  7. वारिस- 1954
  8. दिल-ए-नादान - 1953
  9. आराम - 1951
  10. सम्पत्ति - 1949
  11. तुम और मैं - 1947
  12. राजलक्ष्मी - 1945

सम्मान तथा पुरस्कार

तलत महमूद ने अपने लम्बे कैरियर में हिन्दी समेत विभिन्न भाषाओं में क़रीब 800 गीत गाए, जिनमें से उनके कई गीत आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं। साठ के दशक में फ़िल्मी गीतों के अंदाज में आए बदलाव से तलत महमूद जैसे गायक तालमेल नहीं बैठा सके और उनका कैरियर उतार पर आ गया। फ़िल्मी गीतों में मुहम्मद रफ़ी और मुकेश जैसे नए गायकों के छा जाने से महमूद का दायरा सीमित हो गया।

निधन

मखमली आवाज़ के जरिए लोगों को अर्से तक अपना दीवाना बनाने वाले इस कलाकार ने 9 मई, 1998 को दुनिया से विदा ली।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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