चिताभूमि: Difference between revisions
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'''चिताभूमि''' देवी [[सती]] के बावन [[शक्तिपीठ|शक्तिपीठों]] में से एक है। संथाल परगना जनपद के [[गिरीडीह ज़िला|गिरीडीह]] रेलवे स्टेशन के समीप [[देवघर]] पर स्थित स्थान को 'चिताभूमि' कहा गया है। माना जाता है कि [[लंका]] के राजा [[रावण]] ने यहाँ शिवोपासना की थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=333|url=}}</ref> | '''चिताभूमि''' देवी [[सती]] के बावन [[शक्तिपीठ|शक्तिपीठों]] में से एक है। [[संथाल परगना|संथाल परगना जनपद]] के [[गिरीडीह ज़िला|गिरीडीह]] रेलवे स्टेशन के समीप [[देवघर]] पर स्थित स्थान को 'चिताभूमि' कहा गया है। माना जाता है कि [[लंका]] के राजा [[रावण]] ने यहाँ शिवोपासना की थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=333|url=}}</ref> | ||
*जिस समय भगवान [[शंकर]] सती के शव को अपने कन्धे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर सती का 'हृत्पिण्ड' अर्थात [[हृदय]] भाग गलकर गिर गया था। | *जिस समय भगवान [[शंकर]] सती के शव को अपने कन्धे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर सती का 'हृत्पिण्ड' अर्थात [[हृदय]] भाग गलकर गिर गया था। |
Revision as of 09:32, 28 May 2015
चिताभूमि देवी सती के बावन शक्तिपीठों में से एक है। संथाल परगना जनपद के गिरीडीह रेलवे स्टेशन के समीप देवघर पर स्थित स्थान को 'चिताभूमि' कहा गया है। माना जाता है कि लंका के राजा रावण ने यहाँ शिवोपासना की थी।[1]
- जिस समय भगवान शंकर सती के शव को अपने कन्धे पर रखकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर सती का 'हृत्पिण्ड' अर्थात हृदय भाग गलकर गिर गया था।
- भगवान शंकर ने सती के उस हृत्पिण्ड का दाह संस्कार इसी स्थान पर किया था, जिसके कारण इसका नाम 'चिताभूमि' पड़ गया।
- शिवपुराण में एक निम्नलिखित श्लोक भी आता है, जिससे वैद्यनाथ का 'चिताभूमि' में स्थान माना जाता है-
प्रत्यक्षं तं तदा दृष्टवा प्रतिष्ठाप्य च ते सुरा:।
वैद्यनाथेति सम्प्रोच्य नत्वा नत्वा दिवं ययु:।।
अर्थात 'देवताओं ने भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन किया और उसके बाद उनके लिंग की प्रतिष्ठा की। देवगण उस लिंग को 'वैद्यनाथ' नाम देकर, उसे नमस्कार करते हुए स्वर्गलोक को चले गये।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 333 |
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