आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट: Difference between revisions
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कुछ समय पहले मुझसे एक प्रश्न किया गया था। जोकि फ़ेसबुक मित्र ने ही किया था। उसका जवाब आज दे रहा हूँ- | |||
प्रश्न:- | |||
Sir आपने लगभग 1 वर्ष पहले ये वाक्य उत्पन्न किये थे..'जाट जाति नहीं नस्ल है'...Sir हम इन विचारों के पीछे के आधार जानना चाहते हैं...हम जानना चाहते हैं कि ये विचार आपने किस आधार पर उत्पन्न किये थे....आपके वाक्य हमारी सोच को परिपक्वता प्रदान करेंगे। | |||
उत्तर:- | |||
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मैं जाति-नस्ल या धर्म के कारण किए गए भेद-भाव से पूर्णत: असहमत हूँ। यहाँ मैं प्रश्न के उत्तर के लिए ही जाति आदि का उल्लेख कर रहा हूँ। | |||
जाति की पहचान से सामान्य-कर्म की जानकारी होती थी। जो अब सामान्यत: नहीं होती। यदि पारंपरिक आधार से कहें तो जो आपका रोज़गार या व्यवसाय है वही आपकी जाति है। नस्ल की पहचान आपके; स्वभाव, देहयष्टि, चेहरे और शरीर के हावभाव आदि से होती है। नस्ल के लिए गोत्र शब्द का भी इस्तेमाल कहीं-कहीं हो सकता है। | |||
विश्व में लगभग सात प्रकार की मुख्य नस्ल हैं। जिनके अनुसार हाथों, पैरों, उँगलियों, आँखों, मुख, माथा आदि की बनावट श्रेणीगत की जाती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हम सभी सात मांओं की संतान हैं। डी.एन.ए की बनावट का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुँचे हैं। | |||
रुचिकर बात तो यह है कि भारतीय संस्कृति में मूल देवियों के रूप में ‘सप्त मातृका’ का ज़िक्र बार-बार आया है। इसी प्रकार पश्चिमी संस्कृति में भी ऍडम की पत्नी ईव की सात बेटियाँ बताई गई हैं। सात की संख्या का दूसरे विभागों में भी विशेष महत्व है। जैसे सात रंग, सात सुर, सात समन्दर और हिन्दू शादी में सात ही फेरे जैसे बहुत से उदाहरण विज्ञान और धर्म में दिए जा सकते हैं। | |||
ख़ैर... | |||
नस्ल के लिए ज़िम्मेदार है; डी.एन.ए., पानी, खान-पान, ब्लड ग्रुप, मौसम और निवास स्थान। जबकि जाति के लिए रोज़गार और व्यवसाय ही ज़िम्मेदार हैं। एक जाति के भीतर कई नस्लें हो सकती हैं और एक नस्ल के भीतर कई जातियाँ। कालान्तर में नस्ल बदल भी जाती है। जिसका कारण हज़ारों वर्षों तक उस नस्ल का किसी ऐसी जाति के कार्य को अपना लेना होता है जो कि उस नस्ल के स्वभाव और शारीरिक बनावट से पूरी तरह भिन्न होता है। | |||
ब्राह्मणों के बारे में चर्चा करें तो; नंबूदरीपाद, चित्तपावन, सारस्वत, गौतम, सनाड्य आदि की बनावट में पर्याप्त भिन्नता है। इनके स्वभाव में भी भिन्नता है। इसका कारण नस्ल या गोत्र है न कि जाति क्योंकि जाति तो सबकी एक ही है। | |||
जहाँ तक मेरा अन्दाज़ा है मेरा आशय स्पष्ट है। | |||
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| 24 अप्रैल, 2016 | |||
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Revision as of 12:25, 27 April 2016
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