आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अप्रॅल 2015: Difference between revisions
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; दिनांक- 26 अप्रॅल, 2015 | |||
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यह लेख मैंने 23 फ़रवरी 2012 को लिखा क्योंकि 23 फ़रवरी को ही इस लेख का लिखा जाना शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। 23 फ़रवरी का दिन उन लोगों के लिए सम्भवत: सबसे महत्त्वपूर्ण है जो किताबों में रुचि रखते हैं, अध्ययन करते हैं और उसके अलावा भी शायद ही कोई ऐसा हो जिसके जीवन में यह दिन सबसे महत्त्वपूर्ण ना हो। क्या हुआ था इस दिन? | यह लेख मैंने 23 फ़रवरी 2012 को लिखा क्योंकि 23 फ़रवरी को ही इस लेख का लिखा जाना शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। 23 फ़रवरी का दिन उन लोगों के लिए सम्भवत: सबसे महत्त्वपूर्ण है जो किताबों में रुचि रखते हैं, अध्ययन करते हैं और उसके अलावा भी शायद ही कोई ऐसा हो जिसके जीवन में यह दिन सबसे महत्त्वपूर्ण ना हो। क्या हुआ था इस दिन? | ||
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मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी ( ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) अर्थात सूर्य का पुत्र। सोचने वाली बात ये है कि भगवान 'राम' का नाम भी इसी प्रकार का है और वे भी सूर्य वंशी ही हैं। अगर ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है तो बेहद दिलचस्प इत्तफ़ाक़ है। नाम कोई भी रहा हो रेमसी, इमहोतेप या टॉलेमी; स्वरों के बिना उन्हें सही पढ़ना बहुत कठिन था। मशहूर रानी क्लिओपात्रा के नाम में भी दिक़्क़त आयी उसे 'क ल प त र' ही पढ़ा जाता रहा जब तक कि स्वरों की गुत्थी नहीं सुलझी। 'क्लिओपात्रा' कोई नाम नहीं बल्कि रानी की उपाधि थी जिस क्लिओपात्रा को हम-आप जानते हैं वह सातवीं क्लिओपात्रा थी। उस समय मिस्र के राजाओं की उपाधि 'टॉलेमी' हुआ करती थी। उस समय भारत में भी उपाधियाँ चल रही थीं जिन्हें व्यक्ति समझ लिया जाता है जैसे व्यास, नारद, वशिष्ठ आदि। | मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी ( ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) अर्थात सूर्य का पुत्र। सोचने वाली बात ये है कि भगवान 'राम' का नाम भी इसी प्रकार का है और वे भी सूर्य वंशी ही हैं। अगर ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है तो बेहद दिलचस्प इत्तफ़ाक़ है। नाम कोई भी रहा हो रेमसी, इमहोतेप या टॉलेमी; स्वरों के बिना उन्हें सही पढ़ना बहुत कठिन था। मशहूर रानी क्लिओपात्रा के नाम में भी दिक़्क़त आयी उसे 'क ल प त र' ही पढ़ा जाता रहा जब तक कि स्वरों की गुत्थी नहीं सुलझी। 'क्लिओपात्रा' कोई नाम नहीं बल्कि रानी की उपाधि थी जिस क्लिओपात्रा को हम-आप जानते हैं वह सातवीं क्लिओपात्रा थी। उस समय मिस्र के राजाओं की उपाधि 'टॉलेमी' हुआ करती थी। उस समय भारत में भी उपाधियाँ चल रही थीं जिन्हें व्यक्ति समझ लिया जाता है जैसे व्यास, नारद, वशिष्ठ आदि। | ||
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; दिनांक- 15 अप्रॅल, 2015 | |||
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श्रीमद्भगवद्गीता | श्रीमद्भगवद्गीता | ||
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अगली बार श्रीमद्भगवद्गीता का कोई और श्लोक... | अगली बार श्रीमद्भगवद्गीता का कोई और श्लोक... | ||
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; दिनांक- 15 अप्रॅल, 2015 | |||
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किसी ने कन्फ़्यूशस से पूछा कि मृत्यु क्या है ? | किसी ने कन्फ़्यूशस से पूछा कि मृत्यु क्या है ? | ||
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“धन्य हैं आप सभी… कथा कहने वाले भी और सुनने वाले भी… मैंने एक बार वैराग्य की कथा सुनी और मैं इसके मर्म को समझ कर वैरागी हो गया किन्तु आप तो रोज़ाना कथा कह-सुन रहे हैं और किसी पर वैराग्य का कोई असर नहीं है।” | “धन्य हैं आप सभी… कथा कहने वाले भी और सुनने वाले भी… मैंने एक बार वैराग्य की कथा सुनी और मैं इसके मर्म को समझ कर वैरागी हो गया किन्तु आप तो रोज़ाना कथा कह-सुन रहे हैं और किसी पर वैराग्य का कोई असर नहीं है।” | ||
यह कहानी तो यहीं समाप्त हुई। अब प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में हमारे द्वारा किए गए प्रश्नों का उत्तर हम चाहते हैं। क्या सचमुच हमारे ऊपर इन | यह कहानी तो यहीं समाप्त हुई। अब प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में हमारे द्वारा किए गए प्रश्नों का उत्तर हम चाहते हैं। क्या सचमुच हमारे ऊपर इन सप्त प्रश्नों के उत्तर का असर होगा?… युगों-युगों से हम प्रश्न करते आ रहे हैं और इसके उत्तर भी पा रहे हैं लेकिन किसलिए? मात्र सुनने के लिए? | ||
शायद ही कोई | शायद ही कोई एेसा बुद्धिमान व्यक्ति हो जिसके मन में ये छहों प्रश्न न आए हों और उसने कभी न कभी इन प्रश्नों को किसी से पूछा न हो। | ||
इसमें सबसे रुचिकर बात यह है कि इन प्रश्नों के उत्तर हमें अपने मन की गहराई में किसी न किसी उम्र पर जाकर मिल जाते हैं, समस्या तब आती है जब इन उत्तरों को हम किसी दूसरे से चाहते हैं अथवा अपने शब्दों में देना चाहते हैं। उदाहरण के लिए जब हम कहना चाहते हैं कि प्रेम क्या है तो स्वयं को असमंजस में पाकर यह सोचने लगते हैं कि हम नहीं जानते कि प्रेम क्या है जबकि हम जानते हैं कि प्रेम क्या है। | इसमें सबसे रुचिकर बात यह है कि इन प्रश्नों के उत्तर हमें अपने मन की गहराई में किसी न किसी उम्र पर जाकर मिल जाते हैं, समस्या तब आती है जब इन उत्तरों को हम किसी दूसरे से चाहते हैं अथवा अपने शब्दों में देना चाहते हैं। उदाहरण के लिए जब हम कहना चाहते हैं कि प्रेम क्या है तो स्वयं को असमंजस में पाकर यह सोचने लगते हैं कि हम नहीं जानते कि प्रेम क्या है जबकि हम जानते हैं कि प्रेम क्या है। | ||
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लेकिन… हम फिर भी ऐसा करते हैं और करते रहेंगे… मैं भी इससे अछूता नहीं हूँ। | लेकिन… हम फिर भी ऐसा करते हैं और करते रहेंगे… मैं भी इससे अछूता नहीं हूँ। | ||
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; दिनांक- 14 अप्रॅल, 2015 | |||
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मैं गुम हूँ | मैं गुम हूँ | ||
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तुम भी… | तुम भी… | ||
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; दिनांक- 14 अप्रॅल, 2015 | |||
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राही मासूम रज़ा साहब को उन उम्दा शख़्सियतों की फ़ेरहिस्त में ऊँचा मक़ाम हासिल है जो मज़हब, ज़ात और मुल्क़ों की सरहदों से नाइत्तफ़ाक़ी रखते है। यूँ तो रज़ा साहब की जादुई क़लम का बेजोड़ फ़न मुझे हमेशा ही करिश्माई लगा है लेकिन उनका उपन्यास आधागाँव मुझे बेहद पसंद है। टीवी धारावाहिक ‘महाभारत’ को बेहतरीन रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय भी रज़ा साहब को जाता है। | राही मासूम रज़ा साहब को उन उम्दा शख़्सियतों की फ़ेरहिस्त में ऊँचा मक़ाम हासिल है जो मज़हब, ज़ात और मुल्क़ों की सरहदों से नाइत्तफ़ाक़ी रखते है। यूँ तो रज़ा साहब की जादुई क़लम का बेजोड़ फ़न मुझे हमेशा ही करिश्माई लगा है लेकिन उनका उपन्यास आधागाँव मुझे बेहद पसंद है। टीवी धारावाहिक ‘महाभारत’ को बेहतरीन रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय भी रज़ा साहब को जाता है। | ||
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कुह्न: = पुराना । रक़्क़ास: = नर्तकी । मे’मार = इमारत बनाने वाले । दारुलमिहन = दु:ख का स्थान अर्थात संसार । जाफ़र = चौदह इमामों में से एक । अह्रमन = ईरान के आतशपरस्तों के मतानुसार बदी का ख़ुदा । हरम = ख़ुदा का घर । तकल्लुम = बातचीत । तसादुग = टक्कर । ज़ौक़ = रुचि । दार = सूली, फाँसी। सन्अत = कला। पिंदार = अभिमान । तमद्दुन = मिल-जुलकर रहने का तरीक़ा,संस्कृति । रिदा = चादर, ओढ़नी । हुज़्न = दु:ख, शोक । मुज़्महिल = क्लान्त, अफ़्सुर्द: । ख़जिल = शर्मिन्दा । उफ़ुक़ = क्षितिज । कार-ए-नुमायाँ = कारनामा । बाब = पुस्तक का परिच्छेद । रसन = रस्सी । ख़ुतन = एक स्थान, जहाँ का मुश्क मशहूर है। दिक़ = तपेदिक, क्षय । वारफ़्तगी = आत्मविस्मृति । क़ुम्क़ुम: = बिजली का बल्ब । सोख्त:तन = दिलजला, आशिक़ का प्रतीक । अज़्मत = प्रतिष्ठा । कुश्तगाँ = आशिक़, क़त्ल किए हुए । कामराँ = नसीब वाला, क़ामयाब। | कुह्न: = पुराना । रक़्क़ास: = नर्तकी । मे’मार = इमारत बनाने वाले । दारुलमिहन = दु:ख का स्थान अर्थात संसार । जाफ़र = चौदह इमामों में से एक । अह्रमन = ईरान के आतशपरस्तों के मतानुसार बदी का ख़ुदा । हरम = ख़ुदा का घर । तकल्लुम = बातचीत । तसादुग = टक्कर । ज़ौक़ = रुचि । दार = सूली, फाँसी। सन्अत = कला। पिंदार = अभिमान । तमद्दुन = मिल-जुलकर रहने का तरीक़ा,संस्कृति । रिदा = चादर, ओढ़नी । हुज़्न = दु:ख, शोक । मुज़्महिल = क्लान्त, अफ़्सुर्द: । ख़जिल = शर्मिन्दा । उफ़ुक़ = क्षितिज । कार-ए-नुमायाँ = कारनामा । बाब = पुस्तक का परिच्छेद । रसन = रस्सी । ख़ुतन = एक स्थान, जहाँ का मुश्क मशहूर है। दिक़ = तपेदिक, क्षय । वारफ़्तगी = आत्मविस्मृति । क़ुम्क़ुम: = बिजली का बल्ब । सोख्त:तन = दिलजला, आशिक़ का प्रतीक । अज़्मत = प्रतिष्ठा । कुश्तगाँ = आशिक़, क़त्ल किए हुए । कामराँ = नसीब वाला, क़ामयाब। | ||
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; दिनांक- 5 अप्रॅल, 2015 | |||
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स्वतंत्रता की अनेक व्याख्या हैं लेकिन परिभाषा शायद कोई नहीं। इसका कारण है कि स्वतंत्रता निजता का मामला है... नितांत निजी। प्रत्येक की स्वतंत्रता अपनी-अपनी अलग-अलग और अनोखी। | स्वतंत्रता की अनेक व्याख्या हैं लेकिन परिभाषा शायद कोई नहीं। इसका कारण है कि स्वतंत्रता निजता का मामला है... नितांत निजी। प्रत्येक की स्वतंत्रता अपनी-अपनी अलग-अलग और अनोखी। | ||
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*[https://www.youtube.com/watch?v=KtPv7IEhWRA&feature=share Deepika Padukone – "My Choice" Directed By Homi Adajania - Vogue Empower (youtube)] | *[https://www.youtube.com/watch?v=KtPv7IEhWRA&feature=share Deepika Padukone – "My Choice" Directed By Homi Adajania - Vogue Empower (youtube)] | ||
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; दिनांक- 3 अप्रॅल, 2015 | |||
| | [[चित्र:Aditya-Chaudhary-facebook-post-002.jpg|250px|right]] | ||
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तुम क्षमा कर दो उन्हें भी | तुम क्षमा कर दो उन्हें भी | ||
Line 403: | Line 392: | ||
तुम्हारे परम सुखमय आज का | तुम्हारे परम सुखमय आज का | ||
अपने निजी आकाश का | अपने निजी आकाश का | ||
स्मरण हो | स्मरण हो | ||
लाओत्से ने क्या कहा था- | लाओत्से ने क्या कहा था- | ||
Line 420: | Line 407: | ||
अरे तुम सुन रहे हो ना ? | अरे तुम सुन रहे हो ना ? | ||
तुम्हारे जो भी अपने हैं | तुम्हारे जो भी अपने हैं | ||
वो तो हर हाल अपने हैं | वो तो हर हाल अपने हैं | ||
Line 440: | Line 425: | ||
क्योंकि तुम प्रेममय हो। | क्योंकि तुम प्रेममय हो। | ||
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Revision as of 11:39, 30 April 2017
यह लेख मैंने 23 फ़रवरी 2012 को लिखा क्योंकि 23 फ़रवरी को ही इस लेख का लिखा जाना शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। 23 फ़रवरी का दिन उन लोगों के लिए सम्भवत: सबसे महत्त्वपूर्ण है जो किताबों में रुचि रखते हैं, अध्ययन करते हैं और उसके अलावा भी शायद ही कोई ऐसा हो जिसके जीवन में यह दिन सबसे महत्त्वपूर्ण ना हो। क्या हुआ था इस दिन?
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