आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जनवरी 2014: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास")
No edit summary
Line 6: Line 6:
{| width=100% class="bharattable"
{| width=100% class="bharattable"
|-  
|-  
! style="width:60%;"| पोस्ट
|
! style="width:25%;"| संबंधित चित्र
; दिनांक- 30 जनवरी, 2014
! style="width:15%;"| दिनांक
[[चित्र:Picaso-painting-facebook-post.jpg|250px|right]]
|-
|  
<poem>
<poem>
पिकासो की मशहूर पेंटिंग 'ग्वेर्निका', फ़्रॅन्ज़ काफ़्का की कहानी 'मॅटा मॉर्फ़ोसिस', मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में', वॅन गॉफ़ के सॅल्फ़ पोट्रेट और 'सनफ़्लावर', ऑल्वेयर कामू का उपन्यास 'ला पेस्त', हेमिंग्वे का उपन्यास 'द ओल्ड मैन एंड द सी', अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म 'राशोमन' आदि कला के चरम को छूने के बाद की प्रयोगात्मक अद्भुत कृतियाँ हैं।
पिकासो की मशहूर पेंटिंग 'ग्वेर्निका', फ़्रॅन्ज़ काफ़्का की कहानी 'मॅटा मॉर्फ़ोसिस', मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में', वॅन गॉफ़ के सॅल्फ़ पोट्रेट और 'सनफ़्लावर', ऑल्वेयर कामू का उपन्यास 'ला पेस्त', हेमिंग्वे का उपन्यास 'द ओल्ड मैन एंड द सी', अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म 'राशोमन' आदि कला के चरम को छूने के बाद की प्रयोगात्मक अद्भुत कृतियाँ हैं।
Line 17: Line 15:
मनोरंजन तो कला की श्रेणियों के अथाह समंदर की एक चुलबुली सी श्रेणी मात्र है।
मनोरंजन तो कला की श्रेणियों के अथाह समंदर की एक चुलबुली सी श्रेणी मात्र है।
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Picaso-painting-facebook-post.jpg|250px|center]]
| 30 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 17 जनवरी, 2014
<poem>
<poem>
मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं-
मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं-
Line 29: Line 26:
मैं सोचा करता था कि जिस ठंड में चिल्लाने लगें तो वही 'चिल्ला जाड़ा!' लेकिन मन में ये बात तो रहती थी कि शायद मैं ग़लत हूँ। बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी, तब मैंने सोचा कि शायद कमान के चिल्ले की वजह से चिल्ला जाड़े कहते हैं लेकिन बाद में मेरे इस हास्यास्पद शोध को तब बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 'चिल्ला' शब्द फ़ारसी भाषा में चालीस दिन के अंतराल के लिए कहा जाता है, फिर ध्यान आया कि अरे हाँ... कहा भी तो 'चालीस दिन का चिल्ला' ही जाता है।
मैं सोचा करता था कि जिस ठंड में चिल्लाने लगें तो वही 'चिल्ला जाड़ा!' लेकिन मन में ये बात तो रहती थी कि शायद मैं ग़लत हूँ। बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी, तब मैंने सोचा कि शायद कमान के चिल्ले की वजह से चिल्ला जाड़े कहते हैं लेकिन बाद में मेरे इस हास्यास्पद शोध को तब बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 'चिल्ला' शब्द फ़ारसी भाषा में चालीस दिन के अंतराल के लिए कहा जाता है, फिर ध्यान आया कि अरे हाँ... कहा भी तो 'चालीस दिन का चिल्ला' ही जाता है।
</poem>
</poem>
|
| 17 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 16 जनवरी, 2014
[[चित्र:Daamini-facebook-post.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
निर्भय दामिनी को एक वर्ष होने पर...
निर्भय दामिनी को एक वर्ष होने पर...
Line 59: Line 56:
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Daamini-facebook-post.jpg|250px|center]]
| 16 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 16 जनवरी, 2014
[[चित्र:Jashna-manaya-jaay-facebook-post.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
Line 88: Line 85:
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय  
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय  
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Jashna-manaya-jaay-facebook-post.jpg|250px|center]]
| 16 जनवरी, 2014
|-  
|-  
|  
|  
; दिनांक- 15 जनवरी, 2014
[[चित्र:Bhaarya-purshottam-facebook-post.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
हे कृष्ण !
हे कृष्ण !
Line 153: Line 150:
राहुल और उसकी मां भी समझ पाते
राहुल और उसकी मां भी समझ पाते
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Bhaarya-purshottam-facebook-post.jpg|250px|center]]
| 15 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 15 जनवरी, 2014
[[चित्र:Vo-subah-kabhi-jo-aani-thi.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
वो 'सुबह' जो कभी आनी थी
वो 'सुबह' जो कभी आनी थी
Line 184: Line 181:
ऐसी सुबह तेरे गाँव में कब आएगी ?
ऐसी सुबह तेरे गाँव में कब आएगी ?
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Vo-subah-kabhi-jo-aani-thi.jpg|250px|center]]
| 15 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 15 जनवरी, 2014
[[चित्र:Chhoot-bhage-raste-facebook-post.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
मंज़िलों की क़ैद से अब छूट भागे रास्ते
मंज़िलों की क़ैद से अब छूट भागे रास्ते
Line 210: Line 207:
कौन रगड़े एड़ियाँ अब ज़िन्दगी के वास्ते
कौन रगड़े एड़ियाँ अब ज़िन्दगी के वास्ते
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Chhoot-bhage-raste-facebook-post.jpg|250px|center]]
| 15 जनवरी, 2014
|-  
|-  
|  
|  
; दिनांक- 15 जनवरी, 2014
<poem>
<poem>
हमको मालूम है इन सब की हक़ीक़त लेकिन
हमको मालूम है इन सब की हक़ीक़त लेकिन
Line 219: Line 215:
</poem>
</poem>
-जनाब असद उल्ला ख़ां ग़ालिब की याद में
-जनाब असद उल्ला ख़ां ग़ालिब की याद में
| 15 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 14 जनवरी, 2014
[[चित्र:Hitchcock.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
विश्व के महानतम निर्देशकों में अल्फ़्रेड हिचकॉक का नाम आता है। वे मेरे बेहद पसंदीदा सिनेमा निर्देशकों में से एक रहे हैं। पिछले वर्ष उनके जीवन पर बनी फ़िल्म 'Hichcock' देखी। इसमें ऍन्थनी हॉपकिन (Anthony Hopkins) ने हिचकॉक की भूमिका की है। वे भी महान कलाकार हैं और मेरे पसंदीदा ऍक्टर हैं। यह फ़िल्म मेरी पसंदीदा और हिचकॉक की मशहूर फ़िल्म साइको (Psycho) के निर्माण पर आधारित है। हमेशा की तरह इस फ़िल्म में भी ऍन्थनी हॉपकिन का अभिनय देखने लायक़ है।
विश्व के महानतम निर्देशकों में अल्फ़्रेड हिचकॉक का नाम आता है। वे मेरे बेहद पसंदीदा सिनेमा निर्देशकों में से एक रहे हैं। पिछले वर्ष उनके जीवन पर बनी फ़िल्म 'Hichcock' देखी। इसमें ऍन्थनी हॉपकिन (Anthony Hopkins) ने हिचकॉक की भूमिका की है। वे भी महान कलाकार हैं और मेरे पसंदीदा ऍक्टर हैं। यह फ़िल्म मेरी पसंदीदा और हिचकॉक की मशहूर फ़िल्म साइको (Psycho) के निर्माण पर आधारित है। हमेशा की तरह इस फ़िल्म में भी ऍन्थनी हॉपकिन का अभिनय देखने लायक़ है।
हिचकॉक की फ़िल्मों की नक़लें सारी दुनिया में होती रही है। उनकी फ़िल्म वर्टीगो (Vertigo) मुझे बहुत पसंद है। ये एक ज़बर्दस्त थ्रिलर है। इसमें हीरो ऍक्रोफ़ोबिया (Acrophobia) का मरीज़ होता है। ऍक्रोफ़ोबिया एक ऐसी फ़ोबिया है जिसमें बहुत ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर आते हैं। राज़ की बात ये है कि मैं मुझे भी ऍक्रोफ़ोबिया है। हा हा हा
हिचकॉक की फ़िल्मों की नक़लें सारी दुनिया में होती रही है। उनकी फ़िल्म वर्टीगो (Vertigo) मुझे बहुत पसंद है। ये एक ज़बर्दस्त थ्रिलर है। इसमें हीरो ऍक्रोफ़ोबिया (Acrophobia) का मरीज़ होता है। ऍक्रोफ़ोबिया एक ऐसी फ़ोबिया है जिसमें बहुत ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर आते हैं। राज़ की बात ये है कि मैं मुझे भी ऍक्रोफ़ोबिया है। हा हा हा
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Hitchcock.jpg|250px|center]]
| 14 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 14 जनवरी, 2014
[[चित्र:Seemao se bandhkar.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
जो सीमाओं में बंधकर जीते हैं
जो सीमाओं में बंधकर जीते हैं
Line 238: Line 234:
अनन्त काल तक चलता है।
अनन्त काल तक चलता है।
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Seemao se bandhkar.jpg|250px|center]]
| 14 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 14 जनवरी, 2014
[[चित्र:Bharat-jaise-vishal.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
भारत जैसे विशाल गणतंत्र के समग्र विकास के लिए
भारत जैसे विशाल गणतंत्र के समग्र विकास के लिए
Line 250: Line 246:
फिर भी यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस शताब्दी में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा।
फिर भी यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस शताब्दी में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा।
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Bharat-jaise-vishal.jpg|250px|center]]
| 14 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 14 जनवरी, 2014
[[चित्र:Aapsi-rishto-me.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
आपसी रिश्तों में या समाज में
आपसी रिश्तों में या समाज में
Line 265: Line 261:
यह महान व्यक्तियों का एक ऐसा गुण भी जो उनको महान बनाता है
यह महान व्यक्तियों का एक ऐसा गुण भी जो उनको महान बनाता है
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Aapsi-rishto-me.jpg|250px|center]]
| 14 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 14 जनवरी, 2014
<poem>
<poem>
कभी-कभी ऐसा लगता है कि विश्वास वह भ्रम है जो अब तक टूटा नहीं...
कभी-कभी ऐसा लगता है कि विश्वास वह भ्रम है जो अब तक टूटा नहीं...
</poem>
</poem>
| 14 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 14 जनवरी, 2014
<poem>
<poem>
उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार रोज़
उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार रोज़
Line 282: Line 276:
(आज 'ज़फ़र' होते शायद तो यही लिखते)
(आज 'ज़फ़र' होते शायद तो यही लिखते)
</poem>
</poem>
| 14 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 7 जनवरी, 2014
<poem>
<poem>
प्राचीन काल के दक्षिण भारत में ग्राम प्रशासन, पंचायत और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बेहतरीन नमूने हैं।
प्राचीन काल के दक्षिण भारत में ग्राम प्रशासन, पंचायत और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बेहतरीन नमूने हैं।
[[उत्तिरमेरूर|उत्तिरमेरूर की राजनैतिक व्यवस्थाएं चोंकाने वाली हैं]]  । यह दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले का एक पंचायती ग्राम है। चोल राज्य के अंतर्गत ब्राह्मणों (अग्रहार) के एक बड़े ग्राम में दसवीं शताब्दी के पश्चात अनेक शिलालेख स्थानीय राजनीति पर प्रकाश पर प्रकाश डालते हैं।
उत्तिरमेरूर की राजनैतिक व्यवस्थाएं चोंकाने वाली हैं । यह दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले का एक पंचायती ग्राम है। चोल राज्य के अंतर्गत ब्राह्मणों (अग्रहार) के एक बड़े ग्राम में दसवीं शताब्दी के पश्चात अनेक शिलालेख स्थानीय राजनीति पर प्रकाश पर प्रकाश डालते हैं।
</poem>
</poem>
| 7 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 7 जनवरी, 2014
[[चित्र:Shershah-suri.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
आम आदमी को परिभाषित करने और आम आदमी की समस्याओं को प्रस्तुत करने के काम जितने बढ़िया तरह से महान कार्टूनिस्ट आर॰ के॰ लक्ष्मण ने किया है उतना किसी ने नहीं।
आम आदमी को परिभाषित करने और आम आदमी की समस्याओं को प्रस्तुत करने के काम जितने बढ़िया तरह से महान कार्टूनिस्ट आर॰ के॰ लक्ष्मण ने किया है उतना किसी ने नहीं।
Line 303: Line 296:
[[सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी|-और ज़्यादा विस्तार से पढ़ना चाहें तो भारतकोश पर मेरा एक लेख पढ़ें-]]
[[सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी|-और ज़्यादा विस्तार से पढ़ना चाहें तो भारतकोश पर मेरा एक लेख पढ़ें-]]
</poem>
</poem>
|  [[चित्र:Shershah-suri.jpg|250px|center]]
| 7 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 6 जनवरी, 2014
[[चित्र:Imaandari-aur-sadgi.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
ईमानदारी और सादगी की सार्थकता
ईमानदारी और सादगी की सार्थकता
Line 314: Line 307:
के अलावा और कुछ नहीं है।
के अलावा और कुछ नहीं है।
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Imaandari-aur-sadgi.jpg|250px|center]]
| 6 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 6 जनवरी, 2014
[[चित्र:Hindu-musalman-sikh-isai.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि उसे कहते हैं जो कि अपने धर्म के धार्मिक और आध्यात्मिक रूप-स्वरूप में आस्था रखता है।
हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि उसे कहते हैं जो कि अपने धर्म के धार्मिक और आध्यात्मिक रूप-स्वरूप में आस्था रखता है।
Line 323: Line 316:
यदि ईमानदारी और गंभीरता से विचार करेंगे तो यह समझ में आ जाएगा कि धार्मिक या साम्प्रदायिक कट्टरता हमें अध्यात्म और धर्म दूर ले जाती है।
यदि ईमानदारी और गंभीरता से विचार करेंगे तो यह समझ में आ जाएगा कि धार्मिक या साम्प्रदायिक कट्टरता हमें अध्यात्म और धर्म दूर ले जाती है।
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Hindu-musalman-sikh-isai.jpg|250px|center]]
| 6 जनवरी, 2014
|-
|-
|  
|  
; दिनांक- 6 जनवरी, 2014
[[चित्र:Shekspiear-facebook-update.jpg|250px|right]]
<poem>
<poem>
शेक्सपीयर तो अपने मशहूर नाटक हॅमलेट में "Frailty, thy name is woman." लिख कर जन्नत नशीं हो गए। मेरी तो हमेशा की तरह शामत आई हुई है, कि व्याख्या करो इसकी। सवाल इस वाक्य का अर्थ करने का नहीं है बल्कि पूछा गया है कि क्या यह सही है?
शेक्सपीयर तो अपने मशहूर नाटक हॅमलेट में "Frailty, thy name is woman." लिख कर जन्नत नशीं हो गए। मेरी तो हमेशा की तरह शामत आई हुई है, कि व्याख्या करो इसकी। सवाल इस वाक्य का अर्थ करने का नहीं है बल्कि पूछा गया है कि क्या यह सही है?
Line 336: Line 329:
जब हम अपने आप को आदमी या औरत पहले समझते हैं और इंसान बाद में, तो हम इंसानियत के नियमों से दूर हट जाते हैं। जब हम इंसानियत से ही दूर हट गए तो फिर वफ़ा का क्या काम? इसी तरह किसी आदमी या औरत के कमज़ोर होने अनेक संभावनाएँ हो सकती है लेकिन इंसान कभी कमज़ोर नहीं होता। ऐसा लगता है कि स्त्री-पुरुष के बीच सच्ची वफ़ादारी की वजह केवल इंसानियत ही होती है। बाक़ी और वजहें तो समाज का डर या किसी स्वार्थ आदि से प्रभावित होने की संभावना रखती हैं।
जब हम अपने आप को आदमी या औरत पहले समझते हैं और इंसान बाद में, तो हम इंसानियत के नियमों से दूर हट जाते हैं। जब हम इंसानियत से ही दूर हट गए तो फिर वफ़ा का क्या काम? इसी तरह किसी आदमी या औरत के कमज़ोर होने अनेक संभावनाएँ हो सकती है लेकिन इंसान कभी कमज़ोर नहीं होता। ऐसा लगता है कि स्त्री-पुरुष के बीच सच्ची वफ़ादारी की वजह केवल इंसानियत ही होती है। बाक़ी और वजहें तो समाज का डर या किसी स्वार्थ आदि से प्रभावित होने की संभावना रखती हैं।
</poem>
</poem>
| [[चित्र:Shekspiear-facebook-update.jpg|250px|center]]
| 6 जनवरी, 2014
|}
|}
|}
|}

Revision as of 10:50, 4 May 2017

आदित्य चौधरी फ़ेसबुक पोस्ट
दिनांक- 30 जनवरी, 2014

250px|right

पिकासो की मशहूर पेंटिंग 'ग्वेर्निका', फ़्रॅन्ज़ काफ़्का की कहानी 'मॅटा मॉर्फ़ोसिस', मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में', वॅन गॉफ़ के सॅल्फ़ पोट्रेट और 'सनफ़्लावर', ऑल्वेयर कामू का उपन्यास 'ला पेस्त', हेमिंग्वे का उपन्यास 'द ओल्ड मैन एंड द सी', अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म 'राशोमन' आदि कला के चरम को छूने के बाद की प्रयोगात्मक अद्भुत कृतियाँ हैं।
इन अद्भुत कृतियों को समझने के लिए हमें बहुत से ऐसे साहित्य को पढ़ना ज़रूरी है जिसमें- कुंठा की वेदना, युद्ध की विभीषिका, एकांत की अनुभूति, नपुंसक क्रोध, प्रतिभा का दमन, संतृप्ति की विवशता, सिकंदरिया और नालंदा जैसे पुस्तकालयों का जलना आदि का वर्णन हो या कुछ अनुभव स्वयं भी किया हो। ये क्लिष्ट रचनाएँ तभी समझ में आती हैं।
कला को मात्र मनोरंजन समझना, कला का अपमान करना तो है ही, अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन भी है।
मनोरंजन तो कला की श्रेणियों के अथाह समंदर की एक चुलबुली सी श्रेणी मात्र है।

दिनांक- 17 जनवरी, 2014

मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं-
"हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का-सा झोंका लगा"
अमर कहानीकार मोपासां ने लिखा है-
"ठंड ऐसी पड़ रही थी कि पत्थर भी चटक जाय"
जाड़ा इस बार ज़्यादा पड़ रहा है। ज़बर्दस्त जाड़ा याने कि 'किटकिटी' वाली ठंड के लिए मेरी माँ कहती हैं-"चिल्ला जाड़ा चल रहा है"
मैं सोचा करता था कि जिस ठंड में चिल्लाने लगें तो वही 'चिल्ला जाड़ा!' लेकिन मन में ये बात तो रहती थी कि शायद मैं ग़लत हूँ। बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी, तब मैंने सोचा कि शायद कमान के चिल्ले की वजह से चिल्ला जाड़े कहते हैं लेकिन बाद में मेरे इस हास्यास्पद शोध को तब बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 'चिल्ला' शब्द फ़ारसी भाषा में चालीस दिन के अंतराल के लिए कहा जाता है, फिर ध्यान आया कि अरे हाँ... कहा भी तो 'चालीस दिन का चिल्ला' ही जाता है।

दिनांक- 16 जनवरी, 2014
250px|right

निर्भय दामिनी को एक वर्ष होने पर...
 
कैसे कह दूँ कि मैं भी ज़िन्दा हूँ
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ

उसने देखे थे यहाँ ख़ाब कई
उसके छाँटे हुए कुछ लम्हे थे
सर्द फ़ुटपाथ पर पड़ी थी जहाँ बेसुध वो
वहीं छितरे हुए थे अहसास कई
लेकिन अब वो ख़ाब नहीं सदमे थे

इक तरफ़ कुचला हुआ वो घूँघट था
जिसे उठना था किसी ख़ास रात
मगर वो रात अब न आएगी कभी
न शहनाई, न सेहरा, न बाबुल गाएगी कभी

लेकिन मुझे तो काम थे बहुत
जिनसे जाना था
उसे उठाने के लिए तो सारा ज़माना था
यूँ ही गिरी पड़ी रही बेसुध वो
मगर मैं रुक न सका पल भर को

कैसे कह दूँ कि मैं भी ज़िन्दा हूँ
कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ

दिनांक- 16 जनवरी, 2014

250px|right

उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय

रौनक़-ए-बज़्म के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं[1]
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय

कभी जो शाम से बेचैन उनकी तबीयत हो
किसी मेरे ही ख़त को पढ़ के सुनाया जाय

कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो
यही ताकीद कि मक़्ता ही न गाया जाय[2][3]

मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए
ताउम्र मुझको अब न सुलाया जाय

कभी सुकून से गुज़रा था जहाँ वक़्त मेरा
उसी जगह मुझे हर रोज़ रुलाया जाय

क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो
उन्ही का ज़िक्र हो जब मेरा जनाज़ा जाय

उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय

दिनांक- 15 जनवरी, 2014

250px|right

हे कृष्ण !
उत्तरा के गर्भ में
बनकर गदाधारी
रक्षा की परीक्षित की, ब्रह्मास्त्र से
क्योंकि वो वंश है

और बेटी ?
बेटी क्या शाप है, दंश है ?
बेटी भी तो, पुत्र की तरह ही
तुम्हारा ही अंश है

न जाने कितनी बेटियाँ
मारी गईं, गर्भ में
और तुम्हारा भी मौन है
इस संदर्भ में

इन बेटियों को बचाने भी
तो कभी आते
इन कंसों का संहार भी कर जाते

हे राम !
पिता के वचन के लिए
छोड़ दी राजगद्दी
सीता को साथ ले, बने वनवासी
क्योंकि वो मर्यादा है

और सीता ?
सीता क्या दासी है, धरमादा है ?
तुम्हारा जो कुछ भी है
उसमें सीता का भी तो आधा है

कैसे गई सीता
तुम्हारे बिना दोबारा वन को
क्यों नहीं छोड़ा
तुमने राजभवन को

ऐसे में तुम भी तो साथ निभाते
तभी तो
'भार्या पुरुषोत्तम' भी बन जाते

हे बुद्ध !
छोड़ा यशोधरा-राहुल को
सन्न्यास लिया
नया पाठ सिखलाया दुनिया को
क्योंकि वो 'धर्म' है

और यशोधरा ?
यशोधरा क्या वस्तु है, मात्र वैवाहिक कर्म है ?
उसे, सोते छोड़ जाना
भी तो अधर्म है

यदि तुम्हारे पिता ने
तुमको इस तरह छोड़ा होता
तो फिर, बुद्ध क्या
सिद्धार्थ भी नहीं होता

पहले गृहस्थ को निभाते
तो तुम्हारी प्रवज्या को
राहुल और उसकी मां भी समझ पाते

दिनांक- 15 जनवरी, 2014

250px|right

वो 'सुबह' जो कभी आनी थी
कब आएगी ?
जिस सुबह को,
सकीना भी स्कूल जाएगी ?

नहीं टपकेगी सुक्खो की छत
और संतो दादी भी पेंशन पाएगी

कल्लो नहीं धोएगी रईसों के पोतड़े
और चंदर की शराब भी छूट जाएगी

परसादी छोड़ देगा तीन पत्ती खेलना
और सुनहरी भी मायके से लौट आएगी

बैजंती छुड़ा लेगी चूड़ियाँ सुनार से
और दोबारा 'रखने' भी नहीं जाएगी

हवालात से छूटेगा बेकसूर घूरेलाल
और पुलिस भी बार-बार नहीं आएगी

इस बार सोनदेई जनमेगी बिटिया को
और उसकी सास भी घी के दीए जलाएगी

ऐसी सुबह मेरे गाँव में कब आएगी ?
ऐसी सुबह तेरे गाँव में कब आएगी ?

दिनांक- 15 जनवरी, 2014

250px|right

मंज़िलों की क़ैद से अब छूट भागे रास्ते
है बक़ाया ज़िन्दगी आवारगी के वास्ते

छोड़ कर रस्मो-रिवाजों की गली को आ गए
अब हुआ हर शख़्स हाज़िर दोस्ती के वास्ते

उसकी महफ़िल और उसके रंग से क्या साबिका[4]
अब हज़ारों मस्तियाँ हर बज़्म मेरे वास्ते[5]

ये सफ़र ताबीर है उन हसरतों के ख़ाब की[6]
जो कभी होती थीं तेरी सुह्‌बतों के वास्ते[7]

अब कोई आक़ा नियम क़ानून क्या बतलाएगा
आँधियाँ भी रुक गईं हैं इस सबा के वास्ते[8]

माजरा ये देखकर अब दश्त भी हैरान है
मरहले चलने लगे हैं क़ाफ़िलों के वास्ते[9]

मौत के आने से पहले एक लम्हा जी लिया
कौन रगड़े एड़ियाँ अब ज़िन्दगी के वास्ते

दिनांक- 15 जनवरी, 2014

हमको मालूम है इन सब की हक़ीक़त लेकिन
दिल-ए-ख़ुशफ़हमी को कुछ दिन ये 'आप' अच्छा है

-जनाब असद उल्ला ख़ां ग़ालिब की याद में

दिनांक- 14 जनवरी, 2014

250px|right

विश्व के महानतम निर्देशकों में अल्फ़्रेड हिचकॉक का नाम आता है। वे मेरे बेहद पसंदीदा सिनेमा निर्देशकों में से एक रहे हैं। पिछले वर्ष उनके जीवन पर बनी फ़िल्म 'Hichcock' देखी। इसमें ऍन्थनी हॉपकिन (Anthony Hopkins) ने हिचकॉक की भूमिका की है। वे भी महान कलाकार हैं और मेरे पसंदीदा ऍक्टर हैं। यह फ़िल्म मेरी पसंदीदा और हिचकॉक की मशहूर फ़िल्म साइको (Psycho) के निर्माण पर आधारित है। हमेशा की तरह इस फ़िल्म में भी ऍन्थनी हॉपकिन का अभिनय देखने लायक़ है।
हिचकॉक की फ़िल्मों की नक़लें सारी दुनिया में होती रही है। उनकी फ़िल्म वर्टीगो (Vertigo) मुझे बहुत पसंद है। ये एक ज़बर्दस्त थ्रिलर है। इसमें हीरो ऍक्रोफ़ोबिया (Acrophobia) का मरीज़ होता है। ऍक्रोफ़ोबिया एक ऐसी फ़ोबिया है जिसमें बहुत ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर आते हैं। राज़ की बात ये है कि मैं मुझे भी ऍक्रोफ़ोबिया है। हा हा हा

दिनांक- 14 जनवरी, 2014

250px|right

जो सीमाओं में बंधकर जीते हैं
उनका जीवन
उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाता है सीमाओं के परे, खुले आकाश में
विचरण करने वालों का जीवन
अनन्त काल तक चलता है।

दिनांक- 14 जनवरी, 2014

250px|right

भारत जैसे विशाल गणतंत्र के समग्र विकास के लिए
60-70 वर्ष का समय सामान्यत: बहुत कम है
भारत की आज़ादी को अभी इतना समय नहीं हुआ
कि भारत के संविधान का सही मूल्यांकन हो सके
भारत का गणतंत्र और संविधान अभी शैशवावस्था में ही हैं
फिर भी यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस शताब्दी में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा।

दिनांक- 14 जनवरी, 2014

250px|right

आपसी रिश्तों में या समाज में
शिकायतों और उलाहनों के प्रति
यदि हमारा दृष्टिकोण
उन्हें गंभीरता से लेकर
स्वयं का विश्लेषण करने का रहता है
तो निश्चित ही हम ख़ुद को
एक सकारात्मक व्यक्ति के रूप में
देख सकते हैं
यह महान व्यक्तियों का एक ऐसा गुण भी जो उनको महान बनाता है

दिनांक- 14 जनवरी, 2014

कभी-कभी ऐसा लगता है कि विश्वास वह भ्रम है जो अब तक टूटा नहीं...

दिनांक- 14 जनवरी, 2014

उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार रोज़
दो FB पे कट गए दो बिग बज़ार में

(आज 'ज़फ़र' होते शायद तो यही लिखते)

दिनांक- 7 जनवरी, 2014

प्राचीन काल के दक्षिण भारत में ग्राम प्रशासन, पंचायत और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बेहतरीन नमूने हैं।
उत्तिरमेरूर की राजनैतिक व्यवस्थाएं चोंकाने वाली हैं । यह दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले का एक पंचायती ग्राम है। चोल राज्य के अंतर्गत ब्राह्मणों (अग्रहार) के एक बड़े ग्राम में दसवीं शताब्दी के पश्चात अनेक शिलालेख स्थानीय राजनीति पर प्रकाश पर प्रकाश डालते हैं।

दिनांक- 7 जनवरी, 2014

250px|right

आम आदमी को परिभाषित करने और आम आदमी की समस्याओं को प्रस्तुत करने के काम जितने बढ़िया तरह से महान कार्टूनिस्ट आर॰ के॰ लक्ष्मण ने किया है उतना किसी ने नहीं।
इसके बदले में उनको लगभग हरेक सरकार द्वारा ऐसा न करने की चेतावनी दी गई और मुक़दमे चले।
अब दिल्ली सदन में आम आदमी की एक नई परिभाषा की गई है जो मेरी समझ के परे है। कहा गया है कि 'वह हरेक आदमी, आम आदमी है जो कि ईमानदार सरकार चाहता है चाहे वह ग्रेटरकैलाश और डिफ़ेन्स कॉलोनी का ही रहने वाला क्यों न हो।'
ईमानदार सरकार तो सभी चाहते हैं। मैंने किसी करोड़पति या अरबपति को कभी यह कहते नहीं सुना कि वे बेईमान सरकार चाहते हैं।
तो क्या अब 5-10 करोड़ के बंगले में रहने वाला भी आम आदमी है? बी॰ऍम॰डब्ल्यू और मर्सडीज़ का स्वामी भी आम आदमी है?
मैंने पहले लिखा था कि सत्ता की एक अपनी भाषा और संस्कृति होती है। जो सत्ता में आने के बाद अपनानी होती है। यदि ऐसा न करें तो ब्यूरो क्रेट ऐसा करवा देते हैं क्योंकि जनता को ग़लतफ़हमी चाहे कुछ भी हो लेकिन देश तो ब्यूरो क्रेट ही चला रहे हैं।
-और ज़्यादा विस्तार से पढ़ना चाहें तो भारतकोश पर मेरा एक लेख पढ़ें-

दिनांक- 6 जनवरी, 2014

250px|right

ईमानदारी और सादगी की सार्थकता
विनम्रता के साथ ही है
यदि हमें अपनी ईमानदारी और सादगी
का अहंकार है तो ये भौंडे आडम्बरों
के अलावा और कुछ नहीं है।

दिनांक- 6 जनवरी, 2014

250px|right

हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि उसे कहते हैं जो कि अपने धर्म के धार्मिक और आध्यात्मिक रूप-स्वरूप में आस्था रखता है।
कट्टर हिन्दू, कट्टर मुसलमान, कट्टर ईसाई उसे कहते हैं जो अपने धर्म के व्यावसायिक और राजनैतिक रूप-स्वरूप में आस्था रखता है।
यदि ईमानदारी और गंभीरता से विचार करेंगे तो यह समझ में आ जाएगा कि धार्मिक या साम्प्रदायिक कट्टरता हमें अध्यात्म और धर्म दूर ले जाती है।

दिनांक- 6 जनवरी, 2014

250px|right

शेक्सपीयर तो अपने मशहूर नाटक हॅमलेट में "Frailty, thy name is woman." लिख कर जन्नत नशीं हो गए। मेरी तो हमेशा की तरह शामत आई हुई है, कि व्याख्या करो इसकी। सवाल इस वाक्य का अर्थ करने का नहीं है बल्कि पूछा गया है कि क्या यह सही है?
जैसे रामचरितमानस की एक-एक चौपाई के 24-24 अर्थ आजकल होते हैं वैसे ही शेक्सपीयर के नाटकों के मशहूर संवादों के भी कई-कई अर्थ होते हैं। हॅमलेट के ही एक और संवाद "To be or not to be" के अनुवाद का भी एक ज़माने में बड़ा हल्ला रहा। इसका अनुवाद रांगेय राघव जी ने भी किया, अमृतराय जी ने भी किया। कुल मिला कर ये तय हुआ कि मामला आत्महत्या करने का है कि 'करें या नहीं'।
...ख़ैर...
"Frailty, thy name is woman." का अर्थ तो ये निकलता है कि 'कमज़ोरी' तेरा ही नाम औरत है लेकिन नाटक हॅमलेट में इसका संदर्भ है कि औरत कमज़ोर होने के कारण ही बेवफ़ा हो जाती है, तो इसका अर्थ किया गया "बेवफ़ाई, तेरा ही दूसरा नाम औरत है।"
असल में यह बात आदमी पर भी लागू होती है। आदमी का भी दूसरा नाम बेवफ़ाई ही है। पुरुष के लिए स्त्री को और स्त्री के लिए पुरुष को वफ़ादार बनाने का काम प्रकृति ने तो किया नहीं है। नर और मादा एक दूसरे के लिए वफ़ादार हों ऐसा नियम प्रकृति का नहीं है, तो फिर ये निष्ठा और वफ़ा कहाँ से आयी?
असल में बात यह है कि जो पुरुष, इंसान पहले और बाद में पुरुष होगा वही किसी स्त्री के प्रति निष्ठा या वफ़ा निभाएगा। जो स्त्री इंसान पहले और बाद में स्त्री होगी वही किसी पुरुष के प्रति निष्ठा या वफ़ा निभाएगी।
जब हम अपने आप को आदमी या औरत पहले समझते हैं और इंसान बाद में, तो हम इंसानियत के नियमों से दूर हट जाते हैं। जब हम इंसानियत से ही दूर हट गए तो फिर वफ़ा का क्या काम? इसी तरह किसी आदमी या औरत के कमज़ोर होने अनेक संभावनाएँ हो सकती है लेकिन इंसान कभी कमज़ोर नहीं होता। ऐसा लगता है कि स्त्री-पुरुष के बीच सच्ची वफ़ादारी की वजह केवल इंसानियत ही होती है। बाक़ी और वजहें तो समाज का डर या किसी स्वार्थ आदि से प्रभावित होने की संभावना रखती हैं।

शब्दार्थ

  1. बज़्म= सभा, गोष्ठी, महफ़िल
  2. ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना
  3. ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’कहते हैं।
  4. साबिका या साबका = संबंध, वास्ता
  5. बज़्म = महफ़िल
  6. ताबीर = नतीजा
  7. सुह्‌बत या सोहबत = संगत, साथ
  8. सबा = पुरवा हवा, मंद शीतल हवा
  9. मरहले= मंज़िलें

संबंधित लेख