आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट नवम्बर 2013: Difference between revisions
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; दिनांक- 25 नवम्बर, 2013 | |||
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मैंने कहा "सन्न्यास ही एकमात्र ऐसा 'पलायन' है जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है।" | मैंने कहा "सन्न्यास ही एकमात्र ऐसा 'पलायन' है जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है।" | ||
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भारत को आवश्यकता है स्वामी विवेकानंद जी द्वारा प्रचारित प्रसिद्ध मंत्र 'उत्तिष्ठ जाग्रत' या 'उत्तिष्ठ भारत' की न कि किसी छद्म त्याग की। ऐसे सन्न्यासी का क्या अर्थ जो अपने पड़ोस में रोते बच्चे की आवाज़ को अनसुना करके अपने अपने ज्ञान-ध्यान में व्यस्त हो... | भारत को आवश्यकता है स्वामी विवेकानंद जी द्वारा प्रचारित प्रसिद्ध मंत्र 'उत्तिष्ठ जाग्रत' या 'उत्तिष्ठ भारत' की न कि किसी छद्म त्याग की। ऐसे सन्न्यासी का क्या अर्थ जो अपने पड़ोस में रोते बच्चे की आवाज़ को अनसुना करके अपने अपने ज्ञान-ध्यान में व्यस्त हो... | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
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'सन्न्यास' ही एकमात्र | 'सन्न्यास' ही एकमात्र | ||
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जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है | जिसे समाज ने प्रतिष्ठा दी हुई है | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Hame-jivant-aur-urjavan -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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हमें जीवंत और ऊर्जावान बने रहने के लिए जो ऊर्जा के स्रोत अनिवार्यत: चाहिए उसमें | हमें जीवंत और ऊर्जावान बने रहने के लिए जो ऊर्जा के स्रोत अनिवार्यत: चाहिए उसमें | ||
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इनके बिना, जीवन पूर्णत: नीरस और उदासीन होता है। | इनके बिना, जीवन पूर्णत: नीरस और उदासीन होता है। | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
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उपदेश मरते नहीं | उपदेश मरते नहीं | ||
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उपदेश देने वाले और सुनने वाले दोनों ही धन्य हैं... | उपदेश देने वाले और सुनने वाले दोनों ही धन्य हैं... | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
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हमारे देश में जो क़ानून, | हमारे देश में जो क़ानून, | ||
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अव्यावहारिक तर्कों का सहारा लेकर लागू किए जाते हैं। | अव्यावहारिक तर्कों का सहारा लेकर लागू किए जाते हैं। | ||
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; दिनांक- 24 नवम्बर, 2013 | |||
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भारत का सर्वोच्च पद्म सम्मान, भारतरत्न से सम्मानित व्यक्ति, सम्मान देने वालों को यदि मूर्ख बता रहा है तो और कुछ हो न हो यह तो निर्विवाद ही है कि जिस व्यक्ति को यह सम्मान दिया गया है वह इस सम्मान से बड़ा है। निश्चित ही वैज्ञानिक श्री राव की गंभीर प्रतिष्ठा को किसी पद्म पुरस्कार की अपेक्षा नहीं है। | भारत का सर्वोच्च पद्म सम्मान, भारतरत्न से सम्मानित व्यक्ति, सम्मान देने वालों को यदि मूर्ख बता रहा है तो और कुछ हो न हो यह तो निर्विवाद ही है कि जिस व्यक्ति को यह सम्मान दिया गया है वह इस सम्मान से बड़ा है। निश्चित ही वैज्ञानिक श्री राव की गंभीर प्रतिष्ठा को किसी पद्म पुरस्कार की अपेक्षा नहीं है। | ||
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ध्यानचंद जी भारत के एकमात्र खिलाड़ी हैं जो भारत में ही नहीं पूरे विश्व में, अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती ('मिथ') बन गए थे। यह सौभाग्य अभी तक किसी खिलाड़ी को प्राप्त नहीं है। | ध्यानचंद जी भारत के एकमात्र खिलाड़ी हैं जो भारत में ही नहीं पूरे विश्व में, अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती ('मिथ') बन गए थे। यह सौभाग्य अभी तक किसी खिलाड़ी को प्राप्त नहीं है। | ||
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; दिनांक- 21 नवम्बर, 2013 | |||
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जो किसी का एहसान लेने से बचते हैं | जो किसी का एहसान लेने से बचते हैं | ||
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बादल बनकर दोबारा बरसता है। | बादल बनकर दोबारा बरसता है। | ||
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; दिनांक- 21 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Koi-mar-jaye -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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कोई मर जाए | कोई मर जाए | ||
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शऊर नहीं | शऊर नहीं | ||
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; दिनांक- 21 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Mere-kathan-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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मेरे एक पूर्व कथन पर पाठकों ने प्रश्न किए हैं कि कैसे पता चले किसी की नीयत का ? | मेरे एक पूर्व कथन पर पाठकों ने प्रश्न किए हैं कि कैसे पता चले किसी की नीयत का ? | ||
Line 139: | Line 137: | ||
/) और अंत में एक बात और... कि यह सरासर झूठ होता है कि हमें फ़लां की ख़राब नीयत का पता नहीं था। असल में हम जानते हुए भी अनदेखा करते हैं। | /) और अंत में एक बात और... कि यह सरासर झूठ होता है कि हमें फ़लां की ख़राब नीयत का पता नहीं था। असल में हम जानते हुए भी अनदेखा करते हैं। | ||
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; दिनांक- 16 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Buddhiman-vyakti -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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बुद्धिमान व्यक्ति, अपनी सफलता, बुद्धि के बल पर प्राप्त करना पसंद करता है, चालाकी के बल पर नहीं। | बुद्धिमान व्यक्ति, अपनी सफलता, बुद्धि के बल पर प्राप्त करना पसंद करता है, चालाकी के बल पर नहीं। | ||
Line 149: | Line 147: | ||
चालाकी, बुद्धिमत्ता का भ्रम मात्र पैदा कर सकती है स्वयं बुद्धि कभी नहीं बन सकती। | चालाकी, बुद्धिमत्ता का भ्रम मात्र पैदा कर सकती है स्वयं बुद्धि कभी नहीं बन सकती। | ||
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; दिनांक- 16 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Jab-koi-vaykti -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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जब कोई व्यक्ति, किसी दूसरे की बुद्धि या प्रतिभा से प्रभावित या चमत्कृत हो जाने के बावजूद भी अपने किसी कुंठा या पूर्वाग्रह के कारण इसे छुपाता है या अनदेखा करता है तो उसकी इस ओछी हरक़त पर उसका आइना ही नहीं समूचा अस्तित्व उस पर हँसता है। | जब कोई व्यक्ति, किसी दूसरे की बुद्धि या प्रतिभा से प्रभावित या चमत्कृत हो जाने के बावजूद भी अपने किसी कुंठा या पूर्वाग्रह के कारण इसे छुपाता है या अनदेखा करता है तो उसकी इस ओछी हरक़त पर उसका आइना ही नहीं समूचा अस्तित्व उस पर हँसता है। | ||
Line 158: | Line 156: | ||
मैंने बहुत पहले लिखा था कि जो दूसरों के कांधे पर रखकर बंदूक़ चलाते हैं उनके ख़ुद के काँधे कभी मज़बूत नहीं होते। | मैंने बहुत पहले लिखा था कि जो दूसरों के कांधे पर रखकर बंदूक़ चलाते हैं उनके ख़ुद के काँधे कभी मज़बूत नहीं होते। | ||
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; दिनांक- 14 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Paise-se-zindagi -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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पैसे से ज़िंदगी गुज़ारी जा सकती है | पैसे से ज़िंदगी गुज़ारी जा सकती है | ||
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पैसे से नहीं ख़रीदा जा सकता | पैसे से नहीं ख़रीदा जा सकता | ||
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; दिनांक- 14 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Dost-ka-mulyankan -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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दोस्त का मूल्याँकन करना हो या जीवन साथी चुनना हो, | दोस्त का मूल्याँकन करना हो या जीवन साथी चुनना हो, | ||
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रूप, रंग, गुण, शरीर, धन, प्रतिभा, शिक्षा, बुद्धि, ज्ञान आदि... | रूप, रंग, गुण, शरीर, धन, प्रतिभा, शिक्षा, बुद्धि, ज्ञान आदि... | ||
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; दिनांक- 14 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Raajniti-ka-kshetra -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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राजनीति का क्षेत्र, विचित्र है। यहाँ पूत के पाँव पालने में नहीं दिखते बल्कि तब दिखते हैं जब वह कुर्सी पर विराजमान होकर वहाँ से न हटने के लिए हाथ-पैर पटकता है। सत्ता की अपनी एक भाषा और संस्कृति होती है। जो सत्ता में आता है इसे अपनाता है। यदि नहीं अपनाता है तो सत्ता में नहीं रह पाता। | राजनीति का क्षेत्र, विचित्र है। यहाँ पूत के पाँव पालने में नहीं दिखते बल्कि तब दिखते हैं जब वह कुर्सी पर विराजमान होकर वहाँ से न हटने के लिए हाथ-पैर पटकता है। सत्ता की अपनी एक भाषा और संस्कृति होती है। जो सत्ता में आता है इसे अपनाता है। यदि नहीं अपनाता है तो सत्ता में नहीं रह पाता। | ||
संघर्ष के चलते ही जो दिवंगत हो जाते हैं या जो सत्ता में नहीं पहुँच पाते या सत्ता प्राप्ति के बाद अल्प समय में ही दिवंगत हो जाते हैं, वे सदैव जनता के प्रिय नायक बने रहते हैं। सत्ता में रहकर जन प्रिय रहना बड़ा कठिन होता है, शायद असंभव। | संघर्ष के चलते ही जो दिवंगत हो जाते हैं या जो सत्ता में नहीं पहुँच पाते या सत्ता प्राप्ति के बाद अल्प समय में ही दिवंगत हो जाते हैं, वे सदैव जनता के प्रिय नायक बने रहते हैं। सत्ता में रहकर जन प्रिय रहना बड़ा कठिन होता है, शायद असंभव। | ||
विपक्ष में रहकर, उदारता और समझौता विहीन स्वतंत्र निर्णयों की पूरी सुविधा होती है। जबकि सत्ता पक्ष का संकोची और समझौतावादी होना सत्ता को चलाने और सत्ता में बने रहने की मजबूरी है। | विपक्ष में रहकर, उदारता और समझौता विहीन स्वतंत्र निर्णयों की पूरी सुविधा होती है। जबकि सत्ता पक्ष का संकोची और समझौतावादी होना सत्ता को चलाने और सत्ता में बने रहने की मजबूरी है। | ||
जो सत्ता में नहीं रहे या | जो सत्ता में नहीं रहे या यँू कहें कि भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने वे सत्ता में रहने के बाद भी जनप्रिय रह पाते यह कहना कठिन है। | ||
क्यूबा (कुबा) में, चे ग्वेरा, फ़िदेल कास्त्रो से अधिक जनप्रिय नायक हैं। रूस में, स्टालिन, लेनिन से अधिक जनप्रिय माने गए थे। भारत में, पटेल, नेहरू से अधिक जनप्रिय नायक माने जाते हैं और भारत में ही सुभाष, गाँधी से अधिक जनप्रिय नायक माने जाते हैं। | क्यूबा (कुबा) में, चे ग्वेरा, फ़िदेल कास्त्रो से अधिक जनप्रिय नायक हैं। रूस में, स्टालिन, लेनिन से अधिक जनप्रिय माने गए थे। भारत में, पटेल, नेहरू से अधिक जनप्रिय नायक माने जाते हैं और भारत में ही सुभाष, गाँधी से अधिक जनप्रिय नायक माने जाते हैं। | ||
इसी तरह कुछ और बहुत महत्वपूर्ण नाम भी हैं जैसे- डॉ. आम्बेडकर, राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश... और भी कई नाम हैं जो लिए जा सकते हैं, जो प्रधानमंत्री बन सकते थे। | इसी तरह कुछ और बहुत महत्वपूर्ण नाम भी हैं जैसे- डॉ. आम्बेडकर, राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश... और भी कई नाम हैं जो लिए जा सकते हैं, जो प्रधानमंत्री बन सकते थे। | ||
हमें अपने नेताओं का मूल्याँकन करते समय प्रजातंत्र की सीमाओं में विचरण करने वाली राजनैतिक परिस्थितियों का मूल्याँकन भी करना चाहिए अन्यथा हमारा मूल्याँकन निष्पक्ष नहीं होगा। | हमें अपने नेताओं का मूल्याँकन करते समय प्रजातंत्र की सीमाओं में विचरण करने वाली राजनैतिक परिस्थितियों का मूल्याँकन भी करना चाहिए अन्यथा हमारा मूल्याँकन निष्पक्ष नहीं होगा। | ||
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; दिनांक- 13 नवम्बर, 2013 | |||
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<poem> | <poem> | ||
यूँ तो बहुत से कारण हैं, जिनसे मनुष्य, जानवरों से भिन्न है- जैसे कि हँसना, अँगूठे का प्रयोग, सोचने की क्षमता आदि... लेकिन वह कुछ और ही है जिसने मनुष्य को हज़ारों वर्ष तक चले, दो-दो हिम युगों को सफलता पूर्वक सहन करने की क्षमता प्रदान की। | यूँ तो बहुत से कारण हैं, जिनसे मनुष्य, जानवरों से भिन्न है- जैसे कि हँसना, अँगूठे का प्रयोग, सोचने की क्षमता आदि... लेकिन वह कुछ और ही है जिसने मनुष्य को हज़ारों वर्ष तक चले, दो-दो हिम युगों को सफलता पूर्वक सहन करने की क्षमता प्रदान की। | ||
Line 206: | Line 204: | ||
इसलिए शिकार करने में, घोड़ा मनुष्य का साथी भी बना और वाहन भी। | इसलिए शिकार करने में, घोड़ा मनुष्य का साथी भी बना और वाहन भी। | ||
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; दिनांक- 11 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Fursat-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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जब बुद्धि थी तब अनुभव नहीं था अब अनुभव है तो बुद्धि नहीं है। | जब बुद्धि थी तब अनुभव नहीं था अब अनुभव है तो बुद्धि नहीं है। | ||
Line 224: | Line 222: | ||
जब फ़ुर्सत थी तो फ़ेसबुक नहीं था अब फ़ेसबुक है तो... | जब फ़ुर्सत थी तो फ़ेसबुक नहीं था अब फ़ेसबुक है तो... | ||
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; दिनांक- 9 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Fasane-bhar-ko -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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दिल को समझाया, बहाने भर को | दिल को समझाया, बहाने भर को | ||
Line 244: | Line 242: | ||
तूने चाहा था दिखाने भर को | तूने चाहा था दिखाने भर को | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Shraddha-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
'प्रेम' व्यक्ति से होता है और उसकी यथास्थिति में ही होता है | 'प्रेम' व्यक्ति से होता है और उसकी यथास्थिति में ही होता है | ||
Line 261: | Line 259: | ||
सदैव सशंकित और असमंजस से घिरे हुए... | सदैव सशंकित और असमंजस से घिरे हुए... | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Dosti-dushmani-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
दोस्ती 'हो' जाती | दोस्ती 'हो' जाती | ||
Line 270: | Line 268: | ||
दुश्मनी 'की' जाती है | दुश्मनी 'की' जाती है | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Asafalta-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
<poem> | <poem> | ||
अक्सर सुनने में आता है- | अक्सर सुनने में आता है- | ||
Line 283: | Line 281: | ||
शेष तो "संतोषी सदा सुखी" मंत्र को अपनाकर सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। | शेष तो "संतोषी सदा सुखी" मंत्र को अपनाकर सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। | ||
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; दिनांक- 5 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Sabhya-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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मनुष्य को सभ्यता की शिक्षा दी जाती है क्योंकि समाज को मात्र 'सभ्य' लोग चाहिए। | मनुष्य को सभ्यता की शिक्षा दी जाती है क्योंकि समाज को मात्र 'सभ्य' लोग चाहिए। | ||
Line 295: | Line 293: | ||
अभद्रता वह स्थिति है जहाँ हम सोचते हैं- 'यहाँ कौन देख रहा है मुझे... ऐसा करने में क्या बुराई है?' जैसे ही हम ऐसा सोचते हैं, वैसे ही हम अभद्र हो जाते हैं। | अभद्रता वह स्थिति है जहाँ हम सोचते हैं- 'यहाँ कौन देख रहा है मुझे... ऐसा करने में क्या बुराई है?' जैसे ही हम ऐसा सोचते हैं, वैसे ही हम अभद्र हो जाते हैं। | ||
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; दिनांक- 5 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Dharm-ke-anuyayi-facebook-post.jpg|250px|right]] | |||
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प्रत्येक धर्म के अनुयायी, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। | प्रत्येक धर्म के अनुयायी, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। | ||
Line 310: | Line 308: | ||
ईश्वर पक्षपाती नहीं हो सकता और जो पक्षपाती है वह ईश्वर कैसे हो सकता है? | ईश्वर पक्षपाती नहीं हो सकता और जो पक्षपाती है वह ईश्वर कैसे हो सकता है? | ||
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; दिनांक- 1 नवम्बर, 2013 | |||
[[चित्र:Manushya-ki-ichchhao-me-param-ichchha -Aditya Chaudhary Facebook Post.jpg|250px|right]] | |||
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मनुष्य की इच्छाओं में 'परम' इच्छा है, महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा, इस इच्छा की पूर्ति के उपक्रम को ही सुख कहते हैं। यह सुख, सुखों में सर्वोच्च सुख है। यही है, परम सुख, जिसे न्यूनाधिक रूप से कभी-कभी, आनंद के समकक्ष होने की सुविधा भी प्राप्त है। इस सुख को प्राप्त करने के लिए मनुष्य त्याग की प्रत्येक सीमा का उल्लंघन करने को तत्पर रहता है एवं अन्य सुखों को त्यागना अपना सौभाग्य समझता है। महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा की पूर्ति का प्रयास करना, एक ऐसा सुख है जिस सुख के लिए मनुष्य भोग-विलास, मनोरंजन, सुविधा, परिवार आदि सब कुछ त्याग देता है। | मनुष्य की इच्छाओं में 'परम' इच्छा है, महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा, इस इच्छा की पूर्ति के उपक्रम को ही सुख कहते हैं। यह सुख, सुखों में सर्वोच्च सुख है। यही है, परम सुख, जिसे न्यूनाधिक रूप से कभी-कभी, आनंद के समकक्ष होने की सुविधा भी प्राप्त है। इस सुख को प्राप्त करने के लिए मनुष्य त्याग की प्रत्येक सीमा का उल्लंघन करने को तत्पर रहता है एवं अन्य सुखों को त्यागना अपना सौभाग्य समझता है। महत्त्वपूर्ण बनने की इच्छा की पूर्ति का प्रयास करना, एक ऐसा सुख है जिस सुख के लिए मनुष्य भोग-विलास, मनोरंजन, सुविधा, परिवार आदि सब कुछ त्याग देता है। | ||
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सुखी जीवन के कुछ सुख इस तरह भी गिनाए जाते रहे हैं- पहला सुख, निर्मल हो काया / दूजा सुख, घर में हो माया / तीजा सुख, सुलक्षण नारी / चौथा सुख, सुत आज्ञाकारी / पंचम सुख स्वदेश का वासा / छठा सुख, राज हो पासा / सातवाँ सुख, संतोषी हो मन / इन्ही सुखों से बनता जीवन | सुखी जीवन के कुछ सुख इस तरह भी गिनाए जाते रहे हैं- पहला सुख, निर्मल हो काया / दूजा सुख, घर में हो माया / तीजा सुख, सुलक्षण नारी / चौथा सुख, सुत आज्ञाकारी / पंचम सुख स्वदेश का वासा / छठा सुख, राज हो पासा / सातवाँ सुख, संतोषी हो मन / इन्ही सुखों से बनता जीवन | ||
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Revision as of 11:14, 4 May 2017
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