चाणक्य के अनमोल वचन: Difference between revisions
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* सज्जनों का सत्संग ही स्वर्ग में निवास के समान है। | * सज्जनों का सत्संग ही स्वर्ग में निवास के समान है। | ||
* समृद्धि व्यक्तित्व की देन है, भाग्य की नहीं। | * समृद्धि व्यक्तित्व की देन है, भाग्य की नहीं। | ||
* अपमानपूर्वक जीने से अच्छा है प्राण त्याग देना। प्राण त्यागने में कुछ समय का | * अपमानपूर्वक जीने से अच्छा है प्राण त्याग देना। प्राण त्यागने में कुछ समय का दु:ख होता है, लेकिन अपमानपूर्वक जीने में तो प्रतिदिन का दु:ख सहना होता है। | ||
* सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख कहां? सुख चाहने वाले को विद्या और विद्यार्थी को सुख की कामना छोड़ देनी चाहिए। | * सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख कहां? सुख चाहने वाले को विद्या और विद्यार्थी को सुख की कामना छोड़ देनी चाहिए। | ||
* शांति जैसा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया से बढ़कर धर्मा नहीं है। | * शांति जैसा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया से बढ़कर धर्मा नहीं है। |