चाणक्य के अनमोल वचन: Difference between revisions
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* जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। | * जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। | ||
* स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। | * स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। | ||
* गुणों से ही मनुष्य | * गुणों से ही मनुष्य महान् होता है, ऊंचे आसन पर बैठने से नहीं। महल के कितने भी ऊंचे शिखर पर बैठने से भी [[कौआ]] गरुड़ नहीं हो जाता। | ||
* गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। | * गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। | ||
* भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। | * भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। | ||
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* यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। | * यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। | ||
* मेहनत वह चाबी है जो किस्मत का दरवाज़ा खोल देती है। | * मेहनत वह चाबी है जो किस्मत का दरवाज़ा खोल देती है। | ||
* जो प्रकृति से ही | * जो प्रकृति से ही महान् हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक) ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती। | ||
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का अपना हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। | * प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का अपना हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। | ||
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। | * कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। |