सविनय अवज्ञा आन्दोलन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "कार्यवाही" to "कार्रवाई") |
||
Line 46: | Line 46: | ||
सरकार ने भी गांधी जी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया और [[वाइसराय]] [[लॉर्ड इरविन]] और गांधी जी के बीच सीधी बातचीत का आयोजन करके समझौते की अभिलाषा प्रकट की। गांधी जी और [[लॉर्ड इरविन]] में समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया गया। हिंसा के दोषी लोगों को छोड़कर आन्दोलन में भाग लेने वाले सभी बन्दियों को रिहा कर दिया गया और [[कांग्रेस]] [[गोलमेज सम्मेलन]] के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने को सहमत हो गई। | सरकार ने भी गांधी जी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया और [[वाइसराय]] [[लॉर्ड इरविन]] और गांधी जी के बीच सीधी बातचीत का आयोजन करके समझौते की अभिलाषा प्रकट की। गांधी जी और [[लॉर्ड इरविन]] में समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया गया। हिंसा के दोषी लोगों को छोड़कर आन्दोलन में भाग लेने वाले सभी बन्दियों को रिहा कर दिया गया और [[कांग्रेस]] [[गोलमेज सम्मेलन]] के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने को सहमत हो गई। | ||
==भारतीयों की निराशा== | ==भारतीयों की निराशा== | ||
[[गोलमेज सम्मेलन]] का यह अधिवेशन भारतीयों के लिए निराशा के साथ समाप्त हुआ। इंग्लैण्ड से लौटने के बाद तीन हफ्तों के अन्दर ही गांधी जी को गिरफ़्तार करके जेल में ठूँस दिया गया और [[कांग्रेस]] पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस | [[गोलमेज सम्मेलन]] का यह अधिवेशन भारतीयों के लिए निराशा के साथ समाप्त हुआ। इंग्लैण्ड से लौटने के बाद तीन हफ्तों के अन्दर ही गांधी जी को गिरफ़्तार करके जेल में ठूँस दिया गया और [[कांग्रेस]] पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस कार्रवाई से [[1932]] ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से भड़क उठा। आन्दोलन में भाग लेने के लिए हज़ारों लोग फिर से निकल पड़े, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के इस दूसरे चरण को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया। आन्दोलन तो कुचल दिया गया, लेकिन उसके पीछे छिपी विद्रोह की भावना जीवित रही, जो [[1942]] ई. में तीसरी बार फिर से भड़क उठी। | ||
====हिंसक प्रदर्शन==== | ====हिंसक प्रदर्शन==== | ||
इस बार गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' छेड़ा। सरकार ने फिर ताकत का इस्तेमाल किया और गांधी जी सहित कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्यों को क़ैद कर लिया। इसके विरोध में देश भर में तोड़फोड़ और हिंसक आन्दोलन भड़क उठा। सरकार ने गोलियाँ बरसाईं, सैकड़ों लोग मारे गए और करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो गई। यह आन्दोलन फिर से दबा दिया गया, लेकिन इस बार यह निष्फल नहीं हुआ। इसने ब्रिटिश सरकार को यह दिखा दिया कि [[भारत]] की जनता अब उसकी सत्ता को ठुकराने और उसकी अवज्ञा के लिए कमर कस चुकी है और उस पर काबू पाना अब मुश्किल है। | इस बार गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' छेड़ा। सरकार ने फिर ताकत का इस्तेमाल किया और गांधी जी सहित कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्यों को क़ैद कर लिया। इसके विरोध में देश भर में तोड़फोड़ और हिंसक आन्दोलन भड़क उठा। सरकार ने गोलियाँ बरसाईं, सैकड़ों लोग मारे गए और करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो गई। यह आन्दोलन फिर से दबा दिया गया, लेकिन इस बार यह निष्फल नहीं हुआ। इसने ब्रिटिश सरकार को यह दिखा दिया कि [[भारत]] की जनता अब उसकी सत्ता को ठुकराने और उसकी अवज्ञा के लिए कमर कस चुकी है और उस पर काबू पाना अब मुश्किल है। |
Latest revision as of 09:01, 10 February 2021
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
| |
विवरण | ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जन आन्दोलन में से एक था। |
शुरुआत | 6 अप्रैल, 1930 |
उद्देश्य | कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था। |
प्रभाव | ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को दबाने के लिए सख़्त क़दम उठाये और गांधी जी सहित अनेक कांग्रेसी नेताओं व उनके समर्थकों को जेल में डाल दिया। आन्दोलनकारियों और सरकारी सिपाहियों के बीच जगह-जगह ज़बर्दस्त संघर्ष हुए |
अन्य जानकारी | इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह दिखा दिया कि भारत की जनता अब उसकी सत्ता को ठुकराने और उसकी अवज्ञा के लिए कमर कस चुकी है और उस पर काबू पाना अब मुश्किल है। |
सविनय अवज्ञा आन्दोलन, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जन आन्दोलन में से एक था। 1929 ई. तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक़ होने लगा कि वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन (1929 ई.) में घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। महात्मा गांधी ने अपनी इस माँग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अंतर्गत चलाये जाने वाले कार्यक्रम निम्नलिखित थे-
- नमक क़ानून का उल्लघंन कर स्वयं द्वारा नमक बनाया जाए।
- सरकारी सेवाओं, शिक्षा केन्द्रों एवं उपाधियों का बहिष्कार किया जाए।
- महिलाएँ स्वयं शराब, अफ़ीम एवं विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना दें।
- समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुए उन्हें जला दिया जाए।
- कर अदायगी को रोका जाए।
क़ानून तोड़ने की नीति
क़ानूनों को जानबूझ कर तोड़ने की इस नीति का कार्यान्वयन औपचारिक रूप से उस समय हुआ, जब महात्मा गांधी ने अपने कुछ चुने हुए अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट पर स्थित डांडी नामक स्थान तक कूच किया और वहाँ पर लागू नमक क़ानून को तोड़ा। लिबरलों और मुसलमानों के बहुत वर्ग ने इस आन्दोलन में भाग नहीं लिया। किन्तु देश का सामान्य जन इस आन्दोलन में कूद पड़ा। हज़ारों नर-नारी और आबाल-वृद्ध क़ानूनों को तोड़ने के लिए सड़कों पर आ गए। सम्पूर्ण देश गम्भीर रूप से आन्दोलित हो उठा।
गांधी जी की चिंता
ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को दबाने के लिए सख़्त क़दम उठाये और गांधी जी सहित अनेक कांग्रेसी नेताओं व उनके समर्थकों को जेल में डाल दिया। आन्दोलनकारियों और सरकारी सिपाहियों के बीच जगह-जगह ज़बर्दस्त संघर्ष हुए। शोलापुर जैसे स्थानों पर औद्योगिक उपद्रव और कानपुर जैसे नगरों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। हिंसा के इस विस्फ़ोट से गांधी जी चिन्तित हो उठे। वे आन्दोलन को बिल्कुल अहिंसक ढंग से चलाना चाहते थे।
गाँधी-इरविन समझौता
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
सरकार ने भी गांधी जी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया और वाइसराय लॉर्ड इरविन और गांधी जी के बीच सीधी बातचीत का आयोजन करके समझौते की अभिलाषा प्रकट की। गांधी जी और लॉर्ड इरविन में समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया गया। हिंसा के दोषी लोगों को छोड़कर आन्दोलन में भाग लेने वाले सभी बन्दियों को रिहा कर दिया गया और कांग्रेस गोलमेज सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने को सहमत हो गई।
भारतीयों की निराशा
गोलमेज सम्मेलन का यह अधिवेशन भारतीयों के लिए निराशा के साथ समाप्त हुआ। इंग्लैण्ड से लौटने के बाद तीन हफ्तों के अन्दर ही गांधी जी को गिरफ़्तार करके जेल में ठूँस दिया गया और कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस कार्रवाई से 1932 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से भड़क उठा। आन्दोलन में भाग लेने के लिए हज़ारों लोग फिर से निकल पड़े, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के इस दूसरे चरण को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया। आन्दोलन तो कुचल दिया गया, लेकिन उसके पीछे छिपी विद्रोह की भावना जीवित रही, जो 1942 ई. में तीसरी बार फिर से भड़क उठी।
हिंसक प्रदर्शन
इस बार गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 'भारत छोड़ो आन्दोलन' छेड़ा। सरकार ने फिर ताकत का इस्तेमाल किया और गांधी जी सहित कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्यों को क़ैद कर लिया। इसके विरोध में देश भर में तोड़फोड़ और हिंसक आन्दोलन भड़क उठा। सरकार ने गोलियाँ बरसाईं, सैकड़ों लोग मारे गए और करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो गई। यह आन्दोलन फिर से दबा दिया गया, लेकिन इस बार यह निष्फल नहीं हुआ। इसने ब्रिटिश सरकार को यह दिखा दिया कि भारत की जनता अब उसकी सत्ता को ठुकराने और उसकी अवज्ञा के लिए कमर कस चुकी है और उस पर काबू पाना अब मुश्किल है।
आज़ादी
सन 1942 में 'अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो' का जो नारा गांधीजी ने दिया था, उसके ठीक पाँच वर्षों के बाद अगस्त, 1947 ई. में ब्रिटेन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख