आदम: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - " नर्क " to "नरक") |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[इस्लाम]] का इतिहास जानने का अस्ल माध्यम स्वयं इस्लाम का मूल ग्रंथ [[क़ुरान शरीफ़|क़ुरान]] है। इस्लाम का आरंभ प्रथम मनुष्य '''आदम''' से होने का ज़िक्र करता है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए क़ुरान ने [[मुस्लिम]] शब्द का प्रयोग हज़रत इब्राहीम के लिए किया है जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व एक महान् पैग़म्बर (सन्देष्टा) हुए थे। हज़रत आदम से शुरू होकर [[मुहम्मद|हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)]] तक हज़ारों वर्षों पर फैले हुए इस्लामी इतिहास में असंख्य ईशसंदेष्टा ईश्वर के संदेश के साथ, ईश्वर द्वारा विभिन्न युगों और विभिन्न क़ौमों में नियुक्त किए जाते रहे।<ref>{{cite web |url=http://www.islamdharma.org/article.aspx?ptype=A&menuid=39 |title=इस्लाम का इतिहास |accessmonthday=[[8 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इस्लाम धर्म |language=हिन्दी }}</ref> | [[इस्लाम]] का इतिहास जानने का अस्ल माध्यम स्वयं इस्लाम का मूल ग्रंथ [[क़ुरान शरीफ़|क़ुरान]] है। इस्लाम का आरंभ प्रथम मनुष्य '''आदम''' से होने का ज़िक्र करता है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए क़ुरान ने [[मुस्लिम]] शब्द का प्रयोग हज़रत इब्राहीम के लिए किया है जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व एक महान् पैग़म्बर (सन्देष्टा) हुए थे। हज़रत आदम से शुरू होकर [[मुहम्मद|हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)]] तक हज़ारों वर्षों पर फैले हुए इस्लामी इतिहास में असंख्य ईशसंदेष्टा ईश्वर के संदेश के साथ, ईश्वर द्वारा विभिन्न युगों और विभिन्न क़ौमों में नियुक्त किए जाते रहे।<ref>{{cite web |url=http://www.islamdharma.org/article.aspx?ptype=A&menuid=39 |title=इस्लाम का इतिहास |accessmonthday=[[8 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इस्लाम धर्म |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==कथा== | ==कथा== | ||
"जब परमात्मा ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं दुनिया में एक नायब (सहायक) बनाने वाला हूँ, तो वह बोले— क्या उसमें तू ऐसों को बनाएगा जो [[ख़ून]] और कलह करेंगे? हम तेरी स्तुति करते हैं। (भगवान ने) आदम को सम्पूर्ण नाम (ज्ञान) सिखाए, फिर उसे फ़रिश्तों (देवदूतों) को दिखाकर कहा— यदि तुम सच्चे हो तो हमें इन (वस्तुओं) के नाम बताओ। (फ़रिश्तों ने कहा— जो कुछ तूने सिखाया है, उसके अतिरिक्त हमको मालूम नहीं...!) (अब प्रभु ने) कहा— हे आदम, इनको इनके नाम बता दे। फिर जब उसने उन्हें बता दिया तो (परमेश्वर ने) कहा— क्या मैंने तुमसे नहीं कहा कि मैं बहुत–सी बातें ऐसी जानता हूँ, जिसे तुम नहीं जानते। परमात्मा ने फ़रिश्तों से आदम को प्रणाम करने को कहा। सबने तो किया, किन्तु (सबके सर्दार) इब्लीस ने नहीं किया।<ref>2:4:1-5</ref> इब्लीस ने कहा— मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं [[आग]] से बना और यह (आदम) मिट्टी से।<ref>38:514</ref> फिर इब्लीस ने ईश्वर के मार्ग को रोककर (लोगों को) पथभ्रष्ट करने के लिए धमकी दी। (इस पर) प्रभु ने कहा— उस (शैतान इब्लीस) को (स्वर्ग से) निकाला जाएगा और उसकी बात मानने वालों | "जब परमात्मा ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं दुनिया में एक नायब (सहायक) बनाने वाला हूँ, तो वह बोले— क्या उसमें तू ऐसों को बनाएगा जो [[ख़ून]] और कलह करेंगे? हम तेरी स्तुति करते हैं। (भगवान ने) आदम को सम्पूर्ण नाम (ज्ञान) सिखाए, फिर उसे फ़रिश्तों (देवदूतों) को दिखाकर कहा— यदि तुम सच्चे हो तो हमें इन (वस्तुओं) के नाम बताओ। (फ़रिश्तों ने कहा— जो कुछ तूने सिखाया है, उसके अतिरिक्त हमको मालूम नहीं...!) (अब प्रभु ने) कहा— हे आदम, इनको इनके नाम बता दे। फिर जब उसने उन्हें बता दिया तो (परमेश्वर ने) कहा— क्या मैंने तुमसे नहीं कहा कि मैं बहुत–सी बातें ऐसी जानता हूँ, जिसे तुम नहीं जानते। परमात्मा ने फ़रिश्तों से आदम को प्रणाम करने को कहा। सबने तो किया, किन्तु (सबके सर्दार) इब्लीस ने नहीं किया।<ref>2:4:1-5</ref> इब्लीस ने कहा— मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं [[आग]] से बना और यह (आदम) मिट्टी से।<ref>38:514</ref> फिर इब्लीस ने ईश्वर के मार्ग को रोककर (लोगों को) पथभ्रष्ट करने के लिए धमकी दी। (इस पर) प्रभु ने कहा— उस (शैतान इब्लीस) को (स्वर्ग से) निकाला जाएगा और उसकी बात मानने वालों कोनरकमें डाला जाएगा।<ref>7:2:7-5</ref> फिर भगवान ने आदम और उसकी स्त्री को स्वर्गोद्यान में रहने की आज्ञा दी और यह भी कहा कि जो चाहे सो खाना, किन्तु अमुक वृक्ष के समीप न जाना।<ref>2:4:6</ref>फिर) शैतान ने उस (आदम) की स्त्री को बहकाया...<ref>2:4:7</ref> अमर या फ़रिश्ता न हो जाओ, इसीलिए (खुदा) ने [[भारत के फल|फल]] खाना मना किया है...<ref>7:2:9</ref>।...मैं तुमको अमर वृक्ष और अजर–राज्य बता दूँ।<ref>20:7:5</ref> फल खाने पर उनके अवगुण खुल गए और वह पत्ते से (अपने [[मानव शरीर|शरीर]] को) ढकने लगे। फिर ईश्वर ने कहा— क्या हमने तुमको मना न किया था कि शैतान तुम्हारा शत्रु है। सो उतरो...<ref>7:2:911-13</ref>इस प्रकार शैतान ने उन दोनों को)...स्वर्ग से निकलवा दिया।<ref>2:4:7</ref> जब काम पूरा हो चुका तो शैतान ने कहा— परमेश्वर ने ठीक अभिवचन दिया, किन्तु मेरी बात झूठी थी। (यद्यपि) मेरा शासन तुम पर नहीं था, किन्तु मैंने बताया और तुमने मान लिया; अतः मुझे अपराधी मत बनाओ, अपने को ठहराओ।"<ref>14:4:1</ref> | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} |
Latest revision as of 10:51, 11 February 2021
हज़रत आदम
इस्लाम का इतिहास जानने का अस्ल माध्यम स्वयं इस्लाम का मूल ग्रंथ क़ुरान है। इस्लाम का आरंभ प्रथम मनुष्य आदम से होने का ज़िक्र करता है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए क़ुरान ने मुस्लिम शब्द का प्रयोग हज़रत इब्राहीम के लिए किया है जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व एक महान् पैग़म्बर (सन्देष्टा) हुए थे। हज़रत आदम से शुरू होकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) तक हज़ारों वर्षों पर फैले हुए इस्लामी इतिहास में असंख्य ईशसंदेष्टा ईश्वर के संदेश के साथ, ईश्वर द्वारा विभिन्न युगों और विभिन्न क़ौमों में नियुक्त किए जाते रहे।[1]
कथा
"जब परमात्मा ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं दुनिया में एक नायब (सहायक) बनाने वाला हूँ, तो वह बोले— क्या उसमें तू ऐसों को बनाएगा जो ख़ून और कलह करेंगे? हम तेरी स्तुति करते हैं। (भगवान ने) आदम को सम्पूर्ण नाम (ज्ञान) सिखाए, फिर उसे फ़रिश्तों (देवदूतों) को दिखाकर कहा— यदि तुम सच्चे हो तो हमें इन (वस्तुओं) के नाम बताओ। (फ़रिश्तों ने कहा— जो कुछ तूने सिखाया है, उसके अतिरिक्त हमको मालूम नहीं...!) (अब प्रभु ने) कहा— हे आदम, इनको इनके नाम बता दे। फिर जब उसने उन्हें बता दिया तो (परमेश्वर ने) कहा— क्या मैंने तुमसे नहीं कहा कि मैं बहुत–सी बातें ऐसी जानता हूँ, जिसे तुम नहीं जानते। परमात्मा ने फ़रिश्तों से आदम को प्रणाम करने को कहा। सबने तो किया, किन्तु (सबके सर्दार) इब्लीस ने नहीं किया।[2] इब्लीस ने कहा— मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं आग से बना और यह (आदम) मिट्टी से।[3] फिर इब्लीस ने ईश्वर के मार्ग को रोककर (लोगों को) पथभ्रष्ट करने के लिए धमकी दी। (इस पर) प्रभु ने कहा— उस (शैतान इब्लीस) को (स्वर्ग से) निकाला जाएगा और उसकी बात मानने वालों कोनरकमें डाला जाएगा।[4] फिर भगवान ने आदम और उसकी स्त्री को स्वर्गोद्यान में रहने की आज्ञा दी और यह भी कहा कि जो चाहे सो खाना, किन्तु अमुक वृक्ष के समीप न जाना।[5]फिर) शैतान ने उस (आदम) की स्त्री को बहकाया...[6] अमर या फ़रिश्ता न हो जाओ, इसीलिए (खुदा) ने फल खाना मना किया है...[7]।...मैं तुमको अमर वृक्ष और अजर–राज्य बता दूँ।[8] फल खाने पर उनके अवगुण खुल गए और वह पत्ते से (अपने शरीर को) ढकने लगे। फिर ईश्वर ने कहा— क्या हमने तुमको मना न किया था कि शैतान तुम्हारा शत्रु है। सो उतरो...[9]इस प्रकार शैतान ने उन दोनों को)...स्वर्ग से निकलवा दिया।[10] जब काम पूरा हो चुका तो शैतान ने कहा— परमेश्वर ने ठीक अभिवचन दिया, किन्तु मेरी बात झूठी थी। (यद्यपि) मेरा शासन तुम पर नहीं था, किन्तु मैंने बताया और तुमने मान लिया; अतः मुझे अपराधी मत बनाओ, अपने को ठहराओ।"[11]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- REDIRECT साँचा:टिप्पणीसूची