युद्ध काण्ड वा. रा.

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:51, 18 May 2010 by Govind (talk | contribs)
Jump to navigation Jump to search

युद्ध काण्ड / लंका काण्ड

युद्धकाण्ड में वानरसेना का पराक्रम, रावणकुम्भकर्णादि राक्षसों का अपना पराक्रम-वर्णन, विभीषण-तिरस्कार, विभीषण का राम के पास गमन, विभीषण-शरणागति, समुद्र के प्रति क्रोध, नलादि की सहायता से सेतुबन्धन, शुक-सारण-प्रसंग, सरमावृत्तान्त, रावण-अंगद-संवाद, मेघनाद-पराजय, कुम्भकर्ण आदि राक्षसों का राम के साथ युद्ध-वर्णन, कुम्भकर्णादि राक्षसों का वध, मेघनाद वध, राम-रावण युद्ध, रावण वध, मंदोदरी विलाप, विभीषण का शोक, राम के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक, लंका से सीता का आनयन, सीता की शुद्धि हेतु अग्नि-प्रवेश, हनुमान, सुग्रीव, अंगद आदि के साथ राम, लक्ष्मण तथा सीता का अयोध्या प्रत्यावर्तन, राम का राज्याभिषेक तथा भरत का युवराज पद पर आसीन होना, सुग्रीवादि वानरों का किष्किन्धा तथा विभीषण का लंका को लौटना, रामराज्य वर्णन और रामायण पाठ श्रवणफल कथन आदि का निरूपण किया गया है। इस काण्ड में 128 सर्ग तथा सबसे अधिक 5,692 श्लोक प्राप्त होते हैं। शत्रु के जय, उत्साह और लोकापवाद के दोष से मुक्त होने के लिए युद्ध काण्ड का पाठ करना चाहिए। इसे बृहद्धर्मपुराण में लंका काण्ड भी कहा गया है।[1]

टीका-टिप्पणी

  1. शत्रोर्जये समुत्साहे जनवादे विगर्हिते।
    लंकाकाण्डं पठेत् किं वा श्रृणुयात् स सुखी भवेत्॥(बृहद्धर्मपुराण 26…13)

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः