उर्स

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उर्स से अभिप्राय है- "किसी फ़कीर, महात्मा, पीर आदि के मरने के दिन का कृत्य या उत्सव"। मुस्लिम समुदाय में यह दिन बहुत ही पाक और पवित्र माना जाता है। इस दिन संबंधित फ़कीर या पीर की दरगाह की साफ-सफाई करके उसे सुन्दरता के साथ सजाया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज़ पढ़ने के बाद दरगाह पर चिराग आदि जलाते और चादरें चढ़ाते हैं। उर्स के दिन दरगाह में संगीत (क़व्वाली) आदि का कार्यक्रम रखा जाता है। भारत में अजमेर और पिरानकलियर के उर्स बहुत प्रसिद्ध हैं, जहाँ देश भर के कव्वाल तथा गायक-गायिकाएँ आती हैं और अपने संगीत से उपस्थित जनसमुदाय का मनोरंजन करती हैं।

अजमेर उर्स

दक्षिण एशिया में सामान्यत: 'उर्स' किसी सूफ़ी संत की पुण्य तिथि पर उसकी दरगाह पर वार्षिक रूप से आयोजित किये जाने वाले 'उत्सव' को कहा जाता है। दक्षिण एशियाई सूफ़ी संत मुख्य रूप से 'चिश्तिया' कहे जाते हैं। ये सूफ़ी संत परमेश्वर के प्रेमी समझे जाते हैं। सूफ़ी संत की मृत्यु को 'विसाल' पुकारा जाता है, जिसका अर्थ है- "प्रेमियों का मिलाप"। भारत के राजस्थान में अजमेर में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में होने वाला 'अजमेर उर्स' विश्व प्रसिद्ध है। यह उर्स हिन्दू-मुस्लिम एकता और विश्वशांति का प्रतीक है। यह उर्स आपसी भाईचारे की सबसे बड़ी पहचान है। महान सूफ़ी संत हजरत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चढ़ाए जाने वाले फूल पुष्कर से आते हैं तो पुष्कर पर चढ़ाई जाने वाली पूजा सामग्री की खीलें दरगाह ख़्वाजा साहब के बाज़ार से ही जाती हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे की इससे अधिक अच्छी मिसाल और कोई नहीं हो सकती है। अजमेर में कभी भी हिन्दू-मुस्लिम तनाव नहीं देखा गया। यहाँ के बहुत-से गैर मुस्लिम रमजान के मास में दरगाह में आकर रोजा खोलते हैं।


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