करिकाल

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  • करिकाल प्रारम्भिक चोल शासकों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक था।
  • इसे 'जले हुए पैरों वाला' कहा गया है।
  • अनुमानतः इस शासक ने 190 ई. में शासन किया था।
  • इस साम्राज्य विस्तारवादी शासक ने अपने शासन के आरम्भिक वर्षों में 'वण्णि' नामक स्थान पर 'बेलरि' तथा अन्य ग्यारह शासकों की संयुक्त सेना को पराजित कर प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
  • उसकी दूसरी महत्त्वपूर्ण सफलता थी- 'वहैप्परन्लई' के 9 छोटे-छोटे शासकों की संयुक्त सेना को पराजित करना।
  • इस प्रकार करिकाल ने पूरे तमिल प्रदेश को अपनी भुजाओं के पराक्रम के द्वारा अपने अधीन कर लिया था।
  • उसके शासनकाल में पाण्ड्य साम्राज्य एवं चेर वंश के शासक महत्त्वहीन हो गये थे।
  • संगम साहित्य के अनुसार- करिकाल ने कावेरी नदी के मुहाने पर 'पुहार पत्तन' (कावेरीपट्नम) की स्थापना की।
  • शक्तिशाली नौसेना रखने वाला करिकाल शायद संगम युग को सबसे महान् एवं पराक्रमी शासक था।
  • ‘पट्टिनप्पालै‘ कृति के उल्लेख के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि, करिकाल के समय में उद्योग तथा व्यापार उन्नति की अवस्था में थे।
  • करिकाल ने पट्टिप्पालै के लेखक को 1,60,000 स्वर्ण मुद्रायें उपहार में दी थीं।
  • करिकाल सात स्वरों का ज्ञाता तथा वैदिक धर्म का अनुयायी था।
  • करिकाल के बाद उत्तराधिकार के लिए गृह युद्ध हुआ। 'कोकर किलार' नामक कवि ने इस गृह युद्ध का काव्यात्मक वर्णन किया है।
  • करिकाल के दो पुत्र 'नलन्गिल्लित' एवं 'नेडुंजेलि' ने दो राजधानियों से अलग-अलग शासन किया।
  • बड़े पुत्र ने 'उरैयुर' से तथा छोटे पुत्र ने 'पुहार' से शासन किया।
  • इस वंश का करिकाल के बाद अन्तिम महान् शासक 'नेडुजेलियन' था। उसने सफलतापूर्वक पाण्ड्यों तथा चेरों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
  • उसकी मृत्यु युद्ध क्षेत्र में हुई। उसकी प्रशंसा में संगम साहित्य में अनेक कविताओं का उल्लेख मिलता है।
  • ईसा की तीसरी शताब्दी से 9वीं शताब्दी तक चोलों का इतिहास अंधेरे में था, पर 9वीं शताब्दी के मध्य में ही चोल नरेश विजयालय ने चोल शक्ति का पुनः उद्धार किया।


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