अध:शैल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:29, 25 October 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

अध:शैल पृथ्वी का अभ्यंतर पिघले हुए पाषाणों का आगार है। ताप एवं ऊर्जा का संकेंद्रण कभी-कभी इतना उग्र हो उठता है कि पिघला हुआ लावा पृथ्वी की पपड़ी फाड़कर दरारों के मार्ग से बारह निकल आता है। दरारों में जमे लावा के इन शैल पिंडों को नितुन्न शैल कहते हैं। उन विराट् पर्वताकार नितुन्न शैलों को, जिनका आकार गहराई के साथ-साथ बढ़ता चला जाता है और जिनके आधार का पता ही नहीं चल पाता है, 'अधशैल' कहते हैं।[1]

  • पर्वत निर्माण की घटनाओं से अधशैलों का गंभीर संबंध है। विशाल पर्वत श्रृंखलाओं के मध्यवर्ती अक्षीय भाग में अधशैल ही अवस्थित होते हैं।
  • हिमालय की केंद्रीय उच्चतम श्रेणियाँ ग्रेनाइट के अधशैलों से ही निर्मित हैं।
  • अधशैलों का विकास दो प्रकार से होता है। ये पूर्वस्थित शैलों के पूर्ण रासायनिक प्रतिस्थापन[2] एवं पुनस्फाटन[3] से निर्मित होते हैं और इसके अतिरिक्त अधिकांश छोटे-मोटे नितुन्न शैल पृथ्वी की पपड़ी फाड़कर मैग्मा (लावा) के जमने से बनते हैं।
  • अध:शैलों की उत्पत्ति के विषय में स्थान का प्रश्न अति महत्वपूर्ण है। क्लूस, इडिंग्स आदि विशेषज्ञों का मत है कि पूर्व स्थित शैल आरोही मैग्मा द्वारा ऊपर एवं पार्श्व की ओर विस्थापित कर दिए गए हैं, परंतु डेली, कोल एवं बैरल जैसे विद्वानों का मत है कि आरोही मैग्मा ने पूर्वस्थित शैलों को सशरीर घोलकर आत्मसात कर लिया या क्रमश कुतर-कुतरकर सरदन (कोरोज़न) द्वारा अपने लिए मार्ग बनाया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अध:शैल (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2014।
  2. रिप्लेसमेंट
  3. री-क्रिस्टैलाइजेशन

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः