Difference between revisions of "आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट"
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+ | <poem> | ||
+ | आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया | ||
+ | त्याग कर मेरा हृदय वह क्यों विलग होता गया | ||
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+ | शब्द निष्ठुर, रूठकर करते रहे मनमानियां | ||
+ | प्रेम का संदेश कुछ था और कुछ होता गया | ||
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+ | मैं अधम, शोषित हुआ, अपने ही भ्रामक दर्प से | ||
+ | क्रूर समयाघात सह, अवसादमय होता गया | ||
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+ | कर रही विचलित, कि ज्यों टंकार प्रत्यंचा की हो | ||
+ | नाद सुन अपने हृदय का मैं द्रवित होता गया | ||
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+ | मैं, अपरिचित काल क्रम की रार में विभ्रमित था | ||
+ | वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Kyon-vilag-hota-gaya-Aditya-Chaudhary.jpg|cetner|250px]] | ||
+ | | 21 फ़रवरी, 2015 | ||
+ | |- | ||
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+ | <poem> | ||
+ | जो भी मैंने तुम्हें बताया | ||
+ | जो कुछ सारा ज्ञान दिया है | ||
+ | वो मेरे असफल जीवन का | ||
+ | और मिरे अपराधी मन का | ||
+ | कुंठाओं से भरा-भराया | ||
+ | कुछ अनुभव था | ||
+ | |||
+ | जितनी भूलें मैंने की थीं | ||
+ | जितने मुझको शूल चुभे थे | ||
+ | उतने ही अब फूल चुनूँ और | ||
+ | सेज बना दूँ, ऐसा है मन | ||
+ | और एक सपना भी है | ||
+ | मेरा ही अपना | ||
+ | |||
+ | मेरे भय ने मुझे सताया | ||
+ | जीवन के अंधियारे पल थे | ||
+ | जितने भी वो सारे कल थे | ||
+ | दूर तुम्हें उनसे ले जाऊँ | ||
+ | कहना यही चाहता हूँ मैं | ||
+ | ये कम है क्या? | ||
+ | |||
+ | मन से भाग सकूँगा कैसे | ||
+ | कोई भाग सका भी है क्या | ||
+ | |||
+ | कोई नहीं बता सकता है | ||
+ | कोई नहीं जता सकता है | ||
+ | ये तो बस, सब ऐसा ही है | ||
+ | समझ सको तो समझ ही लेना | ||
+ | प्रेम किया है जैसा भी है | ||
+ | |||
+ | और नहीं मालूम मुझे कुछ | ||
+ | यही प्रेम पाती है मेरी | ||
+ | नहीं जानता लिखना कुछ भी | ||
+ | जैसे-तैसे यही लिखा है... | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Aditya-Chaudhary-03.jpg|cetner|250px]] | ||
+ | | 20 फ़रवरी, 2015 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | प्रिय मित्रो! मेरी एक और रचना, क़ता-कविता आपके सामने। यह मैंने 20 वर्ष की उम्र में कही थी। | ||
+ | नहीं थी बात कोई भी जिसे कि भूले हम | ||
+ | रही हो याद कोई भी हमें तो याद नहीं | ||
+ | |||
+ | कुछ इस तरहा गुज़री ये ज़िन्दगी अपनी | ||
+ | जिया हो लम्हा कोई भी हमें तो याद नहीं | ||
+ | |||
+ | हरेक चोट पे मरहम लगा के देख लिया | ||
+ | भरा हो ज़ख़्म कोई भी हमें तो याद नहीं | ||
+ | |||
+ | पिलाई हमको गई, नहीं किसी से कम | ||
+ | हुआ हो हमको नशा भी हमें तो याद नहीं | ||
+ | |||
+ | मिले थे लोग बहुत, चले थे साथ कई | ||
+ | बना हो दोस्त कोई भी हमें तो याद नहीं | ||
+ | |||
+ | सन् 1981 दिल्ली में कही थी | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Nahi-thi-koi-bat-Aditya-Chaudhary.jpg|cetner|250px]] | ||
+ | | 19 फ़रवरी, 2015 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | कोई मुस्कान ऐसी है जो हरदम याद आती है | ||
+ | छिड़कती जान ऐसी है वो हरदम याद आती है | ||
+ | |||
+ | अंधेरी ठंड की रातों में बस लस्सी ही पीनी है | ||
+ | फुला के मुंह जो बैठी है वो हरदम याद आती है | ||
+ | |||
+ | कभी हर बात पे हाँ है कभी हर बात पे ना है | ||
+ | पटक कर पैर खिसियाती वो हरदम याद आती है | ||
+ | |||
+ | शरारत आँखों में तैरी है और मैं देख ना पाऊँ | ||
+ | झुकी नज़रों की शैतानी वो हरदम याद आती है | ||
+ | |||
+ | न जाने कौन से जन्मों में मोती दान कर बैठा | ||
+ | कई जन्मों के बंधन से वो हरदम याद आती है | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Hardam-yad-ati-hai-aditya-chaudhary.jpg|cetner|250px]] | ||
+ | | 19 फ़रवरी, 2015 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | तुझे देख लूँ और चुप रहूँ ऐसा हुनर मुझमें कहाँ | ||
+ | तेरे साथ हूँ, तुझे ना छुऊँ ऐसा हुनर मुझमें कहाँ | ||
+ | </poem> | ||
+ | | | ||
+ | | 18 फ़रवरी, 2015 | ||
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Revision as of 12:17, 20 March 2015
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