Difference between revisions of "आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अक्टूबर-दिसम्बर 2015"
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+ | ;दिनांक- 22 दिसम्बर, 2015 | ||
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सामान्य, बात-चीत में मैं अक्सर कह देता हूँ कि मैं भगवान को नहीं मानता लेकिन मेरे साथ जो घटता है वह बड़ा ही विलक्षण अनुभव रहता है। | सामान्य, बात-चीत में मैं अक्सर कह देता हूँ कि मैं भगवान को नहीं मानता लेकिन मेरे साथ जो घटता है वह बड़ा ही विलक्षण अनुभव रहता है। | ||
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हम आस्तिक हैं यह तो ठीक है किंतु किसके प्रति है यह आस्तिकता। ईश्वर के प्रति, मानव-धर्म के प्रति या संप्रदाय के प्रति। यह ज़रूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी संप्रदाय-मज़हब के प्रति आस्था रखता हो तो ईश्वर में भी उसकी आस्था हो। ईश्वर में आस्था का अर्थ ईश्वर की स्तुति नहीं है बल्कि सत्य, करुणा, विवेक और प्रेम के मार्ग पर चलना है और यही ईश्वर-प्रदत्त मार्ग है। अब सोचने वाली बात यह है कि कितने लोग इस मार्ग पर चलते हैं? संभवत: कम ही हैं तो बस हिसाब लगा सकते हैं कि आस्तिकों की संख्या अधिक है या नास्तिकों की। | हम आस्तिक हैं यह तो ठीक है किंतु किसके प्रति है यह आस्तिकता। ईश्वर के प्रति, मानव-धर्म के प्रति या संप्रदाय के प्रति। यह ज़रूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी संप्रदाय-मज़हब के प्रति आस्था रखता हो तो ईश्वर में भी उसकी आस्था हो। ईश्वर में आस्था का अर्थ ईश्वर की स्तुति नहीं है बल्कि सत्य, करुणा, विवेक और प्रेम के मार्ग पर चलना है और यही ईश्वर-प्रदत्त मार्ग है। अब सोचने वाली बात यह है कि कितने लोग इस मार्ग पर चलते हैं? संभवत: कम ही हैं तो बस हिसाब लगा सकते हैं कि आस्तिकों की संख्या अधिक है या नास्तिकों की। | ||
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+ | ; दिनांक- 22 दिसम्बर, 2015 | ||
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ब्रजभाषा में लिखी इन पंक्तियों का अनुवाद हिन्दी में करें। सही अनुवाद करने वाले को ‘ब्रजरत्न’ से सम्मानित किया जाएगा… | ब्रजभाषा में लिखी इन पंक्तियों का अनुवाद हिन्दी में करें। सही अनुवाद करने वाले को ‘ब्रजरत्न’ से सम्मानित किया जाएगा… | ||
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खैरि अब तौ सब ठीकै। | खैरि अब तौ सब ठीकै। | ||
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+ | ; दिनांक- 21 दिसम्बर, 2015 | ||
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मैं यहाँ किसी धर्म-संप्रदाय-मज़हब के पक्ष-विपक्ष में नहीं लिख रहा हूँ। इसलिए किसी धर्म-संप्रदाय या मज़हब के अति उत्साही समर्थक निम्न पंक्तियों को सामान्य अर्थों में ही लें। कारण यह है कि मैं स्वयं को विद्वान न मानते हुए मात्र एक जिज्ञासु के समान ही लिखता हूँ। मेरे लिखे पर जो टिप्पणी आती हैं उससे मेरी जानकारी बढ़ती है। कभी-कभी कुछ लोग मेरी पोस्ट पर मुझे किसी एक पक्ष का मानते हुए टिप्पणी कर देते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। मैं भारतकोश (www.bharatkosh.org) चला रहा हूँ और भारत की परंपरा, संस्कृति और इतिहास आदि की खोज में लगा रहता हूँ। मुझे जब भी जो भी जानने को मिलता है, लिखने का प्रयास करता हूँ। मैं किसी विषय पर कोई अथॉरिटी नहीं हूँ और एक साधारण रूप से पढ़ा-लिखा व्यक्ति हूँ। | मैं यहाँ किसी धर्म-संप्रदाय-मज़हब के पक्ष-विपक्ष में नहीं लिख रहा हूँ। इसलिए किसी धर्म-संप्रदाय या मज़हब के अति उत्साही समर्थक निम्न पंक्तियों को सामान्य अर्थों में ही लें। कारण यह है कि मैं स्वयं को विद्वान न मानते हुए मात्र एक जिज्ञासु के समान ही लिखता हूँ। मेरे लिखे पर जो टिप्पणी आती हैं उससे मेरी जानकारी बढ़ती है। कभी-कभी कुछ लोग मेरी पोस्ट पर मुझे किसी एक पक्ष का मानते हुए टिप्पणी कर देते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। मैं भारतकोश (www.bharatkosh.org) चला रहा हूँ और भारत की परंपरा, संस्कृति और इतिहास आदि की खोज में लगा रहता हूँ। मुझे जब भी जो भी जानने को मिलता है, लिखने का प्रयास करता हूँ। मैं किसी विषय पर कोई अथॉरिटी नहीं हूँ और एक साधारण रूप से पढ़ा-लिखा व्यक्ति हूँ। | ||
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असल में प्रचलित ‘धर्म’ एक सामाजिक विषय है, व्यक्तिगत विषय नहीं है। किसी भी व्यक्ति के परम एकांत में कोई धर्म या जाति नहीं होती यह तो समाज की उपस्थिति जनित लक्षण या विषय है। हम समाज की उपस्थिति में ही धर्म को अपनाते अथवा नकारते हैं। | असल में प्रचलित ‘धर्म’ एक सामाजिक विषय है, व्यक्तिगत विषय नहीं है। किसी भी व्यक्ति के परम एकांत में कोई धर्म या जाति नहीं होती यह तो समाज की उपस्थिति जनित लक्षण या विषय है। हम समाज की उपस्थिति में ही धर्म को अपनाते अथवा नकारते हैं। | ||
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+ | ; दिनांक- 15 दिसम्बर, 2015 | ||
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महिष या महिषी शब्द का अर्थ संस्कृत में, भैंसा, भैंस, रानी और वैश्या के लिए है। गाय के लिए नहीं। मैंने लिखा है कि सामान्य भोजन में गाय को खाना कहीं उद्दृत नहीं है। डी एन झा, डी डी कोसंबी, रोमिला थापर, राजवाड़े, भगवतशरण उपाध्याय आदि क्या यह प्रमाणित करते हैं कि वैदिक काल में 'मनुष्य का प्रिय भोजन गौमांस था'? मैंने इन सभी को पढ़ा है। मुझे ऐसा कहीं नहीं मिला। कई अंग्रेज़ इतिहासकारों ने वैदिक कालीन शब्द 'अन्न' को गाय मानकर लिखा है। जो सही प्रतीत नहीं होता। | महिष या महिषी शब्द का अर्थ संस्कृत में, भैंसा, भैंस, रानी और वैश्या के लिए है। गाय के लिए नहीं। मैंने लिखा है कि सामान्य भोजन में गाय को खाना कहीं उद्दृत नहीं है। डी एन झा, डी डी कोसंबी, रोमिला थापर, राजवाड़े, भगवतशरण उपाध्याय आदि क्या यह प्रमाणित करते हैं कि वैदिक काल में 'मनुष्य का प्रिय भोजन गौमांस था'? मैंने इन सभी को पढ़ा है। मुझे ऐसा कहीं नहीं मिला। कई अंग्रेज़ इतिहासकारों ने वैदिक कालीन शब्द 'अन्न' को गाय मानकर लिखा है। जो सही प्रतीत नहीं होता। | ||
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एक बार फिर गंभीरता से विचार कीजिए भाई साब! हमारे किसी रीतिरिवाज में गौमांस भक्षण का प्रतीक नहीं है। भारत में गाय तो कामधेनु का स्वरूप लिए हुए रही है। इसके भक्षण का तो कोई प्रश्न ही नहीं। | एक बार फिर गंभीरता से विचार कीजिए भाई साब! हमारे किसी रीतिरिवाज में गौमांस भक्षण का प्रतीक नहीं है। भारत में गाय तो कामधेनु का स्वरूप लिए हुए रही है। इसके भक्षण का तो कोई प्रश्न ही नहीं। | ||
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+ | ;दिनांक- 14 दिसम्बर, 2015 | ||
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पिछले दिनों, गौवध और गौमांस भक्षण पर काफ़ी बहस चली थी। अनेक तर्क रखे गए। यहाँ मैं ऋग्वेद के हवाले से कहना चाहता हूँ कि गाय को ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर अघ्न्या कहा गया है। जिसका अर्थ है ‘अवध्य’ जिसका वध न किया जाता हो। संस्कृत भाषा के ज्ञानी जानते हैं कि ‘घ’ अक्षर संस्कृत में प्रहार के लिए भी प्रयुक्त होता है। जिससे ‘घन’ शब्द भी बना है जिसका अर्थ एक गदा जैसा शस्त्र भी है। घन काले बादलों के लिए भी है जो कि बिजली की कड़क और प्रहार उत्पन्न करते हैं। | पिछले दिनों, गौवध और गौमांस भक्षण पर काफ़ी बहस चली थी। अनेक तर्क रखे गए। यहाँ मैं ऋग्वेद के हवाले से कहना चाहता हूँ कि गाय को ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर अघ्न्या कहा गया है। जिसका अर्थ है ‘अवध्य’ जिसका वध न किया जाता हो। संस्कृत भाषा के ज्ञानी जानते हैं कि ‘घ’ अक्षर संस्कृत में प्रहार के लिए भी प्रयुक्त होता है। जिससे ‘घन’ शब्द भी बना है जिसका अर्थ एक गदा जैसा शस्त्र भी है। घन काले बादलों के लिए भी है जो कि बिजली की कड़क और प्रहार उत्पन्न करते हैं। | ||
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कुछ भी कहें गाय को देखकर भी तो ऐसा नहीं लगता कि इसको मारकर खाया जाना चाहिए। हमारे समाज में सीधे-सरल व्यक्ति के लिए कहा जाता है कि बिल्कुल गाय की तहर सीधा/सीधी है। गाय का दूध भी मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ भोजन माना गया है। गौमूत्र और गोबर से लेकर गाय हमारे लिए अपने पूरे अस्तित्व सहित महत्वपूर्ण है तो फिर इसे खाएँ क्यों... | कुछ भी कहें गाय को देखकर भी तो ऐसा नहीं लगता कि इसको मारकर खाया जाना चाहिए। हमारे समाज में सीधे-सरल व्यक्ति के लिए कहा जाता है कि बिल्कुल गाय की तहर सीधा/सीधी है। गाय का दूध भी मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ भोजन माना गया है। गौमूत्र और गोबर से लेकर गाय हमारे लिए अपने पूरे अस्तित्व सहित महत्वपूर्ण है तो फिर इसे खाएँ क्यों... | ||
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+ | ;दिनांक- 12 दिसम्बर, 2015 | ||
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एक मंदिर की बहुत मान्यता थी। मंदिर के चारों ओर दूर-दूर तक रेगिस्तान था। एक टीले नुमा पहाड़ पर यह मंदिर बना हुआ था। जहाँ से मंदिर की चढ़ाई शुरू होती थी वहाँ एक दुकान थी। | एक मंदिर की बहुत मान्यता थी। मंदिर के चारों ओर दूर-दूर तक रेगिस्तान था। एक टीले नुमा पहाड़ पर यह मंदिर बना हुआ था। जहाँ से मंदिर की चढ़ाई शुरू होती थी वहाँ एक दुकान थी। | ||
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ये उदाहरण बाज़ार की सप्लाई-डिमांड समीकरण को समझाने के लिए दिया है। बाज़ार, भावनाओं से नहीं बल्कि भावनाओं को भुनाने से चलता है। | ये उदाहरण बाज़ार की सप्लाई-डिमांड समीकरण को समझाने के लिए दिया है। बाज़ार, भावनाओं से नहीं बल्कि भावनाओं को भुनाने से चलता है। | ||
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+ | ;दिनांक- 6 अक्टूबर, 2015 | ||
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भारतकोश संपादकीय का अंश | भारतकोश संपादकीय का अंश | ||
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संयुक्त परिवारों का चलन समाप्त होने से पुरुष और स्त्री का भेद कम हुआ। नारी को स्वतंत्र-स्वच्छंद आकाश में विचरण करने का मौक़ा मिला। नई पहचान मिलने लगी। प्रतिभा निखारने का समय और मौक़ा मिलने लगा। यह सब कुछ हुआ लेकिन हम रिश्तों को जीना भूलते चले गए। रिश्तों का आनंद लेना भूलने लगे। दादी-नानी की कहानियाँ और लाढ़ जैसे कहीं छूट गया। कह नहीं सकते कि अच्छा हुआ या बुरा लेकिन इतना अवश्य है कि संयुक्त परिवार की यादें आजकल बुज़ुर्गों की गपशप का सबसे बड़ा हिस्सा बन गईं… | संयुक्त परिवारों का चलन समाप्त होने से पुरुष और स्त्री का भेद कम हुआ। नारी को स्वतंत्र-स्वच्छंद आकाश में विचरण करने का मौक़ा मिला। नई पहचान मिलने लगी। प्रतिभा निखारने का समय और मौक़ा मिलने लगा। यह सब कुछ हुआ लेकिन हम रिश्तों को जीना भूलते चले गए। रिश्तों का आनंद लेना भूलने लगे। दादी-नानी की कहानियाँ और लाढ़ जैसे कहीं छूट गया। कह नहीं सकते कि अच्छा हुआ या बुरा लेकिन इतना अवश्य है कि संयुक्त परिवार की यादें आजकल बुज़ुर्गों की गपशप का सबसे बड़ा हिस्सा बन गईं… | ||
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Revision as of 11:10, 30 April 2017
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