शे'र: Difference between revisions
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<poem>फ़क़ीराना आये सदा कर चले | <poem>फ़क़ीराना आये सदा कर चले | ||
मियाँ ख़ुश रहो हम दु'आ कर चले | मियाँ ख़ुश रहो हम दु'आ कर चले ॥1॥ | ||
वह क्या चीज़ है आह जिसके लिए | वह क्या चीज़ है आह जिसके लिए | ||
हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले | हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले ॥2॥ - ([[मीर तक़ी मीर]])<ref>{{cite web |url=http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:Topic:260947 |title=ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ |accessmonthday=23 फ़रवरी |accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=open books online |language=हिंदी }}</ref></poem> | ||
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ग़ज़ल एक ही बह'र और [[वज़्न]] के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शे'र को [[मतला]] कहते हैं। जिस शे'र में शायर अपना नाम रखता है उसे [[मक़्ता]] कहते हैं। ग़ज़ल के सबसे अच्छे शे'र को शाहे वैत कहा जाता है। एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शे'र हो सकते हैं। ये शे'र एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। किंतु कभी-कभी एक से अधिक शे'र मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शे'र कता बंद कहलाते हैं। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को 'दीवान' कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। शे'र की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल की ख़ास बात यह हैं कि उसका प्रत्येक शे'र अपने आप में एक संपूर्ण [[कविता]] होता हैं और उसका संबंध ग़ज़ल में आने वाले अगले पिछले अथवा अन्य शेरों से हो, यह ज़रूरी नहीं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी ग़ज़ल में अगर 25 शे'र हों तो यह कहना ग़लत न होगा कि उसमें 25 स्वतंत्र कविताएं हैं। शे'र के पहले मिसरे को ‘मिसर-ए-ऊला’ और दूसरे को ‘मिसर-ए-सानी’ कहते हैं। | |||
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Latest revision as of 13:03, 25 February 2013
शे'र रदीफ़ तथा क़ाफ़िया से सुसज्जित एक ही वज़्न (मात्रा क्रम) को कहते हैं। अर्थात बह'र में लिखी गई दो पंक्तियाँ जिसमें किसी चिंतन, विचार अथवा भावना को प्रकट किया गया हो, शे'र कहलाता है।
- उदाहरण स्वरूप दो अश'आर (शे'र का बहुवचन) प्रस्तुत हैं -
फ़क़ीराना आये सदा कर चले
मियाँ ख़ुश रहो हम दु'आ कर चले ॥1॥
वह क्या चीज़ है आह जिसके लिए
हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले ॥2॥ - (मीर तक़ी मीर)[1]
ग़ज़ल
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
ग़ज़ल एक ही बह'र और वज़्न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शे'र को मतला कहते हैं। जिस शे'र में शायर अपना नाम रखता है उसे मक़्ता कहते हैं। ग़ज़ल के सबसे अच्छे शे'र को शाहे वैत कहा जाता है। एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शे'र हो सकते हैं। ये शे'र एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। किंतु कभी-कभी एक से अधिक शे'र मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शे'र कता बंद कहलाते हैं। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को 'दीवान' कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। शे'र की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल की ख़ास बात यह हैं कि उसका प्रत्येक शे'र अपने आप में एक संपूर्ण कविता होता हैं और उसका संबंध ग़ज़ल में आने वाले अगले पिछले अथवा अन्य शेरों से हो, यह ज़रूरी नहीं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी ग़ज़ल में अगर 25 शे'र हों तो यह कहना ग़लत न होगा कि उसमें 25 स्वतंत्र कविताएं हैं। शे'र के पहले मिसरे को ‘मिसर-ए-ऊला’ और दूसरे को ‘मिसर-ए-सानी’ कहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ (हिंदी) open books online। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख