शारदा लिपि: Difference between revisions
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*ब्यूह्लर ने [[जालंधर]] (कांगड़ा) के [[राजा जयचंद्र]] की कीरग्राम के बैजनाथ मन्दिर में लगी प्रशस्तियों का समय 804 ई. माना था, और इसी के अनुसार इन्होंने शारदा लिपि का आरम्भकाल 800 ई. के आस-पास निश्चित किया था। | *ब्यूह्लर ने [[जालंधर]] (कांगड़ा) के [[राजा जयचंद्र]] की कीरग्राम के बैजनाथ मन्दिर में लगी प्रशस्तियों का समय 804 ई. माना था, और इसी के अनुसार इन्होंने शारदा लिपि का आरम्भकाल 800 ई. के आस-पास निश्चित किया था। | ||
*किन्तु कीलहॉर्न ने अपनी गणितीय गणनाओं से सिद्ध किया है कि ये प्रशस्तियाँ 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध की हैं। ओझाजी भी इसी मत के समर्थक हैं। | *किन्तु कीलहॉर्न ने अपनी गणितीय गणनाओं से सिद्ध किया है कि ये प्रशस्तियाँ 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध की हैं। [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] (ओझाजी) भी इसी मत के समर्थक हैं। | ||
*ओझाजी शारदा लिपि का आरम्भकाल दसवीं शताब्दी से मानते हैं। उनका मत है कि [[नागरी लिपि]] की तरह शारदा लिपि भी कुटिल लिपि से निकली है। उनके मतानुसार, शारदा लिपि का सबसे पहला लेख सराहा ([[चंबा]], [[हिमाचल प्रदेश]]) से प्राप्त प्रशस्ति है और उसका समय दसवीं शताब्दी है। | *ओझाजी शारदा लिपि का आरम्भकाल दसवीं शताब्दी से मानते हैं। उनका मत है कि [[नागरी लिपि]] की तरह शारदा लिपि भी कुटिल लिपि से निकली है। उनके मतानुसार, शारदा लिपि का सबसे पहला लेख सराहा ([[चंबा]], [[हिमाचल प्रदेश]]) से प्राप्त प्रशस्ति है और उसका समय दसवीं शताब्दी है। | ||
*फ़ोगेल ने चंबा राज्य से शारदा लिपि के बहुत-से अभिलेख प्राप्त किए थे। | *फ़ोगेल ने चंबा राज्य से शारदा लिपि के बहुत-से अभिलेख प्राप्त किए थे। | ||
*राजा विदग्ध के सुमगंल गाँव के दानपत्र, सोमवर्मा के कुलैत दानपत्र, जालंधर के राजा जयचन्द्र के समय की बैजनाथ मन्दिर की प्रशस्तियाँ, [[कुल्लू]] के राजा बहादुरसिंह के दानपत्र तथा [[अथर्ववेद]] एवं | *राजा विदग्ध के सुमगंल गाँव के दानपत्र, सोमवर्मा के कुलैत दानपत्र, जालंधर के राजा जयचन्द्र के समय की बैजनाथ मन्दिर की प्रशस्तियाँ, [[कुल्लू]] के राजा बहादुरसिंह के दानपत्र तथा [[अथर्ववेद]] एवं शाकुंतल नाटक की हस्तलिखित पुस्तकों में शारदा लिपि का प्रयोग देखने को मिलता है। | ||
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Latest revision as of 14:01, 26 May 2014
शारदा लिपि का व्यवहार ईसा की दसवीं शताब्दी से उत्तर-पूर्वी पंजाब और कश्मीर में देखने को मिलता है। ब्यूह्लर का मत था कि शारदा लिपि की उत्पत्ति गुप्त लिपि की पश्चिमी शैली से हुई है, और उसके प्राचीनतम लेख 8वीं शताब्दी से मिलते हैं।
- ब्यूह्लर ने जालंधर (कांगड़ा) के राजा जयचंद्र की कीरग्राम के बैजनाथ मन्दिर में लगी प्रशस्तियों का समय 804 ई. माना था, और इसी के अनुसार इन्होंने शारदा लिपि का आरम्भकाल 800 ई. के आस-पास निश्चित किया था।
- किन्तु कीलहॉर्न ने अपनी गणितीय गणनाओं से सिद्ध किया है कि ये प्रशस्तियाँ 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध की हैं। गौरीशंकर हीराचंद ओझा (ओझाजी) भी इसी मत के समर्थक हैं।
- ओझाजी शारदा लिपि का आरम्भकाल दसवीं शताब्दी से मानते हैं। उनका मत है कि नागरी लिपि की तरह शारदा लिपि भी कुटिल लिपि से निकली है। उनके मतानुसार, शारदा लिपि का सबसे पहला लेख सराहा (चंबा, हिमाचल प्रदेश) से प्राप्त प्रशस्ति है और उसका समय दसवीं शताब्दी है।
- फ़ोगेल ने चंबा राज्य से शारदा लिपि के बहुत-से अभिलेख प्राप्त किए थे।
- राजा विदग्ध के सुमगंल गाँव के दानपत्र, सोमवर्मा के कुलैत दानपत्र, जालंधर के राजा जयचन्द्र के समय की बैजनाथ मन्दिर की प्रशस्तियाँ, कुल्लू के राजा बहादुरसिंह के दानपत्र तथा अथर्ववेद एवं शाकुंतल नाटक की हस्तलिखित पुस्तकों में शारदा लिपि का प्रयोग देखने को मिलता है।
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