पुरंजय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:पौराणिक चरित्र (को हटा दिया गया हैं।))
m (Text replacement - "राजपुत" to "राजपूत")
 
(2 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
'''पुरंजय''' इक्ष्वाकू के पौत्र विकुक्षि का पुत्र था। वह एक मन्द-प्रसूत राजपुत्र था। उसे योद्धा और यशभागी होने के कारण ‘इन्द्रवाह’ और ‘कुकुत्स्थ’ भी कहा जाता है। [[देवासुर संग्राम]] में पुरंजय की सहायता से ही [[देवता|देवताओं]] को विजयश्री प्राप्त हुई थी। इसीलिए देवताओं ने उसे 'पुरंजय' (पुरों को जीतने वाला) कहकर सम्बोधित किया।
'''पुरंजय''' इक्ष्वाकू के पौत्र विकुक्षि का पुत्र था। वह एक मन्द-प्रसूत राजपूत्र था। उसे योद्धा और यशभागी होने के कारण ‘इन्द्रवाह’ और ‘[[ककुत्स्थ]]’ भी कहा जाता है। [[देवासुर संग्राम]] में पुरंजय की सहायता से ही [[देवता|देवताओं]] को विजयश्री प्राप्त हुई थी। इसीलिए देवताओं ने उसे 'पुरंजय' (पुरों को जीतने वाला) कहकर सम्बोधित किया।
;जन्म तथा नामकरण
;जन्म तथा नामकरण
[[श्रीमद्भागवत]] में पुरंजय की यशकीर्ति और [[असुर|असुरों]] पर विजय पताका फहराने की कथा आती है। पुरंजय मन्द-प्रसूत राज पुत्र था। एक बार [[मनु]] की नासिका से छींक आई। छींक से एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ। उसका नाम नासिका छिद्र से उत्पन्न होने के कारण इक्ष्वाकु रखा गया। इक्ष्वाकु के पौत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि को जो सन्तान प्राप्ति हुई उसका नाम पुरंजय, पुरों को विजय करने वाला पड़ा।
[[श्रीमद्भागवत]] में पुरंजय की यशकीर्ति और [[असुर|असुरों]] पर विजय पताका फहराने की कथा आती है। पुरंजय मन्द-प्रसूत राज पुत्र था। एक बार [[मनु]] की नासिका से छींक आई। छींक से एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ। उसका नाम नासिका छिद्र से उत्पन्न होने के कारण इक्ष्वाकु रखा गया। इक्ष्वाकु के पौत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि को जो सन्तान प्राप्ति हुई उसका नाम पुरंजय, पुरों को विजय करने वाला पड़ा।
Line 15: Line 15:
[[Category:कथा साहित्य कोश]][[Category:कथा साहित्य]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]][[Category:कथा साहित्य]]
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 12:42, 1 September 2017

पुरंजय इक्ष्वाकू के पौत्र विकुक्षि का पुत्र था। वह एक मन्द-प्रसूत राजपूत्र था। उसे योद्धा और यशभागी होने के कारण ‘इन्द्रवाह’ और ‘ककुत्स्थ’ भी कहा जाता है। देवासुर संग्राम में पुरंजय की सहायता से ही देवताओं को विजयश्री प्राप्त हुई थी। इसीलिए देवताओं ने उसे 'पुरंजय' (पुरों को जीतने वाला) कहकर सम्बोधित किया।

जन्म तथा नामकरण

श्रीमद्भागवत में पुरंजय की यशकीर्ति और असुरों पर विजय पताका फहराने की कथा आती है। पुरंजय मन्द-प्रसूत राज पुत्र था। एक बार मनु की नासिका से छींक आई। छींक से एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ। उसका नाम नासिका छिद्र से उत्पन्न होने के कारण इक्ष्वाकु रखा गया। इक्ष्वाकु के पौत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि को जो सन्तान प्राप्ति हुई उसका नाम पुरंजय, पुरों को विजय करने वाला पड़ा।

देवताओं की सहायता

सतयुग-त्रेता के संधि काल में दीर्घ कालीन देवासुर संग्राम में अंतत: देवगण परास्त होने लगे। पुरंजय ने शर्त रखी कि यदि देवराज इन्द्र उसके वाहन बनेंगे तो वह देवासुर संग्राम में उनकी मदद कर सकता है। इन्द्र पहले तो सोच में पड़ गये। अंतत: उन्होंने पुरंजय की शर्त को स्वीकार कर लिया। उन्होंने पुरंजय की सवारी के लिए विशाल दिव्य वृषभ का रूप धारण कर लिया। विष्णु ने पुरंजय को दिव्य शस्त्रास्त्र प्रदान किये। इस प्रकार पुरंजय के पराक्रम तथा युद्ध कौशल से देवताओं को विजय प्राप्त हुई और असुरों को परास्त होकर भागना पड़ा।

असुरों पर विजय

काफ़ी असुर हताहत और काफ़ी यमलोक पहुँचा दिये गए। अब पुरंजय विश्व विजयी के रूप में उपस्थित हुए। देवताओं में प्रसन्नता फैल गई। इस प्रकार से इन्द्रलोक पुन: सुख और शान्ति का केन्द्र बन गया। इन्द्र को अपना लोक फिर से प्राप्त हो गया। उसे देवताओं ने पुरंजय, पुर जीतने वाला कहकर वंदनीय कहा। कुकुद पर आसीन होने के कारण वह 'कुकुत्स्थ' तथा देवराज इन्द्र ने उसका वहन किया, इसीलिए 'इन्द्रवाह' (इन्द्र द्वारा वहन किया हुआ) कहलाया। इस प्रकार दिग्-दिगंत में उसकी कीर्ति स्थापित हुई।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 496 |

  1. श्रीमद्भागवत, नवम् स्कंध, अध्याय 6

संबंधित लेख