पौंड्रक: Difference between revisions

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'''पौंड्रक''' करूप देश का अज्ञानी और जड़ बुद्धि राजा था। [[पुराण|पुराणों]] में उसके नकली [[कृष्ण]] का रूप धारण करने की कथा आती है। पौंड्रक को उसके महामूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि, वही वासुदेव है। कृष्ण के साथ विवाद होने पर पौंड्रक का वध कृष्ण के हाथों हुआ।
'''पौंड्रक''' करूप देश का अज्ञानी और जड़ बुद्धि राजा था। [[पुराण|पुराणों]] में उसके नकली [[कृष्ण]] का रूप धारण करने की [[कथा]] आती है। पौंड्रक को उसके महामूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि, वही वासुदेव है। कृष्ण के साथ विवाद होने पर पौंड्रक का वध कृष्ण के हाथों हुआ।
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पौंड्रक नकली [[चक्र अस्त्र|चक्र]], [[शंख]], तलवार, [[कौस्तुभ मणि]] धारण करके [[पीला रंग|पीले]] वस्त्र पहनता था। सिर पर कृष्ण जैसा मुकुट लगाता था। उसने कृष्ण को संदेश भेजा कि वह वासुदेव नाम का परित्याग करे और उसके वस्त्र व प्रतीक चिह्न धारण करना बंद कर दे। कृष्ण से उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुई। उन्होंने युद्ध में पौंड्रक को परास्त किया और उसका वध किया। लेकिन पौंड्रक को कृष्ण ([[विष्णु]]) का रूप धारण करने, उनका बराबर स्मरण करने से ही भगवान का सारूप्य प्राप्त हुआ।
पौंड्रक नकली [[चक्र अस्त्र|चक्र]], [[शंख]], तलवार, [[कौस्तुभ मणि]] धारण करके [[पीला रंग|पीले]] वस्त्र पहनता था। सिर पर कृष्ण जैसा मुकुट लगाता था। उसने कृष्ण को संदेश भेजा कि वह वासुदेव नाम का परित्याग करे और उसके वस्त्र व प्रतीक चिह्न धारण करना बंद कर दे। कृष्ण से उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुई। उन्होंने युद्ध में पौंड्रक को परास्त किया और उसका वध किया। लेकिन पौंड्रक को कृष्ण ([[विष्णु]]) का रूप धारण करने, उनका बराबर स्मरण करने से ही भगवान का सारूप्य प्राप्त हुआ।

Latest revision as of 13:56, 27 July 2014

पौंड्रक करूप देश का अज्ञानी और जड़ बुद्धि राजा था। पुराणों में उसके नकली कृष्ण का रूप धारण करने की कथा आती है। पौंड्रक को उसके महामूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि, वही वासुदेव है। कृष्ण के साथ विवाद होने पर पौंड्रक का वध कृष्ण के हाथों हुआ।

कथा

पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, कौस्तुभ मणि धारण करके पीले वस्त्र पहनता था। सिर पर कृष्ण जैसा मुकुट लगाता था। उसने कृष्ण को संदेश भेजा कि वह वासुदेव नाम का परित्याग करे और उसके वस्त्र व प्रतीक चिह्न धारण करना बंद कर दे। कृष्ण से उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुई। उन्होंने युद्ध में पौंड्रक को परास्त किया और उसका वध किया। लेकिन पौंड्रक को कृष्ण (विष्णु) का रूप धारण करने, उनका बराबर स्मरण करने से ही भगवान का सारूप्य प्राप्त हुआ।

बदले की भावना से कालान्तर में काशी नरेश पौंड्रक के पुत्र सुदक्षण ने कृष्ण का वध करने के लिए मारण-पुरश्चरण किया। अभिचार की समाप्ति पर यज्ञ कुण्ड से एक भयंकर कृत्या प्रकट हुई। उसके हस्थ में त्रिशूल था। आंखों से आग की लपटें, जिह्वा बाहर लटकी हुई थी। ज्वालाएँ बिखेरती वह द्वारिका की ओर कृष्ण वध के लिए दौड़ी। कृष्ण ने पहचान लिया कि यह काशी से प्रस्थान करके आई कृत्या है। सुदर्शन चक्र से उन्होंने उसका मुंह तोड़-फोड़ दिया। वह काशी की ओर लौट गई। उसने काशी नरेश पुत्र सुदक्षण को ही भस्म कर दिया। सुदर्शन कृष्ण के पास पुन: वापिस आ गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 510 |

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