त्रिजटा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('त्रिजटा रामायण की वह पात्र है  जिसको मात्र अशोक वाटि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replacement - "रूचि" to "रुचि")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
त्रिजटा रामायण की वह पात्र है  जिसको मात्र अशोक वाटिका में माता सीता को सांत्वना देने के लिए जाना जाता है। त्रिजटा न तो कोई बहुत बड़ी भक्त थी और नहीं ज्यादा पूजा पाठ में रूचि रखती थी, परन्तु उसके द्वारा माता सीता को बुरे वक्त में दी गई सांत्वना भक्ति तथा साधना से श्रेष्ठ ही थी।<ref>{{cite web |url=http://vihore.blogspot.in/2012/01/blog-post_03.html |title=त्रिजटा  |accessmonthday= 28 फरवरी|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>
'''त्रिजटा''' [[रामायण]] की वह पात्र है  जिसको [[अशोक वाटिका]] में [[सीता]] को सांत्वना देने के लिए जाना जाता है। त्रिजटा न तो भक्त थी और ना ही ज़्यादा पूजा पाठ में रुचि रखती थी, परन्तु उसके द्वारा सीता को बुरे वक्त में दी गई सांत्वना भक्ति तथा साधना से श्रेष्ठ ही थी।<ref>{{cite web |url=http://vihore.blogspot.in/2012/01/blog-post_03.html |title=त्रिजटा  |accessmonthday= 28 फरवरी|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>
==श्री सीता-त्रिजटा संवाद==  
==श्री सीता-त्रिजटा संवाद==  
<poem>
<poem>
* जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
* जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥11॥  
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥11॥  
अर्थ:-तब (इसके बाद) वे सब जहाँ-तहाँ चली गईं। सीताजी मन में सोच करने लगीं कि एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा॥11॥  
अर्थ:-तब (इसके बाद) वे सब जहाँ-तहाँ चली गईं। सीताजी मन में सोच करने लगीं कि एक [[महीना]] बीत जाने पर नीच [[राक्षस]] [[रावण]] मुझे मारेगा॥11॥  
* त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
* त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥1॥
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥1॥
Line 22: Line 22:
*नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
*नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥6॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥6॥
अर्थ:-तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह रोग का अंत मत कर (अर्थात्‌ विरह रोग को बढ़ाकर सीमा तक न पहुँचा) सीताजी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान्‌जी को कल्प के समान बीता॥6॥  
अर्थ:-तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह रोग का अंत मत कर (अर्थात्‌ विरह रोग को बढ़ाकर सीमा तक न पहुँचा) सीताजी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण [[हनुमान|हनुमान जी]] को [[कल्प]] के समान बीता॥6॥ <ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/religion/hindu/ramcharitmanas/Sunderkand/6.htm |title=श्री सीता-त्रिजटा संवाद |accessmonthday= 28 फरवरी|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>


</poem>
</poem>
Line 33: Line 33:


==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://hindi.webdunia.com/religion/religion/hindu/ramcharitmanas/Sunderkand/6.htm  सुंदरकाण्ड]
*[http://religion.bhaskar.com/article/granth-trijta-had-predicted-ravan-will-the-apocalypse-2715090.html  रावण का होगा सर्वनाश, त्रिजटा ने कर दी थी भविष्यवाणी क्योंकि.... ]
*[http://religion.bhaskar.com/article/granth-when-you-hear-the-whole-story-of-the-war-3062556.html  जब त्रिजटा ने सीताजी को युद्ध की पूरी कहानी सुनाई तो....]
*[http://vihore.blogspot.in/2012/01/blog-post_03.html  त्रिजटा ]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{रामायण}}
{{रामायण}}

Latest revision as of 07:48, 3 January 2016

त्रिजटा रामायण की वह पात्र है  जिसको अशोक वाटिका में सीता को सांत्वना देने के लिए जाना जाता है। त्रिजटा न तो भक्त थी और ना ही ज़्यादा पूजा पाठ में रुचि रखती थी, परन्तु उसके द्वारा सीता को बुरे वक्त में दी गई सांत्वना भक्ति तथा साधना से श्रेष्ठ ही थी।[1]

श्री सीता-त्रिजटा संवाद

  • जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।

मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥11॥
अर्थ:-तब (इसके बाद) वे सब जहाँ-तहाँ चली गईं। सीताजी मन में सोच करने लगीं कि एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा॥11॥

  • त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥

तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥1॥
अर्थ:-सीताजी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोलीं- हे माता! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है। जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मैं शरीर छोड़ सकूँ। विरह असह्म हो चला है, अब यह सहा नहीं जाता॥1॥

  • आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥

सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥2॥
अर्थ:-काठ लाकर चिता बनाकर सजा दे। हे माता! फिर उसमें आग लगा दे। हे सयानी! तू मेरी प्रीति को सत्य कर दे। रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानों से कौन सुने?॥2॥

  • सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥

निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।3॥
अर्थ:-सीताजी के वचन सुनकर त्रिजटा ने चरण पकड़कर उन्हें समझाया और प्रभु का प्रताप, बल और सुयश सुनाया। (उसने कहा-) हे सुकुमारी! सुनो रात्रि के समय आग नहीं मिलेगी। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई॥3॥

  • कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला॥

देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा॥4॥
अर्थ:-सीताजी (मन ही मन) कहने लगीं- (क्या करूँ) विधाता ही विपरीत हो गया। न आग मिलेगी, न पीड़ा मिटेगी। आकाश में अंगारे प्रकट दिखाई दे रहे हैं, पर पृथ्वी पर एक भी तारा नहीं आता॥4॥

  • पावकमय ससि स्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥

सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका॥5॥
अर्थ:-चंद्रमा अग्निमय है, किंतु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोक वृक्ष! मेरी विनती सुन। मेरा शोक हर ले और अपना (अशोक) नाम सत्य कर॥5॥

  • नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥

देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥6॥
अर्थ:-तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह रोग का अंत मत कर (अर्थात्‌ विरह रोग को बढ़ाकर सीमा तक न पहुँचा) सीताजी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान जी को कल्प के समान बीता॥6॥ [2]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. त्रिजटा (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 28 फरवरी, 2014।
  2. श्री सीता-त्रिजटा संवाद (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 28 फरवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख