राजाधिराज: Difference between revisions
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*विशेषतया, पाड्य, [[ | *विशेषतया, पाड्य, [[चेर वंश]] और सिंहल ([[श्रीलंका]]) के राज्यों ने राजाधिराज के शासन काल में स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया, पर चोलराज ने उन्हें बुरी तरह से कुचल डाला। | ||
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- राजाधिराज प्रथम (1044-1052 ई.), राजेन्द्र प्रथम का पुत्र था और उसके बाद राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी था।
- उसकी शक्ति का उपयोग प्रधानतया उन विद्रोहों को शान्त करने में हुआ, जो उसके विशाल साम्राज्य में समय-समय पर होते रहते थे।
- विशेषतया, पाड्य, चेर वंश और सिंहल (श्रीलंका) के राज्यों ने राजाधिराज के शासन काल में स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया, पर चोलराज ने उन्हें बुरी तरह से कुचल डाला।
- उसका सर्वप्रथम संघर्ष कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों से हुआ।
- राजाधिराज ने तत्कालीन चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम आहवमल्ल को पराजित कर चालुक्य राजधानी कल्याणी पर अधिकार कर लिया।
- इस विजय के उपलक्ष्य में राजाधिराज ने अपना 'वीरभिषेक' करवाकर 'विजय राजेन्द्र' की उपाधि ग्रहण की थी।
- राजधानी कल्याणी की विजय स्मृति के रूप में वहां से एक 'द्वार पालक की मूर्ति' लाकर राजाधिराज ने उसे तंजौर नगर के 'रासुरम' नामक स्थान पर स्थापित करवाया।
- कालान्तर में लगभग 1050 ई. में सोमेश्वर ने चोल सेनाओं को अपने प्रदेश से बाहर खदेड़ दिया और साथ ही वेंगी के शासक राजाराम को अपनी अधीन कर लिया।
- कोप्पम के युद्ध (1052-54ई.) में चालुक्य नरेश सोमेश्वर बुरी तरह पराजित हुआ, पर इस युद्ध में लड़ते समय बुरी तरह घायल होने के कारण राजाधिराज की मृत्यु युद्ध क्षेत्र में हो गई।
- तत्पश्चात् राजाधिराज के छोटे भाई राजेन्द्र द्वितीय ने युद्ध क्षेत्र में ही अपना राज्याभिषेक सम्पन्न करवाया।
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